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बैंगन की खेती अब भारत के कई क्षेत्रों में लगभग वर्ष भर की जाती है। बाजारों में इस सब्ज़ी की अच्छी मांग होने के कारण इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा हो सकता है। बैंगन के फल मुख्यत हरे और बैंगनी रंग के होते हैं, लेकिन आज हम आपको बैंगन की एक अलग किस्म के बारे में बताएंगे, जिसकी मांग अन्य बैंगन की तुलना में ज़्यादा देखी जाती है। जी हां, हम बात कर रहे हैं सफेद बैंगन की खेती की।
कैसा होता है सफेद बैंगन
सफेद बैंगन के आकार की बात करें तो ये थोड़ा घुमावदार व तिरछा होता है, और इसकी लंबाई लगभग 10 से 17 सेंटीमीटर तक होती है। इस बैंगन की बाहरी त्वचा चिकनी, चमकदार होती है, और जैसा कि नाम से पता चलता है कि इसका रंग सफेद होता है। सफेद बैंगन के स्वाद की बात करें तो ये हल्का मीठा व क्रीमी होता है। वहीं ये आकार में अंडे कैसा गोल व लगभग 1 फुट का होता है – सफेद बैंगन के बीज
कब करें बैंगन की खेती
बैंगन की खेती यूं तो पूरे साल की जा सकती है, हालांकि सफेद बैंगन की खेती करने के लिए मार्च व अप्रैल का शुरुवाती सप्ताह उपयुक्त माना जाता है। कई क्षेत्रों में किसान इसकी खेती दिसंबर में भी करते हैं। बाज़ार में सफेद बैंगन अभी कम उपलब्ध होते हैं, और इसकी मांग सिर्फ़ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है। यही कारण है कि इनका मूल्य सामान्य बैंगन की तुलना में अधिक होता है। ग्रामिक से उन्नत किस्म के बैंगन बीज अभी ऑर्डर करें, और घर बैठे ये बीज प्राप्त करें।
सफेद बैंगन की खेती के लिए नर्सरी की तैयारी
सफेद बैंगन की खेती के लिए सबसे पहले नर्सरी तैयार की जाती हैं, इसके बाद इसके पौधों की रोपाई की जाती है। नर्सरी के लिए किसान साथी सबसे पहले 1 से 1.5 मीटर लंबी और 3 मीटर चौड़ी क्यारियां तैयार कर लें, और मिट्टी को कुदाल से भुरभुरी कर लें। इसके बाद प्रति क्यारी 200 ग्राम डीएपी का छिड़काव करके भूमि को समतल कर लें।
इसके बाद सफेद बैंगन के बीज की बुवाई करें। बुवाई के बाद बीजों को मिट्टी से ढक दें। फिर पूरी नर्सरी को जूट की बोरी या किसी लंबे कपड़े से ढककर उस पर पुआल बिछा दें। किसान साथी ध्यान रखें कि 15 दिन के अन्तराल पर दो बार बैंगन के खेत की गुड़ाई करें, इससे पौधे अच्छी तरह विकसित होंगे।
सफेद बैंगन की देख-रेख
सफेद बैंगन की खेती में बहुत अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, हालांकि एक सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करें। इसके बाद जरूरत को देखते हुए समय-समय पर इसकी सिंचाई करते रहें। फसल से अच्छी उपज लेने के लिए आप इसमें जैविक खाद व अन्य उर्वरक का इस्तेमाल कर सकते हैं। सफेद बैंगन मल्चिंग पर लगाना उचित होता है और अच्छे उत्पादन के लिए ड्रिप विधि से इसकी सिंचाई की जानी चाहिए।
सफेद बैंगन में लगने वाले कीट व रोग
सफेद बैंगन की फसल को कुछ कीटों व रोगों से नुकसान का भी ख़तरा होता है, इसलिए चलिए इनकी रोकथाम के बारे में भी बात कर लेते हैं-
सफेद बैंगन में लगने वाले कीट
चेपा:
पौधों पर मकौड़ा जुंएं, चेपा और मिली बग भी हमला करते हैं। ये पत्ते का रस चूसते हैं और पत्ते पीले पड़ कर झड़ने शुरू हो जाते हैं।
अगर फसल में चेपे और सफेद मक्खी का हमला दिखे तो Imidacloprid 17.8 SL 100ml/acre की स्प्रे करें। सफेद मक्खी के नुकसान को देखते हुए एसेटामीप्रिड 5 ग्राम प्रति 15 लीटर की स्प्रे करें।
थ्रिप:
थ्रिप के हमले को मापने के लिए 6-8 प्रति एकड़ नीले फेरोमोन कार्ड लगाएं और हमले को कम करने के लिए वर्टीसिलियम लिकानी 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। थ्रिप का ज्यादा हमला होने पर Imidacloprid 17.8 SL 100ml/acre की स्प्रे करें।
पत्ता खाने वाली सुंडी:
कईं बार फसल की शुरूआत में इस कीड़े का हमला नज़र आता है। इसकी रोकथाम के लिए नीम वाले कीटनाशकों का प्रयोग करें। यदि कोई असर ना दिखे और हमला बढ़ रहा हो तो रासायनिक कीटनाशक जैसे कि एमामैक्टिन बैंज़ोएट 4 ग्राम लैंबडा साइहैलोथ्रिन 2 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें।
सफेद बैंगन में लगने वाले रोग
बैंगन के पौधों में भी कई तरह के रोग लगने की संभावना होती है, जिससे फलों का बचाव करना जरूरी होता है। यदि इन रोगो की रोकथाम समय पर नहीं की जाती है, तो पैदावार पर अधिक प्रभाव पड़ता है।
जड़ गलन
यह बीमारी नमी और बिना जल निकास वाली मिट्टी में होती है। यह ज़मीन से पैदा होने वाली बीमारी है। इस बीमारी से तने पर धब्बे और धारियां पड़ जाती हैं। इससे छोटे पौधे अंकुरण से पहले ही मर जाते हैं। नर्सरी में ये रोग लगने पर सारे पौधे नष्ट हो जाते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीजों को थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज के अनुपात में उपचारित करें। बिजाई से पहले नर्सरी वाली मिट्टी को सूर्य की रोशनी में खुला छोड़ें। यदि नर्सरी में ये रोग दिखे तो रोकथाम के लिए नर्सरी में से पानी का निकास करें और मिट्टी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर डालें।
झुलसा रोग व फल गलन
इस बीमारी से पत्तों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। यह दाग फलों पर भी नज़र आते हैं। जिस कारण फल काले रंग के होने शुरू हो जाते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीजों को थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। इस बीमारी की रोधक किस्मों का प्रयोग करें यदि खेत में हमला दिखे तो मैनकोज़ेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
सूखा रोग
इस बीमारी से फसल पीली पड़ने लग जाती है और पत्ते झड़ जाते हैं। सारा पौधा सूखा हुआ नज़र आता है प्रभावित तने को यदि काटकर पानी में डुबोया जाये तो पानी सफेद रंग का हो जाता है।
इसकी रोकथाम के लिए फसली चक्र अपनाएं। ऐसा करने से इस बीमारी को फसल को बचाया जा सकता है। प्रभावित पौधों के हिस्सों को खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें। बीमारी के हमले को रोकने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की आवश्यकतानुसार मात्रा को पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
सफेद बैंगन के लाभ
- सफेद बैंगन में पाया जाने वाला फाइबर लोगों में कब्ज, गैस, एसिडिटी आदि समस्याओं से निजात दिलाता है।
- इसके अलावा इस बैंगन में मौजूद पोषक तत्व खून में खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करके अच्छे कोलेस्ट्रॉल की आपूर्ति करते हैं।
- सफेद बैंगन में शरीर के विषाक्त तत्वों को खत्म करने के गुण भी पाए जाते हैं, जो हमारी किडनी को स्वस्थ रखने के लिए बेहद उपयोगी हो सकता है। इस बैंगन में फाइटोन्यूट्रिएंट्स नामक प्राकृतिक रसायन पाए जाते हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक माना जाता है। ये मनुष्य के शरीर व मस्तिष्क में रक्त प्रवाह को बेहतर करने में सहायक होता है, जिससे याददाश्त अच्छी होती है।
- सफेद बैंगन की खेती से उपज की बात करें तो एक साल में प्रति हेक्टेयर लगभग 100 टन तक की उपज ली जा सकती है।
FAQ
सफेद बैंगन की खेती के लिए मार्च- अप्रैल का महीना उपयुक्त माना जाता है। वहीं सामान्य बैंगन की खेती की बात करें तो बैगन की शरदकालीन फसल के लिए जुलाई-अगस्त में ग्रीष्मकालीन फसल के लिए जनवरी-फरवरी में एवं वर्षाकालीन फसल के लिए अप्रैल-मई में पौधे की रोपाई की जाती है।
सफेद बैंगन की नर्सरी करीब 35-40 दिन की होती है। इसे खेतों में रोपने के लगभग 70-90 दिन बाद बैंगन पहली हार्वेसिंग के लिए तैयार हो जाता है।
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