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Wheat Cultivation: अच्छी उपज पाने के लिए गेंहू की खेती में समय से करें ये 4 काम

Wheat Cultivation
Written by Gramik

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किसान भाइयों! ये बात बिल्कुल सच है कि जमीन का दायरा सिकुड़ता जा रहा है और दिन पर दिन आबादी बढ़ती जा रही है। मानव का मुख्य भोजन गेहूं पर ही आधारित है। इस प्रमुख फसल से आपको अच्छी उपज मिल सके, इसके लिए किसान भाई कुछ खास बातों का ध्यान रखते हुए अपनी गेहूं की खेती (wheat cultivation) करें। 

इसमें मृदा परीक्षण (soil testing), सिंचाई (wheat crop irrigation) आवश्यक उर्वरक (fertilizer in wheat crop) और खरपतवार एवं रोग नियंत्रण (weed and disease in wheat crop) का सबसे अहम रोल है। 

गेहूं की खेती की खास बात यह होती है कि इसमें बुआई से लेकर आखिरी सिंचाई तक उर्वरकों और पेस्टिसाइट व फर्टिसाइड का इस्तेमाल किया जाता है। तभी आपको अधिक उत्पादन मिल सकता है।

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1. बुआई से पहले कराएं मृदा परीक्षण (Soil Testing For Wheat Cultivation)

गेहूं की खेती से अच्छी फसल लेने के लिए किसान भाइयों को सबसे पहले तो अपने खेत का मृदा परीक्षण (soil testing) कराना चाहिये। फसल की पैदावार खाद एवं उर्वरक की मात्रा पर भी निर्भर करती है। गेहूं की खेती में हरी खाद, जैविक खाद एवं रासायनिक खाद के अलावा फर्टिसाइड और पेस्टिसाइट का भी प्रयोग करना होता है।  

गेहूं की फसल (Wheat Crop) तैयार होने तक लगभग 35 से 40 सेमी बुआई पानी की जरूरत होती है। पानी की जरूरत सबसे अधिक तब होती है जब गेहूं की क्राउन यानी कि छत्रक, जड़ों और बालियां निकलने का समय होता है। इन तीनों समय पर गेहूं को पानी देना जरूरी होता है वर्ना फसल स्वस्थ नहीं होगी।

2. कब कब करें गेंहू की सिंचाई (Wheat Irrigation Stage)

गेहूं की फसल (Wheat Crop) तैयार होने तक 4 से 6 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। अगर मिट्टी भारी हो तो उसमें चार बार और हल्की मिट्टी हो तो उसमें छह बार सिंचाई की जरूरत होती है। किसान भाइयों को चाहिये कि वो कुदरती बरसात को देख कर और खेत की नमी की अवस्था को देखकर ही सिंचाई का फैसला करें। 

गेहूं में 6 अवस्थाएं ऐसी होती हैं जिनमें सिंचाई बहुत फायदा करती है। आइए जानते हैं ये 6 अवस्थाएं क्या हैं और कब गेहू में अंतिम सिंचाई करनी चाहिए।

  • पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिनों बाद करें जब फसल में जड़ बनने लगे।
  • दूसरी सिंचाई बुआई के 40-45 दिन बाद करें, जब कल्लों का विकास होने लगे।
  • तीसरी सिंचाई बुआई के 65-70 दिन के उपरांत करें, जब तने में गांठ पड़ने लगे।
  • चौथी सिंचाई बुआई के 90-95 दिन के बाद करें जब फसल में फूल आने लगें।
  • पांचवीं सिंचाई गेंहू की बुआई के 105-110 दिन बाद करें, जब दानों में दूध बनने लगे।
  • छठी सिंचाई बुआई के 120-125 दिन बाद करें, जब गेहूं का दाना परिपक्व हो रहा हो।

3. गेंहू की फसल के लिए आवश्यक उर्वरक

गेहूं की फसल के लिए बुआई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले 35 से 40 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर खेत में डालना चाहिये। इसके साथ ही 50 किलोग्राम नीम की खली और 50किलो अरंडी की खली को भी मिला लेना चाहिये। इन सभी का छिड़काव करने के बाद खेत की अच्छी तरह जुताई करें।

पहली सिंचाई के समय

बुआई के बाद पहली सिंचाई लगभग 20 से 25 दिन पर की जाती है। गेहूं की खेती में खाद की मात्रा की बात करें तो उस समय किसान भाइयों को 40 से 45 किलोग्राम यूरिया गेहूं की फसल के लिए, जिंक 5 किलो 33 प्रतिशत वाला , या 10 किलो 21 प्रतिशत वाला जिंक, 3 किलो सल्फर का मिश्रण डालना चाहिये।  नैनोजिक एक्सट्रूड  जैसे जायद का उपयोग  सकते है। 

दूसरी सिंचाई के समय 

गेहूं की खेती (Wheat Cultivation) में दूसरी सिंचाई बुआई के 40 से 50 दिन बाद की जानी चाहिये। उस समय भी आपको 40 से 45 किलोग्राम यूरिया डालनी होगी । इसके साथ 70 प्रतिशत थायनाफेनाइट मिथाइल 500 ग्राम डब्ल्यूपी प्रति एकड़, 12 प्रतिशत मारबीन डाजिम , मैनकोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यूपी 500 ग्राम प्रति एकड़ से मिलाकर चाइये। 

अगैती व पछैती फसलों में डालें ये उर्वरक

किसान भाई गेहूं की अच्छी फसल (High Yielding Wheat Crop) के लिए अगैती फसल में बुआई के समय 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिये। गेहूं की पछैती फसल के लिए बुआई के समय 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश गोबर की खाद, नीम व अरंडी की खली डालना चाहिये। 

इसमें नाइट्रोजन की आधी मात्रा को बचा कर रख लेना चाहिये जो बाद में पहली व दूसरी सिंचाई के समय डालना चाहिये। अगर गेहूं की फसल देर से बोई गई हो तो पहली सिंचाई बुआई के 18-20 दिनों बाद और बाद की सिंचाई 15-20 दिनों बाद करनी चाहिए।

उर्वरकों का इस्तेमाल का फैसला ऐसे करें

गेहूं की फसल में ख़ासकर दो बार सिंचाई के बाद ही उर्वरकों का मिश्रण डालना  रहता है ,या कह सकते है कि इसका प्रावधान है, लेकिन किसान भाइयों को उसके बाद भी अपने फसल व खेत की निगरानी करनी चाहिये। इसके अलावा भूमि परीक्षण के बाद कृषि विशेषज्ञों की राय के अनुसार उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिये। यदि भूमि परीक्षण नहीं कराया है तो आपको अपने खेत की अपने स्तर पर निगरानी करनी चाहिये और अनुभवी किसानों से राय लेकर या स्वयं के अनुभव के आधार पर हिसाब से उर्वरक, फर्टिसाइड व पेस्टीसाइड फसल की जरूरत के आधार पर इस्तेमाल करना चाहिये।

हल्की फसल हो तो क्या करें

विशेषज्ञों के अनुसार दूसरी सिंचाई के बाद देखें कि आपकी फसल हल्की हो तो आप अपने खेतों में माइकोर हाइजल दो किलो प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। जिन किसान भाइयों ने बुआई के समय एनपीके का इस्तेमाल किया हो तो उन्हें अलग से पोटाश डालने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि एनपीके में 12 प्रतिशत नाइट्रोजन और 32 प्रतिशत फास्फोरस होता है और 16प्रतिशत पोटाश होता है।

डीएपी का इस्तेमाल करने वाले क्या करें

जितने भी हमारे किसान भाइयों ने डीएपी खाद का इस्तेमाल बुआई के समय किया हो तो उन्हें पहली सिंचाई के बाद ही म्यूरेट आफ पोटाश 15 से 20 किलो  प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिये। क्योंकि डीएपी  में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है और 46 प्रतिशत फास्फोरस होता है और पोटाश बिलकुल नहीं होता है।

4. कैसे करें रोग व खरपतवार नियंत्रण (Weed And Disease Management In Wheat Crop)

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि खरपतवार फसलों को मिलने वाली 47 परसेंट नाइट्रोजन, 42 परसेंट फॉस्फोरस, 50 परसेंट पोटाश, 24 परसेंट मैग्नीशियम और 39 परसेंट कैल्शियम को उपयोग कर लेते हैं। इसके अलावा खरपतवार उन कीटों और रोगों को भी आसरा देते हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए खरपतवार को खत्म करना बहुत जरूरी होता है।

रोग व खरपतवार नियंत्रण

चौड़ी पत्ती वाली घास ((Broadleaf Weed Control in Wheat)

चौड़ी पत्ती वाली घास गेहूं में उग आए तो 2.4 डीई 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर में बुआई के 30-35 दिनों बाद इस्तेमाल करें। खेत में बुआई के 30-35 दिनों के बाद मेटसल्फ्यूरॉन चार ग्राम प्रति हेक्टेयर इसका प्रयोग करें। किसान आइसोप्रोटयूरॉन 750 ग्राम प्रति हेक्टेयर बुआई के 30-35 दिनों बाद छिड़काव करें। किसानो को संकरी पत्ती वाली घास के लिए पीनाक्साडेन 35 से 40 ग्राम प्रति हेक्टेयर बुआई के 30-35 दिनों बाद छिड़काव करना चाहिए।

गेहूं की फसल में फफूंद (Fungal Diseases of Wheat)

अगर गेहूं की फसल में फफूंद से जुड़ी कोई बीमारी दिखे तो उसमें प्रोपिकोनॉजोल का 0.1 परसेंट या मैंकोजेब का 0.2 परसेंट घोल का छिड़काव किया जा सकता है. चूहों से गेहूं की फसल को बचाने के लिए एल्युमिनियम फॉस्फाइड या जिंक फॉस्फाइड की टिकियों से बने चारे का प्रयोग कर सकते है। इससे चूहे मर जाएंगे। संकरी पत्ती वाली घास अगर गेहूं में उग आए तो उसके लिए पेंडीमेथिलीन 1000-1500 ग्राम प्रति हेक्टेयर बुआई के 1-3 दिनों के अंदर छिड़काव करें।

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