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Drumstick cultivation: सहजन की खेती कर पाएं अनेकों लाभ, यहाँ जानें तकनीक!

सहजन की खेती
Written by Gramik

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सहजन, जिसे ड्रमस्टिक और मोरिंगा ओलीफेरा के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण पौष्टिक और औषधीय पौधा है। इसकी खेती न केवल भारत में बल्कि फिलीपींस, हवाई, मैक्सिको, श्रीलंका और मलेशिया जैसे कई देशों में की जाती है।

यह पौधा विटामिन्स, प्रोटीन, और लौह तत्वों से भरपूर होता है, और इसके सभी भाग उपयोग में आते हैं। यह पौधा बिना किसी विशेष देखभाल और शून्य लागत पर भी आमदनी देने वाला साबित हो सकता है। यही कारण है कि सहजन का महत्व अब न केवल दक्षिण भारत में बल्कि पूरे देश में समझा जा रहा है।

सहजन की खेती

सहजन की खेती की विधि

सहजन की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है, लेकिन व्यवसायिक खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी (पी.एच. मान 6-7.5) सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह पौधा 25-30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर सबसे अच्छा बढ़ता है और ठंड को सहन कर सकता है, लेकिन पाला से इसे नुकसान होता है। सहजन के फूल आते समय यदि तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाए तो फूल झड़ने लगते हैं, जिससे उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है।

सहजन की खेती बीज और शाखा दोनों से की जा सकती है। बीज से उगाए पौधे साल में दो बार फल देते हैं। सहजन की खेती के लिए खेत को अच्छी तरह खरपतवार मुक्त करने के बाद 2.5 x 2.5 मीटर की दूरी पर 45 x 45 x 45 सेंमी. आकार के गड्ढे बनाएं और इसमें 10 किलोग्राम सड़ा हुआ गोबर का खाद मिलाकर भरें। बीज को सीधे गड्ढों में या पॉलीथीन बैग में उगाकर लगाया जा सकता है। एक महीने के बाद पॉलीथीन बैग में तैयार पौध को गड्ढों में जून से सितंबर तक रोपा जा सकता है।

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सहजन की खेती की सिंचाई व खाद

सिंचाई और खाद सहजन की खेती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रोपाई के तीन महीने बाद 100 ग्राम यूरिया, 75 ग्राम सुपर फास्फेट और 75 ग्राम पोटाश प्रति गड्ढा डालें। तीन महीने बाद पुनः 100 ग्राम यूरिया डालें।

फूल लगने के समय खेत सूखा या ज्यादा गीला रहने से फूल झड़ने की समस्या हो सकती है, इसलिए नमी बनाए रखें। सहजन के पौधों को बेहतर उत्पादन के लिए नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। यदि बीज से प्रबर्द्धन किया गया है, तो बीज के अंकुरण और अच्छी तरह से स्थापना तक नमी का बना रहना आवश्यक है।

सहजन की खेती

सहजन की खेती में कीट व रोग प्रबंधन

सहजन की खेती के दौरान कीट और रोगों का प्रबंधन भी जरूरी है। दीमक की समस्या होने पर मिट्टी में इमिडाक्लोप्रिड 600 FS का छिड़काव करें। जैविक फफूंदनाशी बुवेरिया या मेटारिजियम एनिसोपली की एक किलो मात्रा 100 किलो गोबर की खाद के साथ मिलाकर खेत में डालें।

रसचूसक कीटों से बचाव के लिए एसिटामिप्रीड या थियामेंथोक्साम का 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। फल मक्खी रोग से बचाव के लिए डाइक्लोरोवास के 5 मिली को 1 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। जड़ सड़न रोग की समस्या होने पर बीज का उपचार 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा से करें और कार्बेन्डाजिम को पानी में मिलाकर जमीन के तने के पास डालें।

सहजन में पाए जाने वाले पोषक तत्व

सहजन में कई प्रकार के विटामिन्स और पोषक तत्व पाए जाते हैं। यह प्रोटीन, विटामिन-बी, विटामिन-सी, पोटैशियम और लौह तत्वों से भरपूर होता है। इसमें दूध की तुलना में चार गुणा अधिक पोटैशियम और संतरे की तुलना में सात गुणा अधिक विटामिन-सी पाया जाता है।

इसके पत्ते, फूल और फल सभी खाने योग्य होते हैं और विभिन्न व्यंजनों में उपयोग किए जाते हैं। दक्षिण भारत में सहजन के फूल, फल और पत्तियों का उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में साल भर किया जाता है।

सहजन की खेती

सहजन की खेती से आर्थिक लाभ

सहजन की खेती से न केवल घरेलू उपयोग के लिए पौष्टिकसब्जी प्राप्त होती है, बल्कि इसे बेचकर आर्थिक सम्पन्नता भी हासिल की जा सकती है। सहजन के दुधारू जानवरों को चारा के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है, जिससे उनके स्वास्थ्य और दूध उत्पादन में वृद्धि होती है।

सहजन के पौधों से निकलने वाले गूदे का उपयोग कपड़ा और कागज उद्योग में भी किया जाता है। आजकल सहजन से दवा बनाकर अनेक दवा कंपनियां (पाउडर, कैप्सूल, तेल, बीज आदि) विदेशों में निर्यात कर रही हैं। दियारा क्षेत्र में सहजन के नए प्रभेदों की खेती को बढ़ावा देकर न केवल स्थानीय बल्कि दूर-दराज के बाजारों में सब्जी के रूप में इसकी साल भर बिक्री कर आमदनी कमाई जा सकती है।

FAQ

सहजन क्या है और इसे किस नाम से जाना जाता है?

सहजन एक पौष्टिक और औषधीय पौधा है जिसे “मोरिंगा” या “ड्रमस्टिक” के नाम से भी जाना जाता है।

सहजन की खेती के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु क्या है?

सहजन की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे उपयुक्त है। इसे गर्म और शुष्क मौसम में अच्छा विकास होता है।

सहजन की खेती के लिए किस प्रकार की मिट्टी उपयुक्त है?

सहजन की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो।

सहजन के बीज कैसे और कब बोए जाते हैं?

सहजन के बीज को सीधे खेत में या नर्सरी में बोया जा सकता है। गर्मियों में फरवरी से मार्च और मानसून में जून से जुलाई इसका आदर्श बुवाई का समय है।

सहजन की खेती में किस प्रकार के कीट और रोगों का खतरा होता है?

सहजन की खेती में आमतौर पर एफिड्स, माइट्स, और कैटरपिलर जैसे कीटों का खतरा होता है। इसके अलावा, फफूंद जनित रोगों का भी खतरा हो सकता है।

सहजन की खेती से क्या लाभ हैं?

सहजन की खेती से कई लाभ होते हैं जैसे कि इसका पौष्टिक मूल्य, औषधीय गुण, और बाजार में अच्छी मांग। इसके पत्ते, फली, और फूल सभी उपयोगी होते हैं और विभिन्न रूपों में प्रयोग किए जा सकते हैं।

सहजन के पौधों का जीवनकाल कितना होता है?

सहजन के पौधों का जीवनकाल 20 वर्षों तक हो सकता है, यदि उनकी अच्छी देखभाल की जाए।

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