Plant Diseases

लौकी की फसल में लगे रोगों और कीटों की पहचान और नियंत्रण

प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है।

लौकी एक ऐसी कद्दूवर्गीय सब्जी हैं, जिसकी फसल वर्ष में तीन बार उगाई जाती हैं। जायद, खरीफ, रबी सीजन में लौकी की फसल ली जाती है। जायद की बुवाई मध्य जनवरी, खरीफ मध्य जून से प्रथम जुलाई तक और रबी सितंबर अंत से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक लौकी की खेती की जाती है।

लौकी की फसल में फफूंद – 

जब फसल 20-25 दिन की होती है, तो ये बीमारी लग जाती है। इसे गलका, तना सड़न, जड़ गलन, बैक्टेरियल विल्ट रोग आदि नाम से जानते हैं।

लौकी की फसल में फफूंद

रोग का प्रभाव –

  • फसल की पत्तियां पीली हो जाती हैं ।
  • रोग बढ़ने से तना गल जाता है।
  • कुछ दिन बाद पौधा पूर्ण रूप से मर जाता है।
  • पत्तियां किनारे से झुलसने लगती हैं।

रोग की रोकथाम –

  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए 15 लीटर पानी में 30 ग्राम मेटालैक्सिल 8% + मैंकोजेब 64% मिला कर छिड़काव करें। यह दवा टाटा मास्टर या मैटको नाम से उपलब्ध है।
  • इसके अलावा आप 15 लीटर पानी में 12 ग्राम बायर नेटिवो नामक दवा मिला कर भी छिड़काव कर सकते हैं।

लौकी की फसल में लाल भृंग कीट :-

लौकी की फसल में लाल भृंग कीट

पहचान –

  • यह कीट चमकीले नारंगी – लाल रंग का होता है।
  • यह फूलों, पत्तियों को खाकर छलनी जैसा बना देता है। इससे पत्तियां फट जाती हैं।
  • प्रकोप अधिक होने पर पौधों की बढ़वार रुक जाती है और फल – फूल नहीं बनते ।

बचाव –

  • फसल की समय-समय पर निगरानी करते रहें।
  • खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।
  • कीटों को एकत्रित कर केरोसिन मिश्रित पानी डालकर नष्ट कर दें ।
  • प्रति एकड़ खेत में 8 से 10 नीले रंग के ट्रेप लगाएं।

रासायनिक नियंत्रण –

  • सुझाव है कि 80 ग्राम फ्लुबेंडामाइड 20% WDG या 80 ग्राम इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।

जैविक नियंत्रण –

  • 400 ग्राम बेसिलस थ्रूरिनजेंसिस को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।

लौकी की फसल में फल गलन :-

लौकी की फसल में फल गलन

पहचान –

  • इस रोग की शुरुआत में फलों के ऊपरी हिस्से में काले और भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। ये धब्बे धीरे – धीरे बढ़ते जाते हैं और फल अंदर से सड़कर बदबू देने लगते हैं। रोग अधिक होने पर फल बेल से अलग हो जाते हैं।

बचाव –

  • फसल चक्र अपनाकर फसल लगाएं।
  • रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें ।
  • बीज को उपचारित करके बुवाई करें।
  • रोगी फलों को तोड़कर खेत से अलग कर दें।

रासायनिक नियंत्रण –

जैविक नियंत्रण –

  • 1 किलोग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
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