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जीरा एक ऐसी फसल है, जिसकी खेती मसाले के रूप में की जाती है। ये देखने में सौंफ जैसा होता है, लेकिन इसका रंग थोड़ा अलग होता है। जीरे का प्रयोग भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए तो किया ही जाता है, साथ ही इसका सेवन करने से पेट से जुड़ी कई बीमारियां ख़त्म होती हैं।
यदि आप भी जीरे की खेती करना चाहते हैं, तो इस ब्लॉग (Cumin Farming in Hindi) को अंत तक पढ़ें।
भारत के राजस्थान और गुजरात जीरे की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। पूरे देश का कुल 80% जीरा यहीं पर उगाया जाता है, जिसमे 28% जीरे का उत्पादन राजस्थान राज्य में होता है, वहीं गुजरात में राजस्थान की अपेक्षा जीरे की पैदावार अधिक होती है। आज के समय में किसान भाई जीरे की उन्नत किस्मों को उगाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
जीरे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान
जीरे की अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती करने के लिए भूमि ऐसी चाहिए, जहां उचित जल निकासी हो सके। इसके अलावा भूमि का P.H. मान भी सामान्य होना चाहिए।
जीरे की फसल रबी की फसल के साथ की जाती है, इसलिए इसके पौधे सर्द जलवायु में अच्छे से वृद्धि करते है। इसके पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है, तथा अधिक गर्म जलवायु इसके पौधों के लिए उपयुक्त नहीं होती है।
जीरे के पौधों को रोपाई के पश्चात् 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, और पौधों की वृद्धि के समय 20 डिग्री तापमान अच्छा होता है। इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 20 डिग्री तापमान को आसानी से सहन कर सकते हैं।
जीरे की उत्तम किस्में
अपने औषधीय गुणों के कारण मसालों में जीरे की मांग सार्वाधिक होती है। जीरा शरीर की कई समस्याओं के लिए किसी रामबाण औषधि से कम नहीं है। रसोईघर मे ये खाने मे स्वाद बढ़ाने के लिए बेहद काम आता है।
जीरे की अधिक पैदावार देने वाली किस्मों की बात करें, तो आप रेमिक जीरा GUJ-4, जीरा रिमिक-5 आदि का चुनाव कर सकते हैं। जीरा में पोटैशियम, मैगनीशियम ,मैगनीज, जिंक,आयरन, कॉपर, कैल्शियम, जैसे कई मिनरल्स पाए जाते है।
उर्वरक व खाद
गोबर की खाद को बुवाई के 2 से 3 हफ्ते पहले भूमि में मिलाने से फसल अच्छी तरह से तैयार होती है। ध्यान रहे! यदि खरीफ की फसल में 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाली गयी हो तो जीरे की फसल के लिए अतिरिक्त खाद की आवश्यकता नहीं होती है।
यदि कीटों की समस्या खेतो मे अधिक हो , तो इनके रोकथाम के लिए फसल की बुवाई के पहले वा अन्तिम जुताई के समय क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत, 20 से 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में डालकर अच्छी तरह से मिला लेना लाभदायक रहता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, जीरे की फसल को 30 किलो नाइट्रोजन 20 किलो फॉस्फोरस एवं 15 किलो पोटाश उर्वरक प्रति हेक्टेयर की दर से दें।
जीरा की फसल की सिंचाई कब करें?
बुवाई के तुरन्त बाद जीरे की फसल में एक हल्की सिंचाई करनी चाहिए। दूसरी बार भी हल्की सिंचाई 8 से 10 दिन बाद करनी चाहिए ताकि पूर्ण रूप से अंकुरण हो पाए। इसके बाद ज़रूरत हो, तो 8-10 दिन बाद एक बार फिर से हल्की सिंचाई जीरे की खेती मे कर सकते है।
एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि जीरे का दाना पकने के समय जीरे में सिंचाई बिलकुल न करे ऐसा करने से बीज हल्का बनता है। इसके बाद 20 दिन के अंतराल पर दाना बनने तक तीन और सिंचाई करनी चाहिए।
ऐसे खत्म करें खरपतवार
खरपतवार नियंत्रण के लिए जीरे की फसल में बुवाई के बाद सिंचाई करने के दूसरे दिन पेडिंमिथेलीन जो की एक खरतपतवार नाशक है, उस दवा को 1.0 किलो सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर समान रूप से जीरे की फसल पर छिडक़ाव करना चाहिए।
वहीं फसल 25 -30 दिन की हो जाने पर इसमें एक गुड़ाई कर देनी चाहिए, जिससे फसल की उपज अच्छी हो।
जीरा की फसल में लगने वाले रोग एवं कीट
मोयला (माहू)-
इसके नियंत्रण के लिए Diamethoate 30EC@200ml/acreका घोल बनाकर प्रति हेक्टर छिड़काव करें।
पत्ती खाने वाली सूंडी-
इसके नियंत्रण हेतु 0.02 प्रतिशत फास्फोमिडान का छिड़काव करें।
भभूतिया/चूर्णिल आसिता-
इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए 20 कि.ग्रा./हेक्टर गंधक चूर्ण 10 प्रतिशत का छिड़काव करें या 100 मिली। कैराथेन/100 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें।
जीरे का उखटा (म्लानि रोग)-
इसके नियंत्रण के लिए रोग रोधी प्रजातियों का चुनाव करें।
झुलसा रोग-
इससे बचाव के लिए रीडोमील एमजेड-78 नामक दवा को कृषि विशेषज्ञ द्वारा बताई गई मात्रा में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।
अपनायें फसल चक्र
फसल चक्र को अपनाना जीरे की बेहतर उत्पादन के लिए बेहद जरूरी है। इसके लिए उचित फसल चक्र को अपनाना चाहिए। इसके लिए तीन वर्षीय फसल चक्र को अपनाया जा सकता है जिसमे बाजरा, जीरा, मूंग, गेहूं इत्यादि की बुवाई की जा सकती है। याद रखें एक ही खेत में बार-बार जीरे की फसल की बुवाई नहीं करनी चाहिए। इससे उखटा रोग का प्रकोप अधिक बढ़ जाता है।
कटाई एवं भंडारण
जब फसल पूरी तरह पक जाए और बीज एवं पौधा भूरे रंग का हो जाएं तो तुरंत इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। जीरे के पौधों को ख़ूब अच्छी तरह से सुखाकर थ्रेसर से मंढाई करके इसका एक एक दाना अलग कर लेना चाहिए। जीरे के दाने को बेहद अच्छी तरह से सुखाकर ही साफ बोरों में इसका भंडारण करना चाहिए।
तो इस तरह इन बातों को ध्यान में रखकर हमारे किसान भाई जीरे की खेती से कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
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