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कम समय व कम लागत में चाहिए अच्छा मुनाफा, तो करें तुलसी की खेती !

तुलसी की खेती
Written by Gramik

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बहुत से किसान आजकल परंपरागत खेती से अलग हटकर औषधीय पौधे की खेती कर रहे हैं। अगर आप भी औषधीय पौधे की खेती कर कम पूंजी से अच्छी कमाई करना चाहते हैं, तो आपको तुलसी की खेती के बारे में ज़रूर जानना चाहिए, क्योंकि ये फसल कम समय व कम खर्च में तैयार हो जाती है।

तुलसी की खेती को सरकार दे रही बढ़ावा

केंद्र सरकार अपने कई स्कीम के जरिए देश में औषधीय पौधे की खेती को बढ़ावा दे रही है। इसका लाभ लेने के लिए भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने अगले साल तक 75 लाख घरों में औषधीय पौधों को पहुंचाने का लक्ष्य रखा है, तुलसी भी उन्हीं पौधों में से एक है।

तुलसी की खेती

तुलसी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु औऱ तापमान

तुलसी की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है, साथ ही उचित जल निकासी वाली भूमि भी तुलसी के विकास के लिए उपयुक्त होती है। इसकी फसल के लिए भूमि का P.H. मान 5.5 से 7 के बीच होना चाहिये। 

उष्णकटिबंधीय जलवायु में तुलसी की खेती अधिक की जाती है। बारिश का मौसम तुलसी के विकास के लिए सबसे अच्छा होता है, वहीँ सर्दियों में गिरने वाला पाला फसल को नुकसान पहुँचाता है| इसके पौधों को सामान्य तापमान की ज़रूरत होती है। तुलसी के पौधों की रोपाई के लिए जून-जुलाई का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है।

कर्पूर तुलसी

कर्पूर तुलसी अमेरिकन प्रजाति की तुलसी है, जिसे अमेरिका में तैयार किया गया है। इसमें निकलने वाली पत्तियों का प्रयोग चाय में अच्छी खुशबू लाने के लिए किया जाता है। इसके पौधों को कपूर बनाने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है। इसके पौधों की लम्बाई दो से तीन फ़ीट होती है, पत्तियां हरे रंग की औऱ फूल बैंगनी भूरे रंग के होते हैं।

रामा तुलसी

रामा तुलसी भारत के दक्षिणी राज्यों में प्रमुख रूप से उगाई जाती है। इसके लिए गर्म जलवायु उपयुक्त होती हैं। इसमें निकलने वाले पौधों की लम्बाई की बात करें, तो ये दो से तीन फ़ीट तक होती है। इस क़िस्म के पौधों की पत्तियों का रंग हल्का हरा औऱ फूल सफ़ेद होते हैं। इसके पौधों में कम खुशबु पाई जाती है। सामान्यतः इन्हें औषधियां बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

श्यामा या कृष्ण तुलसी

श्यामा या कृष्ण तुलसी को काली तुलसी के नाम से भी जाना जाता है। तुलसी इस क़िस्म की पत्तियों का रंग हल्का जामुनी और फूल हल्के बैंगनी रंग के होते हैं। इसके पौधे तीन फ़ीट लम्बे होते हैं। विशेष रूप से कफ की बीमारी में इसकी पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है।

बाबई तुलसी

तुलसी की इस क़िस्म का प्रयोग सब्जी को खुशबूदार बनाने के लिए किया जाता है। इसके पौधे दो फ़ीट लम्बे होते हैं, जिनकी पत्तियों के आकार सामान्य होते हैं। इस तुलसी को बंगाल व बिहार राज्य में प्रमुखता से उगाया जाता है।

अमृता तुलसी

अमृता तुलसी लगभग पूरे भारत में उगाई जाती है। इस किस्म के पौधों मे शाखाएँ निकलती है, जिसमें निकलने वाली पत्तियों का रंग जामुनी होता है। तुलसी की इस क़िस्म को डायबिटीज, दिल की बीमारी, पागलपन, कैंसर औऱ गठिया रोग के उपचार में इस्तेमाल करते हैं।

तुलसी के पौधों की रोपाई का सही समय औऱ तरीका

तुलसी के पौधों की रोपाई पौध के रूप में की जाती है। इसके पौधों की रोपाई समतल औऱ मेड़ दोनों ही जगहों पर की जा सकती है। मेड़ पर रोपाई करने से पहले खेत में एक फ़ीट की दूरी रखते हुए मेड़ को तैयार कर लिया जाता है। इसके बाद इन पौधों को सवा फ़ीट की दूरी पर मशीन के माध्यम से लगाया जाता है।

यदि आप समतल भूमि में पौधों की रोपाई करना चाहते है, तो उसके लिए आपको खेत में पंक्तियां बना लेना चाहिए। इन पंक्तियों को डेढ़ से दो फ़ीट की दूरी में तैयार किया जाता है। इसमें लगाए गए पौधों के बीच में 40 CM की दूरी अवश्य रखे। आपको बता दें कि तुलसी के पौधों की रोपाई के लिए अप्रैल का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है।

तुलसी के पौधों की सिंचाई

तुलसी के पौधों की रोपाई सूखी भूमि में की जाती है, और पौधों की रोपाई के तुरंत बाद उसकी पहली सिंचाई की जाती है। तुलसी के खेत में नमी बनाये रखने के लिए 4 से 5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिये। तुलसी के पौधों को एक साल में 10 से 12 सिंचाई की ज़रूरत होती है। वहीं अगर बारिश का मौसम हो तो 15 से 20 दिन के अंतराल पर पौधों की सिंचाई की जाती है।

तुलसी के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम

पत्ती झुलसा रोग

पत्ती झुलसा रोग अक्सर गर्मी के मौसम में होता है। इस रोग से प्रभावित होने पर पौधों की पत्तियों पर जले हुए धब्बे पड़ जाते है। फाइटो सैनिटरी विधि का इस्तेमाल कर इस रोग की रोकथाम की जा सकती है।

जड़ गलन रोग

जड़ गलन रोग खेत में जलभराव की स्थिति होने पर होता है। खेत में जलभराव होने से पौधों की जड़ें गलने लगती हैं, जिससे पत्तियां मुरझा कर पीली पड़ जाती है। इस रोग से बचाव के लिए खेत में जलभराव न होने दें। इसके अलावा इस रोग के लक्षण दिखने पर पौधों की जड़ों पर बाविस्टिन की उचित मात्रा का छिड़काव करें।

तुलसी की खेती से लाभ

तुलसी की खेती से लाभ

तुलसी के पौधे की कटाई पौध रोपाई के तक़रीबन तीन महीने बाद की जाती है। जब इसके पौधों पर अच्छे से फूल आ आएं औऱ नीचे के पत्ते सूखे दिखाई देने लगें तब ये कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

तुलसी का पौधा तैयार होने के बाद में आसवन विधि से तुलसी के पौधे और पत्तियों से तेल निकाला जाता है। आपको बता दें कि 1 हेक्टेयर तुलसी की खेती से लगभग 100 किलोग्राम से ज्यादा तेल प्राप्त किया जा सकता है। बाज़ार में ये तेल काफ़ी महंगा बिकता है, जिससे किसान साथियों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है।

FAQs

तुलसी की खेती कब करें?

तुलसी की खेती के लिये जून-जुलाई का समय उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि मानसून की बारिश पड़ने से इसकी पैदावार अच्छी होती है।

तुलसी की खेती किस तरह की मिट्टी में करें?

तुलसी की खेती के लिये अच्छी जलनिकासी वाली दोमट-बलुई मिट्टी को सबसे अच्छी होती है।

तुलसी के तेल का प्रयोग क्यों किया जाता है?

तुलसी के तेल का इस्तेमाल संक्रमण का उपचार करने, पाचन को दुरुस्त करने, उल्टी रोकने, जुकाम, खुजली व अस्थमा का उपचार करने, तनाव दूर करने, व बालों के लिए किया जाता है।

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