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फसल विविधीकरण खेती की एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें पारंपरिक तरीकों के साथ-साथ खेती के नए वैज्ञानिक तरीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार की खेती में आमदनी के लिए अन्य फसल प्रणालियों को भी जोड़ा जाता है।
चलिए इस ब्लॉग में जानते हैं कि फसल विविधीकरण क्या है, ये कितने प्रकार की होती है, और इसके लाभ क्या हैं?
फसल विविधीकरण के माध्यम से किसान अपने खेत में एक ही समय में कई तरह की फसलों का उत्पादन कर सकते हैं। देश के कई राज्यों में पानी, श्रम और मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर किसान एक ही खेत में अलग-अलग फसलों की खेती करके अच्छा मुनाफ़ा उठा रहे हैं।
फसल विविधिकरण के कई प्रकार हैं-
एकल फसली व्यवस्था (Mono Cropping)
इस प्रक्रिया में खेतों में मिट्टी और जलवायु के आधार पर बार-बार एक ही फसल उगाई जाती है। इस तरीके का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में होता है, जहां वर्षा का अभाव होता है, और सिंचाई की भी उचित व्यवस्था नहीं होती है। ऐसी फसल विविधीकरण का प्रयोग अधिकतर खरीफ के मौसम में किया जाता है।
अंतर फसली व्यवस्था (Intercropping)
इस विधि में खेतों में अलग-अलग कतार बनाकर एक साथ एक से ज्यादा फसलें उगाई जाती हैं। इस विधि को अंतरवर्ती खेती भी कहा जाता है। जैसे कि टमाटर की फसल के तीन कतार के बीच सरसों, आलू, मसूर और मटर की खेती की जा सकती है।
रिले क्रॉपिंग (Relay Cropping)
रिले क्रॉपिंग प्रणाली में खेत को कई हिस्सों में बाट दिया जाता हैं। इस विधि में भूमि के एक हिस्से में दो, तीन तरह की फसलें उगाई जा सकती हैं। इस पद्यति से खेती करने के लिए खेत में पहले बोई गई फसल की कटाई करने के बाद ही दूसरी फसल की बुवाई की जाती है।
मिश्रित अंतर फसली (Mixed Intercropping)
मिश्रित कृषि में एक खेत में एक समय में दो से तीन फसलों को अलग-अलग साथ में उगाया जाता है। इससे खेत की उत्पादन क्षमता बढ़ती है।
अवनालिका फसल प्रणाली (Alley Cropping)
एली क्रॉपिंग की खेती में बड़े पेड़ों की पंक्तियों के बीच सब्जियां और चारे वाली फसलें लगाई जाती हैं। इस फसल पंक्ति में पेड़ों के साथ सब्जियों का भी उत्पादन लेकर किसान अच्छी आमदनी ले सकते हैं।
फसल विविधीकरण के लाभ
फसल विविधीकरण से खेत में एक से अधिक फसल लगाने से कम लागत में ज़्यादा उपज ली जा सकती है। इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ेगी और खेत बंजर होने की भी संभावना कम रहेगी।
वहीं यदि हम खेत में सिर्फ़ पारंपरिक फसलों की ही बुवाई करते हैं, तो धीरे-धीरे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है, और इसका सीधा असर फसल की उपज पर पड़ता है।
फसल विविधीकरण से कृषि क्षेत्र में कीड़े, बीमारियां, खरपतवार की समस्या कम होती है, और खेती में खरपतवारनाशी व कीटनाशी की कम मात्रा की आवश्यकता होती है। इस विधि से खेती करने पर प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित किया जा सकता है, और पर्यावरण में भी सुधार होता है।
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