Plant Diseases

मूंगफली की खेती में लगने वाले रोग-कीट व उनके नियंत्रण के उपाय!

मूंगफली की खेती में लगने वाले रोग-कीट व उनके नियंत्रण के उपाय!
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!

खरीफ सीजन के दौरान मूंगफली की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। यह देश के कई प्रमुख राज्यों जैसे गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में व्यापक रूप से उगाई जाती है। मानसून के बाद खेतों में कीट और रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है, और मूंगफली की फसल इससे अछूती नहीं रहती।

समय पर इन समस्याओं की पहचान, रोकथाम और उपचार करना बेहद आवश्यक है। बहुत से किसान कीट-रोगों के लक्षणों को सही तरीके से पहचान नहीं पाते, जिससे फसल को भारी नुकसान हो सकता है। यहां हम कुछ प्रमुख कीट-रोगों और उनके लक्षणों के साथ-साथ उनके समाधान की जानकारी दे रहे हैं।

प्रमुख कीट-रोग और उनके समाधान

रोजट रोग

रोजट रोग मूंगफली के पौधों को प्रभावित करता है, जिससे पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगता है। यह रोग माहू कीट द्वारा फैलता है। इस रोग की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोरपिड की 1 मि.ली. मात्रा को 3 लीटर पानी में घोलकर पौधों पर छिड़काव करना फायदेमंद होता है।

आपकी फसल के सम्पूर्ण विकास के लिए ग्रामिक लाया है ‘ग्रामिनो’, जो हर फसल व फसल की हर अवस्था के लिए उपयोगी है। इस PGR पर आकर्षक छूट पाने के लिए अभी अपना ऑर्डर प्लेस करें। 

मूंगफली की खेती में रोजट रोग

टिक्का रोग

टिक्का रोग के प्रभाव से मूंगफली की पत्तियां सूखकर झड़ने लगती हैं और पौधों में केवल तीन तने बचते हैं। इस रोग का शुरुवाती असर पत्तियों पर छोटे गोल धब्बों के रूप में देखा जा सकता है। रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 नामक दवा की 2 किग्रा मात्रा को 1,000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। अधिक प्रकोप की स्थिति में इस घोल का हर 10 दिन में 2-3 बार छिड़काव करें।

मूंगफली की खेती में टिक्का रोग

रोमिल इल्ली

रोमिल इल्ली कीट मूंगफली के पौधों को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। ये कीट पत्तियों पर अंडे देते हैं, जिनसे लार्वा निकलकर पूरी फसल को नष्ट कर सकते हैं। इन कीटों की रोकथाम के लिए पौधों के तनों को काटकर जलाना चाहिए जब कीट का प्रकोप या इसके अंडे दिखाई दें।

मूंगफली की खेती में रोमिल इल्ली

माहू कीट

माहू कीट मूंगफली की पत्तियों के रस को चूसकर पौधे को कमजोर बना देते हैं। इस कीट के कारण पत्तियां पीली पड़कर मुरझा जाती हैं। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए इमिडाक्लोरपिड की 1 मि.ली. मात्रा को 1 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए।

आपकी फसल में रोग नियंत्रण के लिए ग्रामिक पर कई उपयोगी रासायनिक दवाएँ उपलब्ध हैं। अभी ऑर्डर करें।

मूंगफली की खेती में माहू कीट

लीफ माइनर

लीफ माइनर कीट पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे बनाते हैं और उन्हें खाना शुरू कर देते हैं। इनकी रोकथाम के लिए नीम का तेल और गौमूत्र मिलाकर घोल बनाएं और प्रति हेक्टेयर फसल पर छिड़काव करें।

जड़ गलन रोग

खेत में पिछले मौसम के संक्रमित अवशेषों को नष्ट करें। मूंगफली की कॉलर रॉट प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें और बीजों को बुआई से पहले 3 ग्राम थीरम और 2 ग्राम मैन्कोजेब से उपचारित करें। इसके अलावा, बुआई से 15-20 दिन पहले 2.5 किग्रा ट्राइकोडर्मा पाउडर को 500 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर खेत में मिलाएं। इस रोग के लक्षण दिखने पर मैन्कोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर अधिक प्रभावित क्षेत्रों में सिंचाई करें।

मूंगफली की खेती में जड़ गलन रोग

मूंगफली की खेती में कीट-रोगों की रोकथाम के लिए सही समय पर उपाय करने से आपकी उपज शानदार होगी। अगर आपके पास इस विषय से संबंधित कोई और प्रश्न हैं, तो कृपया कॉमेंट सेक्शन में पूछें, हम जल्द ही अपने ब्लॉग्स के माध्यम से आपके सवाल का जवाब देंगे।

मूंगफली की खेती के बारे में विस्तार से जानने के लिए ग्रामिक पर ये ब्लॉग पढ़ें।

FAQ

मूंगफली की खेती किस मौसम में की जाती है?

मूंगफली की खेती भारत में जून के दूसरे पखवाड़े से जुलाई के पहले पखवाड़े तक की जाती है।

मूंगफली की खेती के लिए सबसे उपयुक्त भूमि कौन सी होती है?

मूंगफली की खेती के लिये अच्छे जल निकास वाली भुरभुरी दोमट व बलुई दोमट अच्छी मानी जाती है।

मूंगफली की पौधरोपण की सही तकनीक क्या होती है?

मूंगफली की खेती में पौधरोपण के समय गहराई 3-5 सेमी तक रखें। पौधों से पौधों की दूरी 30-45 सेमी होनी चाहिए।

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