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बाजरा की खेती खरीफ की फसल के रूप में की जाती है। बाजरे की फसल कम खर्च में अधिक उत्पादन देने वाली फसल है, जिसका इस्तेमाल खाने और पशुओं के चारे के अलावा और भी कई तरह से किया जाता है। इसके पौधों को सिंचाई के साथ साथ उर्वरक की भी काफी कम जरूरत होती है. जिससे किसानों के खर्च में भी बचत होती है। हालांकि इस फसल में रोग व कीट लगने से काफ़ी नुकसान हो सकता है।
चलिए आज के ब्लॉग में बाजरे की फसल में लगने वाले रोग-कीट व उनके नियंत्रण के बारे में विस्तार से जानते हैं।
बाजरा की फसल में लगने वाले रोग व कीट
दीमक
बाजरा की खेती में दीमक का प्रभाव पौधों पर किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता हैं। ये कीट पौधों की जड़ों को काटकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं, जिससे पौधे अंकुरित होने से पहले ही खराब हो जाते हैं।
नियंत्रण
इस कीट के नियंत्रण के लिए खेत की तैयारी के समय खेत में नीम की खली का घोल बनाकर छिड़काव करें, और यदि खेत में दीमक का प्रकोप अधिक हो तो उसमें गोबर की खाद का इस्तेमाल न करें।
इसके अलावा खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर प्रति हैक्टेयर क्लोरोपाइरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. की ढाई किलो मात्रा का छिड़काव करें।
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टिड्डी
बाजरे की फसल में अगस्त महीने में टिड्डियों का हमला देखने को मिलता है, जो पौधे की पत्तियों को खा जाती है. जिससे पौधे की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है, और विकास रुक जाता है।
नियंत्रण
बाजरे के पौधों में लगने वाले इस कीट रोग की रोकथाम के लिए खेत में फॉरेट का छिडकाव करें।
अर्गट
बाजरा की फसल में अर्गट रोग प्रमुखता से पाया जाता हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार इस रोग से ग्रसित दाने जहरीले होते हैं, जो मनुष्य और पशुओं के लिए हानिकारक हो सकते हैं। ये रोग होने पर पौधों पर चिपचिपा पदार्थ दिखाई देने लगता है, जो धीरे धीरे सूखकर गाढा हो जाता है।
नियंत्रण
बाजरा की फसल में इस रोग के नियंत्रण के लिए अगेती बुवाई करें। बीज खरीदते समय ध्यान रहे कि प्रमाणित बीजों का ही चुनाव करें, और पौधों के जिस भाग में रोग लगा हो, उन्हें काटकर नष्ट कर दें।
सफ़ेद लट
बाजरे की खेती में सफ़ेद लट का प्रभाव पौधे के अंकुरण के समय ज्यादा देखा जाता है। ये कीट जमीन के अंदर पाए जाते हैं, जिनका शरीर सफ़ेद और मुहँ काले रंग का होता हैं। ये पौधे की जड़ों को काटकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं।
नियंत्रण
इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में खेत की गहरी जुताई करें, और खेत में तेज़ धूप दें। इसके अलावा खेत की जुताई के समय खेत में फोरेट का छिड़काव करें।
स्मट
बाजरे के पौधों में लगने वाले इस रोग को कांगियारी के नाम से भी जाना जाता है। ये रोग पौधे पर दाने बनने के समय लगता है। इस रोग से प्रभावित बालों में हरे रंग के दाने दिखाई देने लगते हैं, जो आकार में बाकी दानो से मोटे होते हैं, और इन्हें फोड़ने पर उनसे काले रंग का पाउडर निकलता हैं।
नियंत्रण
इस रोग की रोकथाम के लिए बाजरे के बीजों को रोपाई से पहले नमक के घोल में डालकर उपचारित कर लें, और प्रमाणित बीजों की ही बुवाई करें।
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तना छेदक
बाजरा के पौधों में पाया जाने वाला तना छेदक रोग एक कीट जनित रोग है। पौधों पर इस रोग का प्रभाव कभी भी देखने जा सकता है। इस रोग की सुंडी पौधे के तने को अंदर से खा जाती है, जिससे तने काफ़ी कमजोर हो जाता है। इससे तेज़ हवा चलने पर पौधा टूटकर गिर जाता है।
नियंत्रण
तना छेदक कीट के नियंत्रण के लिए बीजों की बुवाई करने से पहले उन्हें इमिडाक्लोरपिड 600 एफ.एस. की 8 ग्राम मात्रा को प्रति किलो की दर से उपचारित करें।
मोनोक्रोटोफॉस या क्यूनालफास की 400 से 500 मिलीलीटर मात्रा को पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से पौधों पर छिड़काव करें।
बाल वाली सुंडी
बाजरा की फसल में बाल वाली सुंडी का प्रकोप बारिश के मौसम के बाद यानी जुलाई-अगस्त महीने देखा जाता है। ये सुंडी पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नुकसान पहुंचाती है, जिससे पौधों का विकास रुक जाता है।
नियंत्रण
बाल वाली सुंडी की रोकथाम के लिए खेत में खरपतवार न पनपने दें। फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर क्विनलफास या मोनोक्रोटोफास की 250 मिलीलीटर मात्रा को प्रति एकड़ के हिसाब से पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसके अलावा नीम के तेल या सर्फ को पानी में मिलाकर उसका छिड़काव भी किया जा सकता है।
जोगिया (ग्रीन ईयर) या हरित बाल रोग
इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती है. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता हैं. पौधे के विकास ना कर पाने की वजह से बाजरे के पौधे बौने दिखाई देने लगते हैं. रोग लेगे पौधे के सिट्टे हरे दिखाई देते हैं. रोग बढ़ने से पौधों की निचली पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर दिखाई देने लगता हैं. और उनकी बाल काफी समय तक हरी दिखाई देती हैं. इस रोग के बढ़ने से पौधे जल्द ही नष्ट हो जाते हैं.
नियंत्रण
Pइस रोग की रोकथाम के लिए बीजों की बुवाई से पहले बीज को एप्रोन एस डी की से उपचारित करें। खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर मैन्कोजेब की 2 किलो मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करें। इसके साथ ही रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें।
ब्लास्ट रोग
बाजरा की फसल में ब्लास्ट रोग का प्रभाव पौधों की पत्ती, तने और सिट्टा तीनों पर देखा जाता है। ये पौधों पर लगने वाला एक कवक रोग हैं, जिसके प्रभाव से पौधों की पत्ती और तने पर पीले और गहरे भूरे रंग के लम्बे आकार के धब्बे बन जाते हैं, और पौधों का विकास रुक जाता हैं।
नियंत्रण
इस रोग की रोकथाम के लिए ट्राइफलोक्सीस्ट्रोबिन 25 प्रतिशत या टेबुकोनाजोल 50 प्रतिशत की 5 ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर 15 दिन के अंतराल में दो बार छिड़काव करें। इसके अलावा प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी की 50 मिलीलीटर मात्रा को 100 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर इस्तेमाल करें।
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