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हर क्षेत्र की तरह कृषि में भी बदलते समय के साथ किसान नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। वे पारंपरिक फसलों के अलावा कई अन्य जड़ी बूटियों की भी खेती में हाथ आजमा रहे हैं, जिसका उन्हें अच्छा लाभ भी मिल रहा है। यही वजह है कि आज कल औषधीय पौधों की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। शतावरी की खेती भी इन्हीं में से एक है, जो कम लागत में किसानों की अच्छी कमाई का जरिया बन सकती है।
चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में शतावरी की खेती से होने वाले लाभ के बारे में विस्तार से जानते हैं!
औषधीय गुणों से भरपूर है शतावरी
शतावरी के पौधे का आयुर्वेद में बहुत महत्व बताया गया है। इसके शाब्दिक अर्थ की बात करें तो ये है सौ पत्ते वाला पौधा। आपको बता दें कि शतावरी के कई अन्य नाम भी हैं, जैसे: सतावरी, सतावर, सतमूल और सतमूली आदि।
शतावरी का वानस्पतिक नाम ‘एस्पेरेगस रेसीमोसम’ है। आयुर्वेद के अनुसार ये पौधा औषधीय गुणों से भरपूर होता है। शतावरी को भारत, श्रीलंका और हिमालय क्षेत्र में प्रमुख रूप से उगाया जाता है। इस औषधीय पौधे में कई शाखाएं होती हैं। ये एक कांटेदार लता के रूप में 1-2 मीटर तक लंबा होता है, और इसकी जड़ें गुच्छे जैसी होती हैं।
शतावरी की खेती के लिए नर्सरी
शतावरी की खेती के लिए सबसे पहले नर्सरी तैयार की जाती है। इसकी नर्सरी के लिए आप उन्नत किस्म के शतावरी बीज ग्रामिक से बहुत ही किफायती मूल्य पर घर बैठे प्राप्त कर सकते हैं। नर्सरी तैयार करने के लिए खेत की अच्छी तरह से जुताई की आवश्यकता होती है।
इसके अलावा किसान साथी इस बात का भी ध्यान रखें कि खेत में पहले की फसल के कुछ अवशेष न रह पाएं। इसलिए खेत की 3-4 जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी कर लें, फिर इसमें जैविक खाद मिलाकर खेत तैयार कर लें।
ऐसे डाली जाती है शतावरी की नर्सरी
औषधीय पौधे शतावरी की नर्सरी के लिए 1 मीटर चौड़ी व 10 मीटर लंबी क्यारी तैयार की जाती है। किसान साथी क्यारी से कंकड़-पत्थर निकाल दें। आपको बता दें कि शतावरी के बीजों की अंकुरण दर लगभग 60 से 70 प्रतिशत तक होती है।
बीज की बात करें तो एक हैक्टेयर में खेती करने के लिए लगभग 12 किलोग्राम शतावरी के बीज की आवश्यकता होती है। क्यारी में 15 सेंटी मीटर की गहराई में बीजों की बुवाई करें। इसके बाद इसे मिट्टी ढक दें। शतावरी की खेती में किसान साथी उचित जल निकासी की व्यवस्था करें।
शतावरी की खेती में सिंचाई
शतावरी की नर्सरी डालने के तुरंत बाद इसकी सिंचाई करें। बीजों की बुवाई के दो महीने के बाद ये पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। आपको बता दें शतावरी के पौधों की रोपाई के लिए खेत में मेड़ें बनाई जाती हैं। फिर इन मेड़ों पर पौधों को उचित दूरी पर लगाया जाता है।
आपको बता दें मेड़ों पर रोपाई करने से शतावरी के पौधों का विकास जल्दी होता है। ये जड़ वाला पौधा है, इसलिए खेत में पानी बिल्कुल भी न जमा होने दें। इससे पौधों की जड़ों के सड़ने का ख़तरा नहीं होता है।
शतावरी की जड़ें इतने दिन में होती हैं तैयार
शतावरी की रोपाई के 12 से 14 महीने बाद इसकी जड़ें परिपक्व होने लगती हैं, हालांकि इसे पूरी तरह से तैयार होने में लगभग 3 साल का समय लगता है। किसानों को प्रति एकड़ 350 क्विंटल गिली जड़े प्राप्त होती हैं, जो सूखने के बाद 35 क्विंटल ही रह जाती हैं. वर्तमान समय में कई कंपनियां किसानों से कॉन्ट्रैक्ट कर शतावरी की खेती करा रही हैं. इसका फायदा यह है कि किसानों को पैदावार की बिक्री के लिए भटकना नहीं पड़ता है.
आपको बता दें कि एक पौधे से लगभग 500 से 600 ग्राम जड़ें मिल सकती हैं। वहीं प्रति एकड़ उत्पादन की बात करें तो एक एकड़ से लगभग 350 क्विंटल ताजी जड़ें ली जा सकती हैं, वहीं ये जड़ें सूखने के बाद सिर्फ़ 35 किलो ही बचती हैं।
शतावरी की खेती में लागत प्रति एकड़ 80 हजार से 1 लाख रुपए आती है जबकि एक एकड़ में लगभग 4 लाख तक का मुनाफा होता है। ऐसे में ये बात तो साफ है कि शतावरी की खेती किसानों की आय में कई गुना बढ़ोत्तरी कर सकती है।
शतावरी से बनी औषधि का प्रयोग
शतावरी से बनी औषधि का प्रयोग पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ाने में किया जाता है। इसके अलावा भूख बढ़ाने और पाचन शक्ति सुधारने में भी इसकी औषधि का इस्तेमाल होता है। सतावर का उपयोग कई तरह के चर्म रोग को ठीक करने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही अनिद्रा के इलाज में भी शतावरी का प्रयोग किया जाता है।
FAQ
शतावरी की खेती यूपी, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, राजस्थान में बड़े पैमाने पर होती है। भारत के अलावा भी कई देशों में ये औषधीय पौधा उगाया जाता है।
उत्तर प्रदेश के सआदतगंज, बदायूं, बरेली, दिल्ली, मध्यप्रदेश और मुंबई में स्थित मंडियों में शतावरी की ब्रिक्री व ख़रीद का कारोबार किया जाता है।
शतावरी एक औषधीय जड़ी-बूटी है, जिसका इस्तेमाल कई तरह की दवाइयों को बनाने के लिए किया जाता है।
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