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Pest Prevention in Crops-आने वाले मौसम में फसल में लग सकते हैं ये कीट! करें ये उपाय!

Written by Gramik

दोस्तों नमस्कार, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!

रबी सीजन में सरसों, मटर, मसूर, आलू, धनिया आदि मुख्य रूप से उगाई जाती हैं। इन फसलों में लगने वाले रोग व कीटों का समय पर नियंत्रण करके अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।

चलिए इस ब्लॉग में जानते हैं रबी सीजन में लगने वाले कीटों के बारे में-

Pest Prevention in Crops

दीमक का प्रकोप (Effects Of Termite)

रबी में फसलों व सब्जियों में दीमक लगने की संभावना काफ़ी रहती है, इसलिए किसान समय-समय पर फसलों की निगरानी करते रहें। यदि दीमक लगें तो क्लोरपाइरीफोस 20 ईसी @ 4.0 मिली/ लीटर की मात्रा में छिड़काव करके सिंचाई करें। 

आभासी कंड (False Smut)

इस मौसम में धान की कुछ प्रजातियों में आभासी कंड (False Smut) होने का खतरा रहता है। ये बीमारी होने से धान के दाने फूल जाते हैं। इससे फसल की सुरक्षा के लिए ब्लाइटोक्स 50 को 500 ग्राम प्रति एकड़ के अनुपात में ज़रूरत के हिसाब से पानी में मिलाकर 10 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें।

ब्राउन प्लांट होपर (Brown planthopper)

रबी सीजन में धान की फसल को ब्राउन प्लांट होपर का भी खतरा हो सकता है। इसलिए किसान समय समय पर पौधे के निचले भाग में देखते रहें, कि कोई मच्छर नुमा कीट तो नहीं है। अगर फसल में इस कीट का प्रकोप ज़्यादा है, तो इमिडाक्लोप्रिड @ 0.3 ml प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।

फली छेदक कीट (Pod borer insect)

रबी सीजन में सब्जियों मिर्च, बैंगन आदि में फल छेदक, शीर्ष छेदक लगने एवं फूलगोभी व पत्तागोभी में डायमंड़ बेक मोथ की रोकथाम के लिए प्रति एकड़ 4-6 फीरोमोन ट्रैप लगाएं। इन कीटों का प्रकोप ज़्यादा हो तो स्पेनोसेड 1.0 ml /4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

फली छेदक कीट चने के साथ-साथ अरहर, टमाटर आदि फसलों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। छोटी इल्लियाँ पीली भूरे रंग की होती हैं, जो पत्तियों को नुकसान पहुंचाती हैं व बड़ी इल्ली फूलों व फली में छेदकर खाती है।

फसल के दौरान 12-15 दिन या ज़्यादा समय तक बादल रहने पर इस कीट के लगने की संभावना काफ़ी अधिक होती है। ये कीट फसल की फलियों को 60-70% तक नुकसान पहुंचा सकता है। चने की फसल में फली छेदक कीट का नियंत्रण करने के लिये इसकी बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर के बीच करें।

अरहर की फली मक्खी

ये मक्खी अरहर की फली के अंदर के दानों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाती है। कभी-कभी तो इनका प्रकोप इतना होता है कि सभी फलियों में कीट लग जाते हैं। फसल में इस कीट का नियंत्रण करने के लिये डायमिथिएट या मिथाइल डिमेटान की 400 ml मात्रा 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के अनुपात में छिड़काव करें।

मसूर/ सरसों का माहू

ये कीट पौधो के कोमल भागों का रस चूसता है, जिसके कारण पौधे काफ़ी कमज़ोर हो जाते हैं। फसल में फूल आने के समय इसका ख़तरा काफ़ी ज़्यादा होता है। इस कीट की शुरुवाती अवस्था में रोकथाम के लिये माहू लगे पौधों की टहनियों का तोड़कर हटा दें। और यदि इसका प्रकोप अधिक हो, तो मिथाइल डिमेटान 300 ml या इमिडाक्लोप्रिड की 60 ml को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के अनुपात में छिड़काव करें।

आलू में झुलसा रोग

झुलसा रोग लगने पर आलू, टमाटर व अन्य फसलों की पत्तियां किनारे से सूखकर काली पड़ जाती हैं। ये रोग ज़्यादा बढ़ने पर पूरा पौधा सूख जाता है। इसकी रोकथाम करने के लिए मेंकोजेब की 500 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के अनुपात में छिड़काव करें।

मटर व धनिया का पाउडरी मिल्डयू रोग

ये रोग लगने पर मटर व धनिया के पौधो पर सफेद पाउडर जैसा हो जाता है, जो फफूंद के बीजाणु होते हैं। फसल में ये रोग लगने पर पौधे की पत्तियां सूखने लगती हैं। इसकी रोकथाम करने के लिए घुलनशील सल्फर की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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