Plant Diseases

धान की फसल में लगने वाले रोग व रोग नियंत्रण के उपाय!

धान की फसल में लगने वाले रोग व रोग नियंत्रण के उपाय!
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!

धान की फसल से उपज कम मिलने की सबसे बड़ी वजह है इसमें लगने वाले कीट व रोगों का सही समय पर नियंत्रण नहीं होना। दुनियाभर में धान की फसल में लगने वाले कीट व रोगों के प्रकोप से सालाना लगभग 10 से 15 फीसदी उत्पादन कम होने का अनुमान है। 

ऐसे में सही समय पर फसल में कीट व रोगों की पहचान करके रोग नियंत्रण करना आवश्यक होता है। धान की फसल को मुख्यतः चार तरह के सूक्ष्म जीव जैसे कवक, जीवाणु, वायरस तथा नेमाटोड नुकसान पहुंचाते हैं। 

धान की फसल में लगने वाले रोग व रोग नियंत्रण के उपाय!

चलिए इस ब्लॉग में जानते हैं धान की फसल में रोग नियंत्रण के उपाय

धान की फसल में होने वाले कवक जनित रोग 

ब्लास्ट रोग

धान में यह रोग नर्सरी में पौध तैयार करते समय से लेकर फसल बढ़ने तक लग सकता है। यह बीमारी पौधे की पत्तियों, तना तथा गांठों को प्रभावित करती है। यहां तक कि फूलों में भी इस बीमारी का असर पड़ता है। पत्तियों में शुरूआत में नीले रंग के धब्बे बन जाते हैं जो बाद में भूरे रंग में बदल जाते हैं, जिससे पत्तियां मुरझाकर सूख जाती हैं। तने पर भी इसी तरह के धब्बे निर्मित होते हैं। 

पौधे की गांठों में यह रोग होने पर पौधा पूरी तरह खराब हो जाता है। फूलों पर यह रोग लगने पर छोटे भूरे और काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। इस रोग के कारण फसल में 30 से 60 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। यह रोग वायुजनित कोनिडिया नामक कवक के कारण फैलता है।

रोग नियंत्रण 

इस रोग की जैविक रोकथाम के लिए ट्राइकोडर्मा विराइड प्रति 10 ग्राम मात्रा लेकर प्रति एक किलो बीज को उपचारित करना चाहिए। खड़ी फसल के लिए ट्राइकोडर्मा विराइड या स्यूडोमोनास फ्लोरोसिस का लिक्विड फॉर्म्युलेशन की 5 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। 

रासायनिक उपचार के लिए कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी या कार्बोक्सिन 37.5 डब्ल्यूपी की 2 ग्राम मात्रा लेकर प्रति एक किलोग्राम बीज को उपचारित करें। खड़ी फसल में इस बीमारी के लक्षण दिखने पर Carbendazim 12% व  Mancozeb 63% WP की एक किलो मात्रा को प्रति हेक्टेयर 500 से लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

ब्राउन स्पॉट

यह बीमारी नर्सरी में पौधे तैयार करते समय या पौधे में फूल आने के दो सप्ताह बाद तक हो सकती है। यह पौधे की पत्तियों, तने, फूलों और कोलेप्टाइल जैसे हिस्से को प्रभावित करती है। पत्तियों और फूलों पर विशेष रूप से लगने वाले इस रोग के कारण पौधे पर छोटे भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं। 

यह धब्बे पहले अंडाकार या बेलनाकार होते हैं फिर गोल हो जाते हैं। इन धब्बों के कारण पत्तियां सूख जाती हैं। इस रोग के कारण पौधे की पत्तियां भूरी और झुलसी हुई दिखाई देती हैं। इस रोग को फफूंद झुलसा रोग के नाम से जाना जाता है।

रोग नियंत्रण 

इस रोग की जैविक रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीजों को ट्राइकोडर्मा विरिड की 5 से 10 ग्राम मात्रा लेकर प्रति किलो बीज शोधित करना चाहिए। खड़ी फसल के लिए ट्राइकोडर्मा विरिड 10 मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। 

रासायनिक रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी की 2 ग्राम मात्रा लेकर प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करें। खड़ी फसल के लिए प्रोपीकोनाजोल 25 ईसी 500 मिली प्रति हेक्टेयर की मात्रा लेकर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

शीट रॉट

शीट रॉट के लक्षण पत्तियों पर अनियमित आकार के भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। इस रोग के प्रकोप से फूल सड़ जाते हैं, जिससे फूल पूरी तरह खराब हो जाता है और फसल का उत्पादन प्रभावित होता है। 

नियंत्रण 

जैविक नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस की 10 ग्राम मात्रा लेकर प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करना चाहिए। खड़ी फसल के लिए रोपाई के 45 दिनों बाद स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 0.2 प्रतिशत मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद 10 दिनों के अंतराल पर तीन बार इसका छिड़काव करना चाहिए। रासायनिक नियंत्रण के लिए Thiophanate methyl 70 % WP एक किलो प्रति हेक्टेयर की मात्रा में लेकर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

धान की फसल में होने वाले कवक जनित रोग

धान की फसल में लगने वाले जीवाणु रोग

लीफ ब्लाइट

लीफ ब्लाइट रोग फसल की हैडिंग स्टेज में ज्यादातर होता है। कभी-कभी यह रोग नर्सरी तैयार करते समय भी पौधों में लग जाता है। इसमें पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं।

नियंत्रण 

इस रोग के नियंत्रण के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट व टेट्रासाइक्लिन मिश्रण की 1 ग्राम तथा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 30 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

लीफ स्ट्रीक

इस जीवाणु रोग के कारण पत्तियां आमतौर पर सूख जाती हैं और पत्तियों पर भूरे रंग की धारियां बन जाती हैं। 

नियंत्रण 

इस रोग की रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट, टेट्रासाइक्लिन मिश्रण 1 ग्राम तथा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 30 ग्राम मात्रा प्रति 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

धान की फसल में लगने वाले जीवाणु रोग

धान की फसल में वायरस जनित रोग 

टंग्रो रोग

यह धान की फसल में लगने वाला एक खतरनाक रोग है जिससे फसल 30 से 100 फीसदी चौपट हो सकती है। यह नर्सरी के समय तथा खड़ी फसल दोनों स्थितियों में लग सकता है। इसमें पत्तियां पीले से नीले रंग की हो जाती हैं। इस रोग के कारण पौधे जल्दी से मर जाते हैं और फसल चौपट हो जाती है। 

नियंत्रण 

इस रोग की रोकथाम के लिए बुवाई के समय क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.4% जीआर – 10 किग्रा / हेक्टेयर और स्प्रे – थिमेथॉक्साम 25% डब्ल्यूजी 250 ग्राम + मैनकोज़ेब 75% डब्ल्यूपी 1 किग्रा / हेक्टेयर 500 मिलीलीटर पानी के साथ छिड़काव करें। 


ग्रासी स्टंट वायरस

इस रोग के प्रकोप के कारण पत्तियां छोटी, संकरी, हल्के हरे तथा हल्के पीले रंग की हो जाती हैं। 

नियंत्रण 

इस रोग की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 250 ग्राम (प्रति हेक्टेयर) लेकर छिड़काव करें।

बौना वायरस

जैसा कि नाम से ही पता चलता है इस बीमारी में पौधों का समूचा विकास नहीं हो पाता है। इसके कारण उत्पादन कम हो जाता है। फसल के दाने छोटे तथा अपरिपक्व रह जाते हैं। 

नियंत्रण 


इस रोग की रोकथाम के लिए भी बुवाई के समय क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.4% जीआर – 10 किग्रा / हेक्टेयर और स्प्रे – थिमेथॉक्साम 25% डब्ल्यूजी 250 ग्राम + मैनकोज़ेब 75% डब्ल्यूपी 1 किग्रा / हेक्टेयर 500 मिलीलीटर पानी के साथ छिड़काव करें। 

धान की फसल में वायरस जनित रोग

FAQ

धान की खेती के लिए सही समय क्या है?

धान की खेती का सही समय मानसून की शुरुआत है, जो आमतौर पर जून से जुलाई तक होता है। बुआई का समय क्षेत्र और मौसम की स्थिति पर निर्भर करता है।

धान की अच्छी उपज के लिए किस प्रकार की मिट्टी उपयुक्त होती है?

धान की खेती के लिए दोमट या गीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी की जल धारण क्षमता उच्च होनी चाहिए और pH स्तर 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए।

धान की किस्में कौन-कौन सी होती हैं?

ग्रामिक पर काला नमक, ताज, संपूर्णा जैसी धान की कई किस्में उपलब्ध हैं। ये बीज आप बेहद किफायती मूल्य पर ऑनलाइन मंगा सकते हैं।

बीज की बुआई के पहले बीज को कैसे तैयार किया जाता है?

बीज की बुआई से पहले बीज को साफ कर, 24 घंटे के लिए पानी में भिगोना चाहिए। इसके बाद, बीज को नर्सरी में बुआई के लिए तैयार किया जाता है।

धान की फसल को कौन-कौन से रोग और कीट प्रभावित करते हैं?

धान की फसल को कई रोग और कीट प्रभावित कर सकते हैं, जैसे कि ब्लास्ट, शीथ ब्लाइट, ब्राउन स्पॉट, और स्टेम बोरर। इनसे बचाव के लिए समय पर कीटनाशक और फफूंदनाशक का उपयोग करना चाहिए।

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