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राजमा, जिसे हम भारतीय किचन का स्टार मानते हैं, सिर्फ स्वाद में नहीं, बल्कि पोषण में भी शानदार है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजमा की खेती सिर्फ गर्मी में नहीं, ठंडे मौसम में भी की जाती है? यही कारण है कि इसकी खेती देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग मौसम में की जाती है।
हालांकि, जहां एक ओर राजमा की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है, वहीं दूसरी ओर सफेद सड़न रोग जैसी गंभीर बीमारी किसानों के लिए चिंता का विषय बन सकती है। आइए जानते हैं सफेद सड़न रोग के बारे में और इसे कैसे रोका जा सकता है।
राजमा की खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय
राजमा की खेती के लिए सही समय का चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है। आमतौर पर, फरवरी से मार्च तक का समय सबसे अच्छा होता है। वहीं, खरीफ मौसम में, यानी मई-जून में भी इसकी बुवाई की जाती है।
राजमा की खेती देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग समय पर होती है। उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश और बिहार में यह नवंबर में बोया जाता है, जबकि महाराष्ट्र में अक्टूबर महीने में इसकी बुवाई होती है। दिलचस्प बात यह है कि कुछ इलाकों जैसे पंजाब में तो जनवरी में भी राजमा की बुवाई की जाती है।
यहां हम आपको बताते चलें कि किसी भी फसल की उपज मिट्टी की गुणवत्ता पर निर्भर करती है, ऐसे में अपने खेत की मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने के लिए आप ग्रामिक की जैविक खाद ‘सोलियो गोल्ड’ का इस्तेमाल ज़रूर करें।
सफेद सड़न रोग क्या है?
राजमा की फसल को सबसे बड़ा खतरा सफेद सड़न रोग से होता है। यह रोग कवक स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटोरियम के कारण फैलता है और पूरी फसल को बर्बाद कर सकता है।
यह बीमारी राजमा और फ्रेंच बीन जैसी फसलों के लिए बेहद खतरनाक है, और ठंडे एवं गीले मौसम में इसका प्रकोप सबसे ज्यादा होता है। इसके लक्षण शुरुआत में ही दिखने लगते हैं, और यदि समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो यह पूरे खेत को संक्रमित कर सकता है।
सफेद सड़न रोग के लक्षण
सफेद सड़न रोग के लक्षण धीरे-धीरे फैलते हैं, जो सबसे पहले पत्तियों, फूलों, और फलियों पर दिखाई देते हैं। शुरुआत में, इन हिस्सों पर भूरा नरम सड़ांध दिखाई देता है, और फिर इन पर सफेद कपास जैसा मोल्ड (फफूंदी) विकसित होता है।
सबसे खतरनाक लक्षण तब दिखते हैं जब स्क्लेरोटिया (काले रंग की बीज जैसी संरचनाएं) संक्रमित तनों और टहनियों में बन जाती हैं, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और गिरने लगते हैं। यह रोग संक्रमित फूलों और पत्तियों के संपर्क से तेजी से फैलता है, और इसके कारण पूरी फसल खत्म हो सकती है।
सफेद सड़न रोग फैलने का कारण
सफेद सड़न रोग का फैलाव हवा के द्वारा होता है, और इसके बीजाणु कई किलोमीटर तक उड़कर अन्य पौधों को संक्रमित कर सकते हैं। इसके अलावा, संक्रमित बीज, सिंचाई का पानी, और पशु भी इस रोग के प्रसार के कारण हो सकते हैं। यहां तक कि मधुमक्खियां भी इस रोग के बीजाणुओं को फूलों के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक फैलाने का काम करती हैं।
सफेद सड़न रोग को कैसे नियंत्रित करें?
सफेद सड़न रोग को नियंत्रित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है, लेकिन सही उपायों से इसे प्रभावी तरीके से रोका जा सकता है। किसानों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे सही फसल चक्र अपनाएं और समय रहते फफूंदनाशकों का उपयोग करें। इसके अलावा, सांस्कृतिक प्रथाओं और सिंचाई प्रबंधन में सुधार करके भी इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
- फसल चक्र अपनाएं
राजमा की फसल में सफेद सड़न रोग को नियंत्रित करने के लिए सबसे पहला कदम है फसल चक्र का पालन। अगर राजमा के साथ फ्रेंच बीन को भी उगाया जाए तो दोनों के बीच का फसल चक्र 8 साल का होना चाहिए। इससे रोग के फैलने का खतरा कम हो जाता है।
इसके अलावा, गहरी जुताई से स्क्लेरोटिया को मिट्टी की गहराई में दबा दिया जाता है, जिससे उनका अंकुरण रुकता है। घनी बुवाई से बचें और पौधों के बीच पर्याप्त दूरी रखें ताकि हवा का प्रवाह सही रहे।
- फसल अवशेषों का प्रबंधन करें
संक्रमित पौधों के अवशेषों को खेत से हटा कर जलाना या गहराई में दबाना भी सफेद सड़न रोग के फैलाव को रोकने का एक असरदार तरीका है। फसल की कटाई के बाद खेत को स्वच्छ रखना आवश्यक है ताकि यह रोग नहीं फैल सके।
आपकी फसल में रोग व कीट नियंत्रण के लिए ग्रामिक पर कई उपयोगी रसायन उपलब्ध हैं आप उन्हें ग्रामिक की वेबसाइट या मोबाइल ऐप के माध्यम से बेहद किफायती मूल्य में ऑर्डर कर सकते हैं।
- उपयोगी रसायन व रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन
कुछ रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करने से भी सफेद सड़न रोग का प्रभाव कम किया जा सकता है। अगर आपके क्षेत्र में ऐसे किस्में उपलब्ध हैं, तो उनका चुनाव करना एक अच्छा उपाय हो सकता है। रासायनिक नियंत्रण की बात करें तो इसके लिए आप कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्ल्यू पी @ 2.5 ग्राम /लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे कर सकते हैं।
किसान साथियों, अंत में आपको एक और महत्वपूर्ण जानकारी देते चलें, कि ग्रामिक ने हाल ही में पॉडकास्ट की शुरुआत की है, जिसमें कृषि व पशुपालन से जुड़े विषयों पर आपको अलग अलग क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा विस्तृत जानकारी मिलेगी। ग्रामिक पॉडकास्ट का पहला एपिसोड ” Ep 1: पशुपालन पर चर्चा: पशु चिकित्सा अधिकारी अखिलेश जी के साथ! ” ग्रामिक के Youtube Channel पर उपलब्ध है, आप इस लिंक पर क्लिक करके अभी सुन सकते हैं।
FAQs
राजमा की फसल में सफेद सड़न रोग, झुलसा, जड़ गलन, एन्थ्रेक्नोज, पत्ती मोड़ रोग और मोज़ेक वायरस जैसे रोग लगते हैं।
यह स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटोरियम फफूंद के कारण होता है, जो पत्तियों, तनों और फलियों पर सफेद फफूंद बनाता है। इससे पौधे कमजोर होकर गिर जाते हैं और फसल बर्बाद हो जाती है।
पत्तियों पर गहरे भूरे या काले धब्बे बनते हैं, जो धीरे-धीरे सूखकर पूरी पत्ती को नष्ट कर देते हैं।
मिट्टी की उचित जल निकासी करें, बीजों को ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें, और खेत में जलभराव से बचें।
यह एक वायरस जनित रोग है, जो एफिड जैसे कीटों द्वारा फैलता है। पत्तियों पर पीले और हरे रंग की धारियां बनती हैं, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
एफिड और सफेद मक्खी जैसे कीटों को नियंत्रित करने के लिए पीले स्टिकी ट्रैप का उपयोग करें, इसके अलावा आप ग्रामिक से उपयोगी कीटनाशक घर बैठे ऑर्डर कर सकते हैं।
फसल चक्र अपनाएं, बीजों का उपचार करें, खेत की स्वच्छता बनाए रखें, और समय पर रोगों के लक्षणों की जांच करें।
फसल अवशेष प्रबंधन करें, मिट्टी को गहरी जुताई करें, पौधों के बीच उचित दूरी रखें, और समय पर फफूंदनाशक का छिड़काव करें।
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