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अगर आप भी खेती के जरिए अच्छी कमाई करना चाहते हैं तो आज हम आपको ऐसा ही एक बिजनेस आइडिया दे रहे हैं। हम बात कर रहे हैं केले की खेती के बारे में। केला एक नकदी फसल है। आपको बता दें कि एक बार केले के पौधे लगाने पर 5 साल तक फल मिलते हैं। आज कल किसान केले के खेती के जरिए अच्छी कमाई कर रहे हैं।
चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में केले की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं!
केले की पौध की रोपाई का समय
ड्रिप सिंचाई की सुविधा हो तो पॉली हाउस में टिशू कल्चर पद्धिति से केले की खेती वर्ष भर की जा सकती है। वहीं सामान्य तरीके से इसकी खेती के लिए जून- जुलाई का महीना अच्छा माना जाता है।
कैसा हो भूमि और जलवायु?
केले की खेती के लिए गर्म और बारिश वाली जलवायु अच्छी मानी जाती है। ज़्यादा वर्षा वाले क्षेत्रों में केला की खेती बेहतर होती है। दोमट और मटियार दोमट भूमि केले की खेती के लिए अच्छी मानी जानी है। केले की फसल के लिए भूमि का PH मान 6-7.5 तक होना चाहिए।
कितनी आयेगी लागत
एक बीघा केले की खेती करने में अनुमानित लागत करीब 50,000 रुपये तक आती है। यदि पौधों की उचित देखभाल की जाए तो फल तैयार होने पर इसमें दो लाख रुपये तक की आसानी से बचत हो सकती है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, बाकी फसलों के मुकाबले केले में जोखिम कम है। केले की फसल उगाने के लिए जैविक खाद का इस्तेमाल करने से लागत और भी कम हो जाती है।
केले की फसल में गोबर की खाद का इस्तेमाल करना अच्छा होता है। इसके साथ ही केले की कटाई के बाद जो कचरा बचता है, उसे खेत के बाहर नहीं फेंकना चाहिए, बल्कि खेत में ही पड़े रहने देना चाहिए। यह खाद का काम करता है, और इससे केले की पैदावार अच्छी होती है।
निराई-गुड़ाई का रखें विशेष ध्यान
केले फसल के उचित विकास के लिए समय समय पर इसकी निराई-गुड़ाई करना बहुत आवश्यक है। इसके अलावा इस बात का भी ध्यान रखें कि पौधों को हवा एवं धूप आदि अच्छी तरह से मिलते रहे। इससे फसल में किसी तरह का रोग लगने का खतरा कम होता है, और उपज अच्छी मिलती है।
केले की खेती के लिए उन्नत प्रजातियां
सिंघापुरी के रोबेस्टा नस्ल के केले को खेती के लिए बेहतर माना जाता है। इसके साथ ही अच्छी उपज देने वाली किस्मों में बसराई, ड्वार्फ ,हरी छाल, सालभोग, अल्पान, पुवन आदि प्रजातियां भी अच्छी मानी जाती हैं।
आपको बता दें कि केले में शर्करा एवं खनिज लवण जैसे कैल्सियम तथा फास्फोरस प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। केले के फलों का उपयोग पकने पर खाने के लिए, कच्चा सब्जी, आटा व चिप्स बनाने के लिए किया जाता है। इसकी खेती लगभग पूरे भारत में की जाती है।
केले की फसल में लगने वाले कीट
पत्ती खाने वाला केटर पिलर
यह कीट नये छोटे पौधों को नुकसान पहुंचाता है, और बिना फैली पत्तियों में गोल छेद बनाकर उसे खा जाता है।
नियंत्रण
- अण्डों को पत्ती से बाहर निकाल कर नष्ट करें।
- कीट पतंगों को पकड़ने के लिए 8-10 फेरामोन ट्रेप/हेक्टयेर लगायें।
- इस कीट के नियंत्रण के लिए एम्मेक्टिन बेंजोएट 0.6 ग्राम/लीटर (emamectin benzoate 0.6gm/lit) पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें।
तना छेदक कीट
केले के तना छेदक कीट का प्रकोप 4-5 माह पुराने पौधो में होता है। शुरूआत में पत्तियॉ पीली पड़ती हैं, बाद में एक चिपचिपा पदार्थ निकालना शुरू हो जाता है। तने में छेद हो जाता है, जिससे पौधा धीरे धीरे सड़ जाता है
प्रबंधन
- प्रभावित एवं सूखी पत्तियों को काटकर जला देना चाहिए।
- फल काटने के बाद पौधो को जमीन की सतह से काट कर उनके उपर कीटनाशक दवाओं जैसे – साइपरमेथेरिन 25%EC 1 मि.ली./लीटर (cypermethrin 25%EC 1 ml/ lit) के घोल का छिड़काव कर अण्डों एवं वयस्क कीटों को नष्ट करें।
- पौध लगाने के पाचवें महीने में क्लोरोपायरीफॉस (0.1 प्रतिशत) का तने पर लेप करके भी इस कीट का नियंत्रण किया जा सकता है।
केले की फसल में लगने वाले रोग
सिगाटोका लीफ स्पॉट
यह केले में लगने वाली एक प्रमुख बीमारी है इसके प्रकोप से पत्ती के साथ साथ फल के वजन एवं गुणवत्ता पर असर पड़ता है। शुरू में पत्ती के उपरी सतह पर पीले धब्बे बनना शुरू होते हैं, जो बाद में बड़े भूरे धब्बों में बदल जाते हैं।
नियंत्रण
- रोगग्रस्त पत्तियों को काटकर खेत से बाहर जला दें।
- जल भराव की स्थिति में जल निकास की उचित व्यवस्था करें।
- खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।
- काबेन्डाजिम 1 ग्राम + 7 से 8 मि. ली. बनोल तेल का छिड़काव करें।
पत्ती गुच्छा रोग
यह एक वायरस जनित बीमारी है। इसमें पत्तियों का आकार बहुत ही छोटा होकर गुच्छे के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
नियंत्रण
- ग्रसित पौधों को उखाड़कर कर मिट्टी में दबा दें या जला दें।
- कन्द को संक्रमण मुक्त खेत से लें।
- रोग के नियंत्रण के लिए इमीडाक्लोप्रिड 1 मिली./पानी में घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करें।
जड़ गलन
ये बीमारी होने पर पौधे की जड़ें गल कर सड़ जाती हैं, और बरसात एवं तेज हवा के कारण गिर जाती हैं।
नियंत्रण
- खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करें।
- रोपाई के पहले कन्द को काबेन्डाजिम 2 ग्राम/लीटर पानी के घोल से उपचारित करें।
- आप इसकी रोकथाम के लिए कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम +0.2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन/लीटर पानी की दर से पौधे पर छिड़काव भी कर सकते हैं।
केले के पौधे में फूल आने मे लगभग 12 महीने का समय लगता है। और फूल निकलने के बाद लगभग 25-30 दिन में फलियाँ निकल आती हैं।
केले में फलियाँ निकलने के बाद उन्हें तुड़ाई करने के लिए तैयार होने में लगभग 100-140 दिन का समय लगता है।
नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड (2021-22) की रिपोर्ट के अनुसार, अरुणाचल प्रदेश भारत का सबसे बड़ा केला उत्पादक राज्य है। यहां देश का 17.99% यानि 5.8 मीट्रिक टन केला उगाया जाता है।
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