भारत में मूंगफली की खेती एक प्रमुख तिलहन फसल के रूप में होती है, जिससे लाखों किसान अपनी आजीविका चलाते हैं। सही समय और उन्नत तकनीक से की गई मूंगफली की खेती बेहतर उत्पादन और अधिक लाभ सुनिश्चित करती है। आइए जानते हैं मूंगफली की खेती से जुड़ी सभी जरूरी जानकारी।

मूंगफली की बुवाई का सही मौसम
मूंगफली की बुवाई मुख्यतः तीन मौसमों में की जाती है—खरीफ, रबी और गर्मी। खरीफ मौसम (जून-जुलाई) मूंगफली के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है, क्योंकि यह वर्षा आधारित खेती के लिए अनुकूल होता है। रबी मौसम (अक्टूबर-नवंबर) में बुवाई उन क्षेत्रों में होती है जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो। वहीं, गर्मी की फसल (फरवरी-मार्च) में मूंगफली की खेती उन किसानों के लिए फायदेमंद होती है जिनके पास सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। मौसम के अनुसार बुवाई करना उपज पर अच्छा प्रभाव डालता है।
उपयुक्त मिट्टी और बीज का चयन
मूंगफली की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है, जिसका pH स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। जल निकासी की अच्छी व्यवस्था अत्यंत आवश्यक है ताकि जड़ सड़न जैसी बीमारियों से फसल सुरक्षित रहे। बीज के चुनाव में किसान TAG-24, JL-24, GG-20, K-6 जैसी उन्नत किस्मों का चयन कर सकते हैं। बीज की गुणवत्ता अच्छी होनी चाहिए, जिससे अंकुरण अच्छा हो और पौध स्वस्थ रहे। उन्नत गुणवत्ता के बीज आप ग्रामिक से घर बैठे ऑर्डर कर सकते हैं।
बीज उपचार और बुवाई विधि
बुवाई से पहले बीज का फफूंदनाशक (थायरम या कार्बेन्डाजिम) और राइजोबियम कल्चर से उपचार करना बेहद जरूरी है। इससे नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद मिलती है और फसल की बढ़वार बेहतर होती है। कतार से कतार की दूरी 30-45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखनी चाहिए। बीज को 4-5 सेमी की गहराई में बोना चाहिए ताकि अंकुरण ठीक से हो।
खाद और उर्वरक प्रबंधन
मूंगफली की खेती में जैविक खाद जैसे गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट (5 टन प्रति हेक्टेयर) का प्रयोग लाभकारी होता है। साथ ही, रासायनिक उर्वरक जैसे NPK 13:00:45 का संतुलित उपयोग करना चाहिए। फूल आने के समय बोरॉन और कैल्शियम का छिड़काव फसल की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद करता है।

सिंचाई और निराई-गुड़ाई
खरीफ में यदि वर्षा पर्याप्त हो, तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। रबी और गर्मी की फसलों में 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। साथ ही, समय-समय पर खरपतवार हटाने से फसल को पूरा पोषण मिलता है और उत्पादन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
रोग और कीट नियंत्रण
मूंगफली की फसल में टिक्का रोग, जड़ सड़न, सफेद लट जैसे रोग व कीट लग सकते हैं। इनसे बचने के लिए जैविक कीटनाशकों, नीम आधारित छिड़काव और ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक उपायों का प्रयोग करना चाहिए। इससे उत्पादन सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल होता है।
कटाई और भंडारण
जब पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगें और फलियों का रंग गहरा हो जाए, तब फसल की कटाई करनी चाहिए। कटाई के बाद मूंगफली को अच्छी तरह से धूप में सुखाकर संग्रह करें ताकि वह लंबे समय तक खराब न हो। भंडारण के लिए सूखी और हवादार जगह चुनें।
मूंगफली की खेती के फायदे
मूंगफली की खेती कम लागत में अधिक मुनाफा देती है। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है और अंतरवर्तीय फसल के रूप में भी प्रयोग की जा सकती है। साथ ही, इसकी बाजार में मांग अधिक होने के कारण किसानों को अच्छी कीमत मिलती है।
अगर आप मूंगफली की खेती करने का प्लान बना रहे हैं, तो उपयुक्त मौसम, उन्नत किस्में, जैविक खाद, और वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग जरूर करें। इससे न केवल आपकी पैदावार बढ़ेगी, बल्कि लाभ भी कई गुना हो सकता है। खेती व पशु पालन से जुड़ी ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियाँ पाते रहने के लिए ग्रामिक के आने वाले सभी ब्लॉग ज़रूर पढ़ें।
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