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गर्मियों का मौसम शुरू होते ही बाजारों में सब्जियों की मांग काफी हद तक बढ़ जाती है। इस सीजन में सब्जियों की उपज कम हो जाती है, इसलिए सब्जियों का भाव बढ़ जाता है। आज के समय में ज्यादातर किसान सब्जियों की खेती कर अच्छी आमदनी ले रहे हैं। ऐसे में यदि आप फरवरी से मार्च के महीने में करेले की खेती करें तो गर्मी के मौसम में आप इससे अच्छी उपज लेकर बड़ा मुनाफा कमा सकते हैं।
तो चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में करेले की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं!
करेले की खेती कब होती है?
भारत में करेले की खेती साल में दो बार की जा सकती है। सर्दियों में जनवरी से मार्च तक करेले की बुआई कर मई-जून में इससे उपज ली जा सकती है, जबकि गर्मियों के समय में करेले की बुआई जून और जुलाई में होती है, और इसकी उपज दिसंबर तक मिलती है।
करेले की खेती के लिए जलवायु
करेले को गर्मी और वर्षा दोनों मौसम में उगाया जा सकता है। इसके पौधे ठंडी जलवायु को भी आसानी से सहन कर लेते हैं, लेकिन सर्दियों में गिरने वाला पाला पौधे को नुकसान पहुंचा सकता है। करेले के पौधे सामान्य तापमान पर अच्छे से विकास करते हैं, हालांकि बीजों को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री तापमान की ज़रूरत होती है।
फसल में अच्छी बढ़वार, फूल व फलन के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान अच्छा होता है। बीजों के जमाव के लिए 22 से 25 डिग्री सेल्सियस का तापमान अच्छा होता है।
खेती के लिए उपयुक्त भूमि
करेले की खेती के लिए किसी खास तरह की मिट्टी की ज़रूरत नहीं होती है, इसे किसी भी उपजाऊ मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है, लेकिन उचित जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी को इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना गया है। इसके अलावा इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच मान 6 से 8 होना चाहिए। करेले की खेती इस प्रकार की भूमि पर अच्छी पैदावार देती है।
करेले की उन्नत किस्में और पैदावार
करेले की देशी और हाईब्रिड दोनों किस्मों के बीज ग्रामिक पर बहुत ही किफायती मूल्य पर उपलब्ध हैं। अलग-अलग किस्मों की उपज और उसके पकने का समय भी अलग-अलग होता है। करेले की खेती में आपको प्रति एकड़ 500 से 600 ग्राम बीज की जरूरत होती है। इन बीजों को खेत में लगाने से पहले उपचारित कर लें, इससे पौधों का विकास अच्छी तरह होगा, और किसी प्रकार का रोग होने का भी खतरा नहीं रहेगा।
बीजों की रोपाई का तरीका
करेले की खेती आप सीधे बीज बोकर भी कर सकते हैं, इसके अलावा आप पहले इसकी पौध भी तैयार कर सकते हैं, और बाद में इसे खेती करने वाली जगह पर रोपाई कर सकते हैं। खेत में बनाए हुए हर क्यारी में चारों तरफ 4 से 5 करेले के बीज 2 से 3 सेमी गहराई पर बोना चाहिए। गर्मी की फसल के लिए बीज को बुवाई से पहले 12 से 18 घंटे तक पानी में रखें, जिससे करेले का बीज अच्छे से अंकुरित हो जाये।
पॉलीथीन की थैली में तैयार करें करेले की पौध
पॉलीथीन की थैलियों में करेले की पौध तैयार करने के लिए 15×10 से.मी. आकार की पॉलीथीन की थैलियों में 1:1:1 मिट्टी, बालू व गोबर की खाद भरकर जल निकास की व्यवस्था के लिए किसी नुकिली वस्तु की सहायता से छेद कर सकते हैं। बाद में इन थैलियों में लगभग 1 से.मी. की गहराई पर बीज बुवाई करके मिट्टी की पतली परत बिछा लें और हल्की सिंचाई करें।
लगभग एक महीने बाद पौधे खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं। इन तैयार पौधों की खेत में रोपाई से पहले पॉलीथीन की थैली को ब्लेड से काटकर हटा दें, इसके बाद पौधे की मिट्टी के साथ खेत में बनी नालियों की मेढ़ पर रोपाई करें, फिर सिंचाई करें।
करेले की खेत में उर्वरक एवं खाद की मात्रा
करेले की रोपाई से पहले खेत को तैयार करते समय 15 से 20 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट का इस्तेमाल करें। इसके साथ ही आप किसी कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर रासायनिक खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं। बुवाई के 25 से 30 दिन बाद फसल में निराई-गुड़ाई करके पौधे पर मिट्टी चढ़ाएं।
करेले की खेती में सिंचाई
करेले की खेत की रोपाई अगर पौधों द्वारा की गई है, तो रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। गर्मियों के मौसम में हर 6 से 7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहें और बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करें। करेले की फसल को कुल 8 से 9 सिंचाई की ज़रूरत होती है।
करेले की फसल की सुरक्षा कैसे करें?
करेला की फसल जल्द रोगग्रस्त होती है। इसकी जड़ों से लेकर बाकी हिस्सों में कीड़े भी लगते हैं। रेड बीटल, माहू रोग और पाउडरी मिल्ड्यू रोग से करेला की फसल ज्यादा प्रभावित होती है। इसे वायरसों के प्रकोप से भी बचाना जरूरी है। इसीलिए कृषि विशेषज्ञ की सलाह लेकर ही कीटनाशक या रासायनिक खाद का इस्तेमाल करके फसल का उपचार करें।
करेले की खेती में लागत एवं पैदावार और लाभ
करेले की ऐसी किस्में मौजूद हैं जिन्हें कहीं भी और किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है। करेले की फसल बीज/पौध रोपाई के तीन से चार माह बाद उपज मिलने लगती है। करेले के फलों की तुड़ाई 2 से 3 सेंमी. लंबे डंठल के साथ करनी चाहिए, इससे फल अधिक समय तक ताजा बना रहता है।
करेले के फलों की तुड़ाई सप्ताह में दो से 3 बार की जा सकती है। करेला की खेती में लागत के मुकाबले अच्छा मुनाफा मिलता है। करेला की प्रति एकड़ लागत 20-25 हजार रुपए तक आती है। यदि करेले की उन्नत किस्म का चुनाव किया जाए, तो 50-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज मिल सकती है। करेले का बाजार भाव 15 से 30 रूपये किलो होता है, जिससे बाजार में करीब 2 लाख रुपये का भाव मिल जाता है।
FAQs
गर्मी के मौसम की फसल के लिए जनवरी से मार्च तक इसकी बुआई की जा सकती है। मैदानी इलाकों में करेले की खेती जून से जुलाई के बीच की जाती है।
करेले की फसल बुबाई के लगभग बाद 60 से 70 दिन में तैयार हो जाती है।
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