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पालक की खेती: जानिए पालक का उत्पादन, पालक की उन्नत किस्में

पालक की खेती
Written by Gramik

पालक का मूल स्थान केंद्रीय और पश्चिमी एशिया है और यह अमरांथासियेइ प्रजाति से संबंध रखती है। यह एक सदाबहार सब्जी है और पूरे विश्व में इसकी खेती की जाती है। इसको हिंदी में “पालक” कहा जाता है| यह आयरन, विटामिन का उच्च स्त्रोत और एंटीऑक्सीडेंट होता है।

इसके बहुत सारे सेहतमंद फायदे हैं। यह बीमारीयों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है| यह पाचन के लिए, त्वचा, बाल, आंखों और दिमाग के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। इससे कैंसर-रोधक और ऐंटी ऐजिंग दवाइयां भी बनती है| भारत में आंध्रा प्रदेश, तेलंगना, केरला, तामिलनाडू, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और गुजरात आदि पालक उत्पादक के राज्य हैं।

पालक की खेती

पालक की उन्नत किस्में – 

विलायती पालक की खेती– देसी पालक से विपरीत, विलायती पालक के बीज कटीले और गोल होते हैं. कटीले बीजों को पहाड़ी और ठंडे इलाकों में उगाने पर ज्यादा लाभ मिलता है| वहीं गोल किस्मों की खेती मैदानी क्षेत्रों में की जाती है|

ऑल ग्रीन (All Green Spinach) – हरे पत्तेदार पालक की ये किस्म मात्र 15 से 20 दिन में तैयार हो जाती है| एक बार बुवाई करने के बाद इससे 6 से 7 बार पत्तों की कटाई कर सकते हैं| बेशक ये एक अधिक पैदावार वाली किस्म है, लेकिन सर्दियों में इसकी खेती करने पर करीब 70 दिनों में बीज और पत्तियां लगती हैं|

पूसा हरित (Pusa Harit Spinach) – पहाड़ी इलाकों में साल भर की खपत को पूरा करने के लिये ज्यादातर किसान पूसा हरित से बुवाई का काम करते हैं| इसके पत्ते गहरे हरे रंग और बड़े आकार वाले होते हैं, जिनकी बढ़वार सीधे ऊपर की तरफ होती है| क्षारीय भूमि में इसकी खेती करने के अलग ही फायदे होते हैं|

पूसा ज्योति (Pusa Jyoti Spinach) – मुलायम, रसीली और बिना रेशे पत्तों की ये किस्म बड़े शहरों में काफी पसंद की जाती है| हालांकि इसका स्टोरेज करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है, लेकिन ये एक जल्दी पकने वाली किस्म है, जिसके पत्ते तेजी से बढ़ते हैं|

पालक की खेती के लिये मिट्टी

पालक को मिट्टी की कई किस्मों जो अच्छे जल निकास वाली होती हैं, में उगाया जाता है| पर यह रेतली चिकनी और जलोढ़ मिट्टी में बढ़िया परिणाम देती है। तेजाबी और जल जमाव वाली मिट्टी में पालक की खेती करने से बचाव करें। इसके लिए मिट्टी का pH 6 से 7 होना चाहिए।

ज़मीन की तैयारी :- 

ज़मीन को भुरभुरा करने के लिए, 3-5 बार जोताई करें| जोताई के बाद सुहागे से मिट्टी को समतल करें। बेड तैयार करें और सिंचाई करें।

पालक की बिजाई 

बिजाई का समय – पालक की बिजाई लगभग पूरे साल में की जा सकती है, पर अगस्त से दिसंबर का समय बिजाई के लिए उचित होता है।

फासला – बिजाई के लिए, पंक्ति से पंक्ति 20 सैं.मी. का फासला और पौधे से पौधे का फासला 5 सैं.मी. रखें।

बीज की गहराई – बीज को 3-4 सैं.मी की गहराई में बोयें|

बिजाई का ढंग – बिजाई पंक्ति या बुरकाव द्वारा की जा सकती है।

बीज की मात्रा – एक एकड़ खेत के लिए लगभग 4-6 किलो बीजों की आवश्यकता होती है।

बीज का उपचार – अंकुरन की प्रतिशतता बढ़ाने के लिए बिजाई से पहले बीजों को 12-24 घंटे तक पानी में भिगो दें।

पालक की खेती में खाद 

फसल के बढ़िया विकास और बढ़िया पैदावार के लिए अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर 200 क्विंटल और नाइट्रोजन 32 किलो (70 किलो यूरिया), फासफोरस 16 किलो (सुपरफासफेट 100 किलो), प्रति एकड़ में डालें। गले हुए गाय के गोबर और फासफोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई से पहले डालें। बाकी की नाइट्रोजन को दो बराबर भागों में प्रत्येक कटाई के समय डालें। खाद डालने के बाद हल्की सिंचाई करें। 

खरपतवार नियंत्रण – नदीनों को दो से तीन गोडाई की जरूरत होती है। गोडाई से मिट्टी को हवा मिलती है। रासायनिक तरीके से नदीनों की रोकथाम के लिए पायराज़ोन 1-1.12 किलो प्रति एकड़ में प्रयोग करें। बाद में नदीननाशक के उपयोग से बचें।

सिंचाई – बीजों के बढ़िया अंकुरण और विकास के लिए मिट्टी में नमी का होना बहुत आवश्यक है| यदि मिट्टी में नमी अच्छी तरह से ना हो तो, बिजाई से पहले सिंचाई करें या फिर बिजाई के बाद पहली सिंचाई करें|

गर्मी के महीने में, 4-6 दिनों के फासले पर सिंचाई करें जब कि सर्दियों में 10-12 दिनों के फासले पर सिंचाई करें। ज्यादा सिंचाई करने से परहेज़ करें। ध्यान रखें की  पत्तों के ऊपर पानी ना रहे क्योंकि इससे बीमारी का खतरा और गुणवत्ता में कमी आती है। ड्रिप सिंचाई पालक की खेती के लिए लाभदायक सिद्ध होती है।

पालक की खेती बीमारियां और रोकथाम 

पत्तों पर गोल धब्बे: पत्तों पर, छोटे गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं, बीच से सलेटी और लाल रंग के धब्बे  पत्तों के किनारों पर दिखाई देते हैं। बीज फसल में यदि इसका हमला दिखाई दें तो, कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम या इंडोफिल एम-45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि आवश्यकता हो तो दूसरी स्प्रे 15 दिनों के अंतराल पर करें।

फसल की कटाई 

फसल बिजाई के 25-30 दिनों के बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई 20-25 दिनों के फासले पर लगातार की जानी चाहिए। कटाई के लिए तीखे चाकू या दराती का प्रयोग किया जाता है।

बीज उत्पादन 

बीज की उत्पादन के लिए,  50 सैं.मी.x 30 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें। पालक की खेती के लिए लगभग 1000 मीटर का फासला होना चाहिए। प्रत्येक पांच पंक्तियों के बाद एक पंक्ति छोड़नी चाहिए, जो कि खेत के परीक्षण के लिए जरूरी है। बीमार पौधों को हटा दें, पत्तों में विभिन्नता दिखाने वाले पौधों को हटा दें। जब बीज भूरे रंग के हो जाएं तब फसल की कटाई करें।  कटाई के बाद पौधों को सूखने के लिए एक सप्ताह के लिए खेत में ही रहने दें। अच्छी तरह से सूखने के बाद, बीज लेने के लिए, फसल की छंटाई करें

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