Plant Diseases

सरसों की फसल में प्रमुख रोग व कीट: लक्षण, प्रभाव और नियंत्रण के उपाय!

Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है। 

सरसों की खेती के दौरान कई प्रकार के रोग और कीट सरसों की फसल को प्रभावित करते हैं, जिनसे समय पर निपटना बेहद जरूरी होता है। यदि सही समय पर इनका समाधान न किया जाए, तो उपज में भारी कमी आ सकती है। चलिए इस ब्लॉग में सरसों की खेती में लगने वाले प्रमुख कीटों और रोगों के बारे में विस्तार से जानते हैं, साथ ही उनके नियंत्रण के उपाय पर भी चर्चा करते हैं। 

सरसों की फसल

1. चेंपा कीट (Aphid)

प्रभाव:


चेंपा कीट सरसों की खेती का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है। यह कीट पौधों का रस चूसकर उनकी वृद्धि को रोक देता है, जिससे फसल पीली पड़ने लगती है। इसका प्रकोप पौधों की फूलों की गुच्छियों और फलियों पर सबसे अधिक होता है।

चेंपा कीट (Aphid)


लक्षण:

  • पौधे की मुख्य शाखा और पत्तियों के निचले हिस्सों पर हरे, छोटे कीटों का समूह दिखता है। 
  • पौधे पीले पड़ने लगते हैं और उनका विकास रुक जाता है।


नियंत्रण के उपाय:

  • जैसे ही चेंपा की संख्या 20-25 प्रति 10 सेंटीमीटर शाखा पर हो, डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. 1 लीटर या फ्लोनिकैमिड 50% डब्लूजी 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।
  • जैविक नियंत्रण के लिए नीम तेल आधारित कीटनाशक का उपयोग करें।

2. पेंटेड बग (Painted Bug)

प्रभाव:


पेंटेड बग कीट पौधे के अंकुरण के तुरंत बाद प्रकट होता है और पत्तियों का रस चूसकर पौधे को कमजोर बना देता है। यह कीट छोटे पौधों को पूरी तरह से नष्ट कर सकता है।

पेंटेड बग (Painted Bug)


लक्षण:

  • पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं।
  • पौधे की वृद्धि रुक जाती है और उनका विकास बाधित हो जाता है।


नियंत्रण के उपाय:

  • डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. 1 लीटर या फ्लोनिकैमिड 50% डब्लूजी 150 ग्राम प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।

3. आरा मक्खी (Mustard Sawfly)

प्रभाव:


आरा मक्खी का प्रकोप तब होता है जब सरसों के पौधे 25-30 दिन के होते हैं। यह कीट पत्तियों को खाकर केवल उनकी शिराओं का जाल छोड़ देता है, जिससे पौधे सूख जाते हैं।

आरा मक्खी (Mustard Sawfly)


लक्षण:

  • पत्तियों पर छेद और जाल सा बन जाता है।
  • पौधों की पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं।


नियंत्रण के उपाय:

4. तना गलन रोग (Stem Rot)

प्रभाव:


तना गलन रोग सरसों की फसल में सबसे हानिकारक रोगों में से एक है। इस रोग से 35% तक उपज का नुकसान हो सकता है। विशेष रूप से यह रोग नमी वाले क्षेत्रों में अधिक होता है।

तना गलन रोग (Stem Rot)


लक्षण:

  • तनों के चारों ओर कवक जाल बनने लगता है।
  • पौधे मुरझाकर सूखने लगते हैं और उनकी वृद्धि रुक जाती है।


नियंत्रण के उपाय:

  • कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP का 2.5  ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें।

5. झुलसा रोग (Blight)

प्रभाव:


झुलसा रोग पौधों की पत्तियों को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है। इसका प्रकोप पौधे की निचली पत्तियों से शुरू होता है और धब्बे बनाकर पत्तियों को सुखा देता है।

झुलसा रोग (Blight)


लक्षण:

  • पत्तियों पर छोटे, गोल और हल्के काले धब्बे नजर आते हैं।
  • पत्तियां कमजोर होकर गिरने लगती हैं।


नियंत्रण के उपाय:

  • कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP या मैन्कोजेब 75% WP का 2.5  ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। 15 दिन बाद यह छिड़काव दोहराएं।

6. तुलासिता रोग (Downy Mildew)

प्रभाव:


तुलासिता रोग पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनी-भूरे रंग के धब्बे बनाता है, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है। इस रोग का प्रकोप विशेषकर नमी वाले क्षेत्रों में अधिक देखा जाता है।

तुलासिता रोग (Downy Mildew)


लक्षण:

  • पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनी रंग के धब्बे।
  • फूलों का विकास रुक जाता है।


नियंत्रण के उपाय:

  • कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP या मैन्कोजेब 75% WP का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

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भारत में सरसों की खेती

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