सूरजमुखी (Helianthus annuus) एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है, जिसका तेल उच्च गुणवत्ता वाला होता है और हृदय रोगियों के लिए लाभकारी माना जाता है। यह फसल खरीफ, रबी और जायद तीनों मौसम में उगाई जा सकती है, लेकिन जायद में इसकी उपज अधिक होती है। सही जलवायु, भूमि और कृषि तकनीकों को अपनाकर किसान इस फसल से अधिक उत्पादन और लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
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सूरजमुखी की खेती पर विस्तृत गाइड
जलवायु और भूमि
सूरजमुखी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और भूमि अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यह फसल खरीफ, रबी और जायद तीनों मौसम में की जा सकती है। परंतु फसल पकते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। यह फसल अम्लीय एवं क्षारीय भूमि को छोड़कर सिंचित दशा वाली सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है। दोमट भूमि को सर्वोत्तम माना जाता है।
प्रजातियाँ
सूरजमुखी की उन्नतशील प्रजातियाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं:
- सामान्य या संकुल प्रजातियाँ: मॉर्डन और सूर्य प्रमुख प्रजातियाँ हैं।
- संकर प्रजातियाँ: कावेरी चैम्प , केबीएसएच-1, एसएच 3322 और एफएसएच-17 प्रमुख हैं।
खेत की तैयारी
सूरजमुखी की फसल के लिए खेत की तैयारी जायद के मौसम में विशेष रूप से की जाती है। यदि खेत में नमी नहीं है तो पलेवा करके जुताई करनी चाहिए। एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए जिससे मिट्टी भुरभुरी बनी रहे और नमी संरक्षित रहे।
बुवाई का समय
जायद में सूरजमुखी की बुवाई का सर्वोत्तम समय फरवरी का दूसरा पखवाड़ा होता है। इस समय बुवाई करने पर मई के अंत या जून के पहले सप्ताह तक फसल पककर तैयार हो जाती है। देर से बुवाई करने पर वर्षा के कारण दानों का नुकसान हो सकता है।
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बुवाई की विधि:
- हल के पीछे 4-5 सेंटीमीटर गहराई पर बुवाई करनी चाहिए।
- लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर और पौध से पौध की दूरी 15-20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
फसल के सम्पूर्ण विकास के लिए ग्रामिक से मंगाएँ सबसे उपयुक्त प्लांट ग्रोथ रेगुलेटर ग्रामिनो – 1 लीटर / एकड़।
बीज की मात्रा एवं शोधन
बीज की मात्रा प्रजाति के अनुसार अलग-अलग होती है:
- सामान्य प्रजातियों में 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।
- संकर प्रजातियों में 5-6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।
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बीज शोधन:
- बुवाई से पहले 2-2.5 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करना चाहिए।
- बीज को रातभर भिगोकर सुबह छाया में सुखाने के बाद शाम 3 बजे के बाद बुवाई करनी चाहिए।
उर्वरक का प्रयोग
- मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।
- सामान्यतः 80 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस और 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
- नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय डालनी चाहिए।
- शेष नाइट्रोजन की मात्रा बुवाई के 25-30 दिन बाद ट्राइफोसीड के रूप में देनी चाहिए।
- खेत की अंतिम जुताई में 250-300 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट डालना लाभदायक होता है।
मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और फसल से बम्पर उत्पादन के लिए प्रयोग करें जैविक खाद सोलिओ गोल्ड – 1 लीटर / एकड़ ।
सिंचाई
- पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करनी चाहिए।
- इसके बाद 10-15 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए।
- कुल 5-6 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।
- फूल निकलते और दाना भरते समय हल्की सिंचाई करनी चाहिए ताकि पौधे गिरने न पाएँ।
निराई एवं गुड़ाई
- बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
- खरपतवार नियंत्रण हेतु पेंडामेथालिन 30 ईसी की 3.3 लीटर मात्रा को 600-800 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के 2-3 दिन के भीतर छिड़काव करना चाहिए।
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फसल सुरक्षा
- प्रमुख कीट: दीमक, हरे फुदके, डस्की बग।
- नियंत्रण हेतु मिथाइल ओडिमेंटान 1 लीटर (25 ईसी) या फेन्बलारेट 750 मिली प्रति हेक्टेयर 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
FAQs
सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी और जायद तीनों मौसम में की जा सकती है, लेकिन जायद (फरवरी-मार्च) का मौसम सबसे उपयुक्त होता है।
दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी अच्छी हो, सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
80 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस और 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होते हैं। साथ ही जैविक खाद का प्रयोग भी लाभकारी होता है।
जब बीज कठोर हो जाएँ और फूलों का रंग हल्का पीला या भूरा हो जाए, तब कटाई करनी चाहिए।
दीमक, हरे फुदके और डस्की बग सूरजमुखी के प्रमुख कीट हैं। इनके नियंत्रण के लिए उचित कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए।
सूरजमुखी की खेती उचित तकनीकों को अपनाकर अधिक लाभदायक बनाई जा सकती है। इसके लिए सही जलवायु, उर्वरक, सिंचाई और कीट नियंत्रण का ध्यान रखना आवश्यक है।
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