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धान भारत की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है, जो कुल फसल क्षेत्र का एक चौथाई हिस्सा कवर करती है। चावल भारतीय आबादी का मुख्य भोजन है और एशिया में भी इसे व्यापक रूप से खाया जाता है। गन्ना और मक्का के बाद यह तीसरा सबसे अधिक उगाई जाने वाली फसल है।
आपको बता दें कि भारत में धान की खेती 3000 ईसा पूर्व से की जा रही है। ऐसे में अगर आप भी धान की खेती करते हैं, तो इसके लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, खेत की तैयारी और रोपाई की विधियों को समझना महत्वपूर्ण है ताकि किसान को अच्छी उपज मिल सके।
धान की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु
धान मुख्यतः उष्ण और उपोष्ण जलवायु की फसल है। इसे उन क्षेत्रों में उगाया जा सकता है जहां औसत तापमान 21 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक रहता है। फसल की अच्छी बढ़वार के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस और पकने के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। रात्रि का तापमान जितना कम हो, फसल की पैदावार के लिए उतना ही अच्छा है, लेकिन यह 15 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरना चाहिए।
धान की खेती के लिए उपयुक्त भूमि
धान की खेती के लिए अधिक जलधारण क्षमता वाली मिट्टी जैसे- चिकनी, मटियार या मटियार-दोमट मिट्टी उपयुक्त होती हैं। भूमि का पी एच मान 5.5 से 6.5 उपयुक्त होता है। हालांकि धान की खेती 4 से 8 या इससे भी अधिक पी एच मान वाली भूमि में की जा सकती है, लेकिन सबसे अधिक उपयुक्त मिट्टी पी एच 6.5 वाली मानी गई है।
धान की खेती के लिए खेत की तैयारी
धान की खेती में खेत की तैयारी एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। ऐसे में सबसे पहले खेत की पहली जुटाई की बात करें तो पहली जुताई गहरी होनी चाहिए, जिसे आमतौर पर अप्रैल-मई के महीने में किया जाता है। इससे खेत में पड़ी पुरानी फसलों के अवशेष, खरपतवार और अन्य गैर ज़रूरी तत्व मिट्टी में मिल जाते हैं।
इसके लिए ट्रैक्टर या बैल का उपयोग किया जा सकता है। प्रारंभिक जुताई के बाद, खेत को कुछ दिनों तक सूखा छोड़ दें ताकि सूरज की रोशनी से मिट्टी में उपलब्ध रोगाणु नष्ट हो जाएं। इसके बाद दूसरी जुताई करें, जो कि पहली जुताई के 10-15 दिन बाद की जाती है।
धान की खेती के लिए जुताई के बाद खेत को समतल करना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि धान की फसल के लिए पानी का सही प्रवाह आवश्यक है। इसके लिए खेत को लेवलर की मदद से समतल किया जाता है। इससे खेत में पानी का सही प्रवाह होता है और पौधों को आवश्यक नमी मिलती है। समतल खेत में न केवल जल का प्रबंधन आसान होता है, बल्कि जड़ों को पोषक तत्व भी समान रूप से मिलते हैं।
कब करें धान के पौध की रोपाई
धान की नर्सरी की रोपाई सामान्य भूमि में 22 से 25 दिन पर करें। वहीं जल भराव व ऊसर वाले क्षेत्रों में 30 से 35 दिन की नर्सरी की रोपाई करना उचित रहेगा। ध्यान रहे कि नर्सरी अधिक दिनों की हो जाने पर इसके उपरी सिरे की पत्तियों को 2 से 3 सेंमी काट कर रोपाई करें, क्योंकि तना छेदक कीट पत्तियों के ऊपरी हिस्से में अंडे देती है।
ऊपरी हिस्से को न काटने पर फसल में तनाछेदक कीट का प्रकोप अधिक होता है। पंक्तियों में पौध रोपाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें। वहीं एक स्थान पर 2 से 3 पौध लगाएं, इस प्रकार एक वर्ग मीटर में लगभग 50 पौधे होने चाहिए।
धान की रोपाई में सावधानियां
धान की रोपाई के लिए पौधे उखाड़ने से एक दिन पहले नर्सरी में पानी लगा दें, ताकि पौधे आराम से उखाड़े जा सकें। इसके साथ ही पौधों की जड़ों को नुकसान न पहुंचे, इसके लिए ध्यानपूर्वक उखाड़ें। पौधों में लगी मिट्टी को भी न धुले, क्योंकि पौधों से मिट्टी साफ करते समय उनकी जड़ों में चोट लगती है, और धुले पौधों की रोपाई करने के बाद जड़ों की चोट को ठीक होने में 8 से 10 दिन का समय लगता है। इसके बाद जड़ें जमीन से भोजन लेना शुरू करती हैं। जबकि मिट्टी लगी पोध रोपाई करने पर तुरंत भोजन लेना प्रारंभ कर देती है।
धान की फसल में पोषक तत्व प्रबंधन
भूमि की उर्वरता शक्ति बनाए रखने के लिए हरी खाद या गोबर या कम्पोस्ट का प्रयोग करें। वहीं उर्वरक का प्रयोग भूमि परीक्षण के आधार पर करें। संकर धान के लिए जिंक सल्फेट का प्रयोग 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करें। वहीं यूरिया के प्रयोग की बात करें तो यूरिया की पहली तिहाई मात्रा का प्रयोग रोपाई के 5 से 8 दिन बाद करें, दूसरी तिहाई कल्ले फूटते समय और शेष एक तिहाई फूल आने से पहले करें।
फास्फोरस और पोटाश की मात्रा पूरी मात्रा सिंगल सुपर फास्फेट या डाई अमोनियम फास्फेट के द्वारा मिट्टी में मिला दें। जिंक सल्फेट का छिड़काव आवश्यकता होने पर 15 से 20 दिनों के अन्तराल पर 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट और 0.25 प्रतिशत बुझे हुए चूने के घोल के साथ 3 छिड़काव करें।
किसान साथियों, धान की फसल के संपूर्ण विकास के लिए ग्रामिक लाया है Gramino, जो आपकी फसल को स्वस्थ रखेगा, और उपज बढ़ाने में मदद करेगा।
धान की खेती सही तरीके से की जाए तो यह न केवल किसानों की आय में वृद्धि करती है बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सही जलवायु, मिट्टी, खेत की तैयारी और पोषक तत्वों का प्रबंधन करके धान की अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
FAQ
धान की खेती के लिए दोमट मिट्टी (Loam soil) सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो। इसके अलावा, काली मिट्टी और दोमट-चिकनी मिट्टी भी उपयुक्त होती है।
धान की खेती का सबसे अच्छा समय मानसून के दौरान होता है, यानी जून से जुलाई के बीच। यह समय बीज बोने और पौधे लगाने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
धान की खेती के लिए उन्नत किस्मों के बीजों का चयन करना चाहिए, जो क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के अनुसार उपयुक्त हों। ग्रामिक पर धान के बीज की कई उन्नत व अधिकतम उपज देने वाली किस्में उपलब्ध हैं, जैसे- Kala Namak, MTU 7029 OP, NSC 5204, BPT 5204 OP धान बीज, PB1692, MTU 7029, BPT5204 धान आदि।
धान की खेती में भूरा झुलसा, पायरीकुलैरिया ब्लाइट, शीथ ब्लाइट, और बक्टेरियल लीफ ब्लाइट जैसे रोग आमतौर पर लगते हैं। कीटों में गंधी बग, हरा फुदका, तना छेदक, और पत्ता लपेटक प्रमुख हैं। इनसे बचाव के लिए उचित ग्रामिक पर उचित फफूंदनाशी व कीटनाशी उपलब्ध हैं, आप अभी ऑर्डर कर सकते हैं।
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