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Cucumber Farming: खीरा की खेती कैसे करें? ऐसे मिलेगी अच्छी पैदावार!

खीरे की खेती
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!

किसान साथियों, जायद और खरीफ सीजन में खीरे की खेती बड़े पैमाने पर होती है। आमतौर पर खीरे की मांग गर्मियों के मौसम में ज्यादा देखने को मिलती है क्योंकि इसकी तासीर ठंडी होती है। इसलिए यदि आप इस समय खीरे की बुवाई करते हैं, तो गर्मी में इसकी उपज से अच्छी आमदनी पा सकते हैं। 

खीरे की खेती

तो चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में जानते हैं कि खीरे की खेती कैसे करें।

खीरा की खेती के लिए आवश्यक मिट्टी

वैसे तो खीरा की खेती किसी भी उपजाऊ भूमि में की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी में इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए। इसके अलावा खीरे की खेती से अच्छी उपज लेने के लिए उसमें सिंचाई का भी विशेष ध्यान रखें। इसकी फसल अधिकतम 40 डिग्री तथा न्यूनतम 20 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकती है.

खीरा की खेती का समय

ग्रीष्म ऋतु में उपज लेने के लिए खीरे की बुवाई फरवरी व मार्च के महीने में की जाती है और वर्षा ऋतु के लिए इसकी बुवाई जून से जुलाई में करते है। वहीं, पर्वतीय क्षेत्रों में खीरे की खेती मार्च व अप्रैल महीने में की जाती है। ध्यान रहे बुवाई से पहले बीजों का उपचार जरूर करें, ताकि फसल में कीटों व रोगों का खतरा कम हो सके।

खीरे की खेती

खीरा की खेती वाले राज्य

खीरा की खेती लगभग देश के सभी राज्यों में की जाती है। लेकिन, सिर्फ 7 राज्यों में ही 70 फीसदी खीरा का उत्पादन होता है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के अनुसार मध्यप्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, असम और अन्य राज्यों में खीरा की खेती प्रमुख रूप से की जाती है।

खीरा की उन्नत किस्में

आज के समय बाजारों में खीरा की कई प्रजातियां उपलब्ध हैं, लेकिन किसान साथी अच्छी उपज के लिए ऐसी किस्मों का चयन करें, जो बीज आपके क्षेत्र की जलवायु में अच्छा उत्पादन दे सके। ग्रामिक पर आपको खीरे के बीज की कई उन्नत किस्में मिल जायेंगी, जिन्हें आप इस लिंक पर क्लिक करके ऑर्डर कर सकते हैं।

खीरा की खेती कैसे करें?

खीरा की खेती के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर लें। फिर खेत में पुरानी गोबर की खाद डाल दें। इसके बाद, फिर से खेत की अच्छी से जुताई कर लें। खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत में पानी देकर पलेवा करें, और पलेवा करने के बाद मिट्टी सूखने तक खेत को ऐसे ही छोड़ दें।

खीरे की खेती

इसके बाद, खेत में पाटा लगाकर उसे समतल कर लें, ताकि जलभराव की समस्या न हो। फिर, बीजों की रोपाई के लिए खेत में मेड़ या क्यारियां तैयार कर लें और इसमें खीरे की बुवाई करें। बुवाई करने के बाद एक सिंचाई तुरंत कर दें, और बाद में भी जरूरत के अनुसार सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण करते रहें।

खीरा की जैविक खेती

खीरा की खेती से अधिक पैदावार के लिए खेत में जैविक खाद और कम्पोस्ट खाद का प्रयोग ज़रूर करें।  खेत तैयार करते समय 200 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या 100 क्विंटल नाडेपा कम्पोस्ट, 70 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें। बुआई के एक महीने बाद नीम का काढ़ा तथा उचित मात्रा में गौमूत्र मिलाकर फसल में 10 से 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।

खीरा की खेती में सिंचाई

खीरा के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नही होती है। इसके पौधों को केवल 3 से 4 सिंचाई की जरुरत होती है। यदि आप इसकी खेती गर्मी के मौसम में करते हैं तो फिर आपको 8 से 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई कर देनी चाहिए। वहीं, यदि आप इसकी खेती बरसात के मौसम में करते हैं, तो इसमें ज्यादा सिंचाई करने की ज़रूरत नही होती है।

खीरा की खेती मे लगने वाले रोग

खीरे की खेती में रोग

खीरा मोजैक वायरस

लक्षण

इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों में छोटे-छोटे पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। यह धब्बे सामान्य तौर पर शिराओं से शुरू होते हैं। कुछ समय बाद पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं। इसके अलावा पौधों के विकास रुक जाता है।

यदि पौधों में फल आ गए हैं तो फलों पर भी हल्के पीले रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं।

नियंत्रण

  • रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।
  • मोजेक वायरस रोग से प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें। 
  • रोग की प्रारंभिक अवस्था में प्रति लीटर पानी में 2 से 3 मिलीलीटर नीम का तेल मिलाकर छिड़काव करें।
  • प्रति लीटर पानी में 2 मिलीलीटर डाईमेथोएट 30 ई.सी. मिलाकर छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर 10 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव कर सकते हैं।
  • इसके अलावा प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल. मिलाकर भी छिड़काव किया जा सकता है।

चूर्णिल आसिता (Powdery Mildew disease)

लक्षण

पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण मुख्य रूप से पहले पत्तियों और तनों पर दिखाई देतें हैं। ये रोग होने पर पत्तों और तनों पर सफ़ेद रंग के पाउडर के समान दिखाई देतें हैं। पाउडरी मिल्ड्यू से प्रभावित हिस्सों पर हाथ लगाने पर उंगलियों में पाउडर जैसा लग जाता है।  

पाउडरी मिल्ड्यू रोग के कारण पौधों की उचित वृद्धि नहीं हो पाती हैं, और फसल में फूल व फल नहीं बन पाते हैं।  

नियंत्रण 

  • खीरे के बीज की बुवाई करने के पहले खेत की गहरी जुताई करें। 
  • बीज को बुवाई करने से पहले बीजोपचार कर के बुवाई करें।  
  • पाउडरी मिल्ड्यू रोग के नियंत्रण के लिए यूपीएल क्यूप्रोफिक्स (Copper Sulphate 47.15% + Mancozeb 30% WDG) 2 किलो प्रति एकड़ के अनुसार छिड़काव करें।

मृदुरोमिल आसिता (Downy Mildew disease)

यह रोग बारिश में तेजी से फैलता है. इस रोग से पत्तियों पर धब्बे पड़ने लगते हैं, इसके साथ ही पत्तियों की ऊपरी सतह पीली पड़ जाती है।

रोकथाम

इस रोग की रोकथाम के लिए बीज को उपचारित करके बोएं। इसके लिए बीज को कृषि विशेषज्ञ द्वारा सुझाए गए कवकनाशी से उपचारित कर लें। इसके अलावा आप खड़ी फसल में मैंकोजेब का घोल बनाकर भी छिड़काव कर सकते हैं। इसकी मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि आपने कितनी भूमि में खेती की है।

फल विगलन रोग 

लक्षण

यह रोग मुख्य रूप से खीरा, तोरई, परवल, लौकी आदि में पाया जाता है। कवक की ज्यादा वृद्धि होने पर फल सड़ने लगता है। ज़मीन पर पड़े फलों का छिलका नरम, गहरे हरे रंग का हो जाता है। इस सड़े हुए भाग पर रूई जैसे घने कवकजाल बन जाते हैं। यह रोग भंडारण और परिवहन के समय भी फलों में फैलता है।

नियंत्रण 

  • खेत में उचित जल निकाल की व्यवस्था करें।
  • फसल को किसी तार के ऊपर चढ़ाकर या मल्चिंग विधि से खेती करने से इस रोग का प्रभावी नियंत्रण होता है।
  • भंडारण एवं परिवहन के समय फलों को चोट लगने से बचाएं, साथ ही उसे हवादार व खुली जगह पर रखें।

खीरा की खेती मे लगने वाले कीट

खीरे की खेती में कीट

मक्खी कीट

मक्खी कीट फसल में फूल आने से पहले भूमि और तने पर अण्डा देता है, जिससे सड़न शुरू हो जाती है, और धीरे-धीरे पौधा सूख जाता है। बता दें कि ये कीट फल के जिस हिस्से पर अंडा देता वो हिस्सा खराब हो जाता है।

रोकथाम

इस तरह के कीट पतंगों से खीरे की फसल को बचाने के लिए किसान फेरोमेन ट्रैप, सोलर ट्रैप आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो कीटों को नियंत्रित करते हैं। ये ट्रैप ग्रामिक से बहुत ही किफायती मूल्य पर ऑर्डर करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। इसके अलावा मिथाइल इंजीनॉल, सिनट्रोनेला तेल, एसिटिक अम्ल, लेक्टिक एसिड में से किसा एक का घोल तैयार करके फसल पर छिड़काव करें।

लाल पम्पकिन बीटल

इस कीट का प्रकोप जनवरी से मार्च के बीच ज़्यादा देखा जाता है। लाल पम्पकिन बीटल पौधों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है, जिससे पौधा सूखने लगता है। इसके साथ ही पुराने और बड़े पौधे पीले पड़ने लगते हैं, और उनका विकास रुक जाता है।

रोकथाम

इस कीट के प्रकोप में कीड़े को हाथ से पकड़कर मार देना चाहिए। इसके साथ ही ज़रूरत पड़ने पर मैलाथियान चूर्ण, या कार्बारिल चूर्ण में राख मिलाकर फसल में छिड़काव कारें। ध्यान रहे कि इसका छिड़काव सुबह के समय ही करें। इन दवाओं की मात्रा अपने खेत के क्षेत्रफल के अनुसार किसी कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर ही निर्धारित करें।

FAQ

खीरा की खेती कब करें?

खीरा लगाने का उचित समय फरवरी-मार्च माना जाता है। हालांकि बुवाई का समय स्थान विशेष की जलवायु पर निर्भर करता है।

खीरा कितने दिन में तैयार हो जाता है?

खीरा की फसल 40 से 45 दिन में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। हालांकि की ये समय इस बात पर निर्भर करता है कि आपने किस किस्म का चुनाव किया है।

खीरा की फसल में कितनी बार सिंचाई करें?

खीरा की फसल में आम तौर पर 3 से 4 सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है। हालांकि ये जलवायु और मौसम पर भी निर्भर करता है।

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