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बड़े मुनाफे वाली है पुदीना की खेती! जानें इसकी खेती की प्रक्रिया!

पुदीना की खेती
Written by Gramik

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!

पुदीना या मिंट एक खुशबूदार जड़ी-बूटी के रूप में जाना जाता है। इसका प्रयोग जलजीरा बनाने, चटनी बनाने और कई व्यंजन बनाने में किया जाता है. पुदीने से निकला तेल भी बहुत उपयोगी होता है। इसके अलावा पुदीने को सुखाकर स्टोर भी किया जा सकता है, जिसका प्रयोग गर्मियों में छाछ, दही आदि में डालकर किया जा सकता है।

इसके चलते बाज़ार में इसकी अच्छी डिमांड बनी रहती है और किसानों को अच्छा दाम भी मिलता हैं। ऐसे में किसानों के लिए पुदीने की खेती फायदे का सौदा साबित हो सकती है।

पुदीना की खेती

चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग के बारे में पुदीने की खेती के बारे में विस्तार से जानते हैं-

पुदीना की खेती के लिए मिट्टी व जलवायु

पुदीना की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त होती है। भारी व चिकनी मिट्टी में इसकी खेती सफल नहीं होती है। आपको बता दें कि इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

वहीं पुदीना की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु की बात करें तो इस फसल के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती जायद व खरीफ में की जा सकती है, सर्दियों का मौसम पुदीने की खेती के लिए उपयुक्त नही होता है, इस समय पड़ने वाले पाले से फसल को नुकसान हो सकता है। 

बुवाई के बाद शुरुवाती समय में पुदीना के बीज के अच्छे अंकुरण के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, जबकि पौधों के उचित विकास के लिए 30 डिग्री तक का तापमान उपयुक्त होता है। वहीं अधिकतम तापमान की बात करें तो पुदीने का पौधा गर्मियों में अधिकतम 40 डिग्री तापमान तक सहन कर सकता है। 

पुदीने की खेती के लिए खेत व पौध की तैयारी

पुदीने की खेती के लिए सबसे पहले खेती की गहरी जुताई कर उसे खुला छोड़ दें। फिर खेत में गोबर की खाद डालकर अच्छी तरह मिला दें, इसके बाद पलेव कर दें। पलेव करने के तीन से चार दिन बाद उसमें रोटावेटर चलाकर खेत की जुताई कर दें।

इसके बाद मिट्टी भुरभुरी होने पर खेत में पाटा लगाकर मिट्टी को समतल कर लें। आपको बता दें कि पुदीने की खेती करने से लगभग डेढ़-दो महीने पहले नर्सरी में पुदीने की पौध तैयार की जाती है, फिर पौधों को तैयार खेत की क्यारियों में लगाया जाता है।

पुदीना की खेती

पुदीने के पौधों की सिंचाई व उर्वरक

मिट्टी में नमी होने पर पुदीने के पौधों का विकास अच्छा होता हैं, इसलिए इसकी सिंचाई करना बहुत महत्वपूर्ण है। तेज़ गर्मी के मौसम में दो से तीन दिन के बाद पुदीने के पौधों की हल्की सिंचाई करें। फरवरी- मार्च में गर्मी कम होने पर सप्ताह में एक बार सिंचाई करना काफ़ी रहता है। वहीं सर्दी के मौसम में 15 दिन के अंतराल पर पौधों की सिंचाई करना उपयुक्त होता है। 

पुदीने की खेती में उर्वरक की बात करें तो खेत की जुताई के समय मिट्टी में प्रति एकड़ के हिसाब से लगभग 15 से 20 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद डालें। आखिरी जुताई के समय खेत में उचित मात्रा में एन.पी.के. का छिड़काव करें। फिर जब पौधा बढ़ने लगे तब तीसरी या चौथी सिंचाई के साथ खेत में 20 किलो नाइट्रोजन डालें। इसके अलावा फसल में खर पतवार नियंत्रण का भी विशेष ध्यान रखें।

पुदीने की कटाई प्रक्रिया

पुदीने के पौधों की कटाई मुख्य रूप से दो बार की जाती है। इसकी पहली कटाई पौधे की रोपाई के लगभग तीन महीने बाद की जाती है। आपको बता दें कि पुदीने के पौधों की कटाई जमीन से 4-5 सेंटीमीटर ऊपर से करें, जिससे पौधा पुनः अच्छे से विकसित हो सके। इस तरह लगभग दो महीने बाद ये फसल दूसरी कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

कटाई के बाद आप इन्हें बाज़ार में तेल निकालने के लिए बेच सकते हैं। आपको बता दें कि पुदीने के पौधों की कटाई के बाद इसकी पत्तियों को दो से तीन घंटे तेज़ धूप में सुखा लें। फिर कुछ देर छायादार जगह में सुखाकर उसका तेल निकाला जा सकता है। आपको बता दें कि पुदीने की एक हैक्टेयर खेती से लगभग 100 लीटर तेल निकाला जा सकता है। बाज़ार में ये तेल काफ़ी महंगा बिकता है, जिससे किसानों को इस खेती से अच्छा मुनाफा मिल सकता है।

FAQ 

पुदीने की खेती कब की जाती है?

वैसे तो पुदीने की खेती सालभर की जा सकती है, लेकिन अधिक ठंड की वजह से पौधों का विकास प्रभावित हो सकता है। पुदीना लगाने का सबसे अच्छा समय वसंत ऋतु यानि फरवरी से अप्रैल का महीना होता है।

पुदीना खाने के क्या फ़ायदे हैं?

आयुर्वेद के अनुसार, पुदीना कफ और वात दोष को कम करता है, भूख बढ़ाता है, साथ ही लिवर से संबंधित बीमारियों के लिए भी लाभदायक होता है।

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