प्रिय पाठकों, ग्रामिक के [इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!
आधुनिक खेती किसानों के लिए पहले के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद साबित हो रही है। किसान अब नई-नई फसलों की वैज्ञानिक तरीके से खेती करने की तरफ रूख कर रहे हैं। इनमें से कसावा की खेती भी एक है। जी हाँ, कसावा वो पौधा है जिससे साबूदाना बनाया जाता है।
हालांकि, साबूदाने को देखते ही बहुत सारे लोगों के मन में ये सवाल आता होगा कि आखिर साबूदाना बनता कैसे है? क्या ये कोई फल है, या फैक्ट्री में बनता है? तो चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में साबूदाना की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं।
दक्षिण भारत के साथ ही मध्य प्रदेश में खेती
कसावा की खेती मुख्य रूप से दक्षिण भारत में की जाती है, जिसमें तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल आदि प्रमुख है। वहीं अब मध्य प्रदेश में भी इसकी खेती की जाने लगी है। कसावा की खासियत ये है कि इसकी खेती कम पानी व कम उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है।
खेती के लिए जलवायु और मिट्टी
कसावा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी की बात करें तो इसके लिए उचित जल निकासी वाली मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। वहीं जलवायु की बात करें तो यह फसल गर्म व नम जलवायु में अच्छे से विकास करती है। वहीं इसका पौधा एक बार लग जाने के बाद सूखा पड़ने के बाद भी उपज देता है।
कसावा की खेती का तरीका
कसावा की खेती साल भर में कभी भी की जा सकती है। इसके लिए दिसंबर का महीना सबसे अच्छा माना जाता है. वहीं इसकी खेती की प्रमुख विधियों की बात करें तो टीला विधि, रिज विधि, समतल विधि आदि प्रमुख हैं। टीला विधि विधि का प्रयोग उस मिट्टी में किया जाता है, जहां अच्छी जलनिकासी होती है। इसमें 25-30 सेमी ऊंचे टीले बनाए जाते हैं, जिसमें कसावा के कंद की रोपाई की जाती है।
रिज विधि का प्रयोग बारिश वाले क्षेत्रों में ढलानदार भूमि में किया जाता है और सिंचित क्षेत्र में समतल भूमि में होता है। इसमें रिज की ऊंचाई की बात करें तो ये 25-30 सेंटीमीटर तक रखी जाती है। इसके अलावा तीसरी विधि है समतल विधि, जिसका उपयोग अच्छी जल निकासी वाली समतल भूमि में किया जाता है।
साबूदाना कैसे बनता है?
साबूदाना, कसावा (Tapioca) के कंद से बनता है, जो देखने में शकरकंद जैसा होता है। साबूदाना बनाने की प्रक्रिया की बात करें तो कसावा कंद को पहले अच्छी तरह धुला जाता है, फिर उसे छीलकर पीसा जाता है। इस तरह की प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद कंद का फाइबर अलग हो जाता है और द्रव के तौर पर सिर्फ इसका स्टार्च बचता है।
इसके बाद इस स्टार्च को बड़े-बड़े टैंक में भरकर उसे फर्मेंट किया जाता है, और इस फर्मेंटेशन की क्रिया के बाद पानी व स्टार्च अलग-अलग हो जाते हैं। फिर इस स्टार्च का पाउडर बनाकर उससे छोटी-छोटी गोलियां बनाई जाती हैं। इन गोलियों को थोड़ी देर गरम बर्तन में रखा जाता है, फिर उन्हें सुखा लिया जाता है।
FAQ
कसावा से साबूदाना बनाने के अलावा इसे पशुओं को भी खिलाया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार इससे पशुओं के दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है।
कसावा की खेती हर तरह की मिट्टी व जलवायु में की जा सकती है, हालांकि खेत में जलनिकासी की उचित व्यवस्था नहीं होनी चाहिए।
खेती से संबंधित और भी ब्लॉग पढ़ने के लिए किसान साथी ग्रामिक दिये गये लिंक पर क्लिक करें –
लैवेंडर की खेती
काली मिर्च की खेती
Herbs Farming
Post Views: 85
Leave a Comment