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इन दिनों मक्का की खेती करने वाले किसानों की चिंता बढ़ गई है, क्योंकि इस फसल में आजकल फॉल आर्मीवर्म और तना छेदक कीट (stem borer) का प्रकोप काफी ज्यादा देखा जा रहा है। फॉल आर्मीवर्म मुख्य रूप से मक्के की फसल को नुकसान पहुंचाता है और मक्के की फसल न उपलब्ध होने पर ये ज्वार की फसल को प्रभावित करता है।
यदि ये दोनों फसलें खेत में न लगी हों, तो ये गन्ना, चावल, गेहूं, रागी जैसी फसलों पर हमला करता है। फॉल आर्मीवर्म कपास और सब्जियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इस कीट का हमला इतना आक्रामक माना जाता है, कि ये जिस भी फसल में लगता है, उसे पूरी तरह से नष्ट कर देता है।
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फॉल आर्मीवर्म कीट
फॉल आर्मीवर्म कीट के लार्वा हरे, जैतून, हल्के गुलाबी या भूरे रंगों में दिखाई देते हैं, और इनके उदर खंड में चार काले धब्बे होते हैं, और सिर पर आँखों के बीच में अंग्रेजी भाषा के उल्टा Y आकार की एक सफेद रंग की संरचना होती है। आपको बता दें कि फॉल आर्मीवर्म कीट के वयस्क पतंगे एक दिन में लगभग 100 किलोमीटर तक उड़ सकते हैं।
मक्का की फसल को ऐसे पहुंचाता है नुकसान
फॉल आर्मीवर्म कीट पौधों की पत्तियों को खुरचकर खाते हैं, जिससे उसपर सफेद रंग की धारियां दिखाई देने लगती हैं। जैसे-जैसे लार्वा बड़े होते हैं, वे पौधों की ऊपरी पत्तियों को खा जाते हैं, जिससे पत्तियों में बड़े गोल छिद्र बन जाते हैं।
फॉल आर्मीवर्म कीट नियंत्रण के उपाय
कृषि विशेषज्ञ कहते हैं कि इस कीट से बचने के लिए किसान साथी मक्का की अगेती किस्म की बुआई करें। इसके अलावा एक साल मक्का बोने के बाद दूसरे साल खेत में मक्का न बोएँ। फॉल आर्मीवर्म कीट के वयस्क पतंगे एक दिन में लगभग 100 किलोमीटर से भी ज्यादा उड़ सकते हैं. फॉल आर्मीवर्म कीट नियंत्रण के लिए प्रति हेक्टेयर 100 फेरोमोन फंदा का इस्तेमाल करें।
मक्का की फसल को फॉल आर्मीवर्म कीट के नुकसान से बचाने के लिए आप कुछ रासायनिक दवाओं का छिड़काव कर सकते हैं-
- स्पिनेटोरम 11.7% एस.सी की 0.5 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाएं।
- क्लोरेंट्रोनिलिप्रोएल 18.5 एस.सी की 0.4 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलें।
- थियोमेथोक्साम 12.6%+लैम्बडा साइहैलोथ्रीन 9.5% जेड सी की 0.25 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाएं।
- इमामेक्टिन बेंजोए 5% एस.जी 0.40 ग्राम की मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाएं।
लार्वा बड़े होने पर ये पत्तियों को पूरी तरह से नष्ट कर सकते हैं, और बड़ी मात्रा में मल पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं। इस स्थिति में एक विशेष चारा ही प्रभावी उपाय हो सकता है। इसके लिए 2-3 लीटर पानी में 10 किलोग्राम चावल की भूसी और 2 किलोग्राम गुड़ मिलायें। फिर इस मिश्रण को 24 घंटे तक के लिए रख दें।
खेतों में इसके इस्तेमाल से आधे घंटे पहले 100 ग्राम थार्योडिकार्ब 75% WP मिलाएँ और 0.5-1 से०मी० व्यास के आकार की गोलियाँ तैयार करें। इसके बाद इस जहरीले पदार्थ को शाम के समय पौधे की पत्तियों में डाल दें। एक एकड़ के लिए इतना मिश्रण पर्याप्त रहेगा।
स्टेम बोरर कीट
मक्के की फसल में तना छेदक कीट यानि स्टेम बोरर का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। यह कीट जमीन में ही पाया जाता है। मक्के की फसल के बढ़ने के साथ-साथ तने की ऊपरी हिस्से में इसका हमला होता है। भूरे और सफेद रंग के इस कीट का मुंह काला होता है जो 20 से 25 मिली मीटर तक लंबा होता है। इसके अलावा इनके शरीर पर चार भूरी धारियां भी पाई जाती हैं।
स्टेम बोरर कीट के कारण फसल को होने वाली हानि
स्टेम बोरर कीट मक्के के तने से चिपक कर तने को खा जाता है, जिसके कारण पौधे में फल लगने की संभावना कम हो जाती है। इससे तना कमजोर होकर टूट जाता है या फिर इसका उचित विकास नहीं हो पाता है। कुल मिलाकर कीट का संक्रमण होने के कारण फसल खराब होने की संभावना काफ़ी हद तक बढ़ जाती है।
स्टेम बोरर कीट की रोकथाम के उपाय
इस कीट से बचाव के लिए किसान बीज शोधन के साथ-साथ भूमि शोधन जरूर करें। आप इस कीट की रोकथाम के लिए 1 लीटर डाइ मेथोएट 30% का 500 लीटर पानी में घोल बनायें, और प्रति हेक्टेयर भूमि के अनुसार इसका छिड़काव करें। इस दवा का छिड़काव करके मक्के की फसल में तना छेदक कीट की रोकथाम की जा सकती है।
किसान साथी तना छेदक कीट की रोकथाम के लिए मोनोप्रोटोफास 2 ml प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं। ये भी इस कीट को नियंत्रित करने का काफ़ी कारगर तरीक़ा है। किसान साथी एक और बात का विशेष ध्यान रखें कि शाम के समय ही दवा का छिड़काव करें, इससे फसल पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा।
FAQ
मक्के की खेती खरीफ व जायद दोनों में की जाती है। इसकी खेती के लिए उचित जल निकास वाली बलुई मटियार से दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। वहीं फसल के अच्छे विकास के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
मक्का की फसल में पत्ती झुलसा, डाउनी मिल्डयू, तना सड़न, तुलासिता रोग, तना छेदक, गेरूआ रोग, पत्ती लपेटक कीट, दीमक, सूत्रकृमि आदि रोग/ कीट प्रमुखता से पाए जाते हैं।
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