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सब्ज़ियों की मांग साल भर रहती है। इनमें से कुछ ऐसी भी सब्जियां हैं, जो साल भर उगाई जा सकती हैं, वहीं कुछ सब्जियां एक विशेष सीजन में मिलती हैं। मांग अधिक होने के कारण किसानों को सब्ज़ियों की खेती से मुनाफा भी अच्छा होता है। लेकिन रोग व कीट लगने से भिंडी, मिर्च, बैंगन व टमाटर जैसी सब्ज़ियों की पैदावार पर काफी बुरा असर देखा जाता है।
चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में जानते हैं सब्ज़ियों में लगने वाले रोगों व कीटों से बचाव के उपाय।
तना और फल छेदक
तना और फल छेदक कीट सब्ज़ियों वाली फसल में लगने वाला एक प्रमुख कीट है। ये कीट पौधों की टहनियों में छेद कर देते हैं, जिसके कारण प्रभावित टहनियां गिर जाती हैं, और इनके लार्वा फलों में भी आ जाते हैं। इसके लिए किसान साथी इन कीट के प्रकोप वाले भाग को नष्ट कर दें। यदि कीटों का हमला ज्यादा है, तो 1 मि.ली. स्पिनोसेड को प्रति लीटर पानी या 18.5% एस.सी.क्लोरैंट्रानिलिप्रोल पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
भुरभुरी फफूंदी
कभी कभी फसल की नई पत्तियों और फलों पर बड़ी मात्रा में सफेद चूर्ण जैसा दिखता है। फसल पर ये फफूंदी लगने के कारण पत्ते समय से पहले पत्ते झड़ जाते हैं, और फल भी गिरने लगते हैं। वहीं जो फल बच भ जाते हैं, उनकी गुणवत्ता खराब हो जाती है और वे आकार में छोटे रह जाते हैं। यदि आपके खेत में इसका हमला दिखे तो 25 ग्राम गीले टेबल सल्फर को 10 लीटर पानी में या 5 मि.ली. डाइनोकैप को 10 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर 4 बार छिड़काव करें।
एफिड
सब्ज़ियों में एफिड का सबसे ज्यादा प्रभाव इसकी नई पत्तियों और फलों पर देखा जाता है। ये पौधों का रस चूसकर उसे कमजोर बना देते हैं। इसका हमला ज्यादा बढ़ने पर नई पत्तियां मुड़ जाती हैं। इसके अलावा एफिड से शहद जैसा पदार्थ निकलता है, जिससे प्रभावित भागों पर काली फफूंद बन जाती है।
संक्रमण का पता चलते ही प्रभावित भाग को नष्ट कर दें। वहीं प्रकोप ज्यादा बढ़ने पर बुवाई के 20 से 35 दिन बाद 300 मिली डाइमेथोएट को 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। वहीं इनका प्रकोप बना रहने पर आप ये छिड़काव दोहरा सकते हैं।
फफोला भृंग
भृंग सब्ज़ियों में पराग, पंखुड़ी और फूलों की कलियों को खाता है। यदि इसका हमला दिखे तो फूल पत्तों के संक्रमित भाग को खेत से हटा दें। हमला ज्यादा बढ़ने पर 800 ग्राम कार्बरिल को 150 लीटर पानी में या 400 मि.ली. मैलाथियान को 150 लीटर पानी में या फिर 80 मि.ली. साइपरमेथ्रिन को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इससे आप फफोला भृंग की रोकथाम कर सकते हैं।
येलो वेन मोजैक वायरस
सब्ज़ियों की फसल में ये रोग लगने के कारण पौधों की शिराओं में पीलापन आने लगता है, जिससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है और वे बौने रह जाते हैं। ये रोग इतना हानिकारक होता है कि इससे उपज में 80-90% तक की हानि होती है। आपको बता दें कि ये रोग सफेद मक्खी व लीफ होपर की वजह से फैलता है।
येलो वेन मोजैक वायरस की रोकथाम के लिए किसान साथी भिंडी की प्रतिरोधी किस्म का चयन करें, और जिन पौधों में रोग लगा हुआ हो उन्हें खेत से जल्द से जल्द हटा दें। वहीं इसका संक्रमण ज्यादा बढ़ने पर 300 मि.ली. डाइमेथोएट को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
सर्कोस्पोरा लीफ स्पॉट
ये रोग होने पर पौधों की पत्तियों पर भूरे और लाल किनारों के धब्बे दिखाई देते हैं। इस संक्रमण से बचाव के लिए आप बीज की बुआई करने से पहले थीरम से बीजोपचार जरूर करें। वहीं अगर पौधे विकसित होने के बाद खेत में इस रोग का हमला दिखे तो 4 ग्राम मैंकोजेब प्रति लीटर या 2 ग्राम कार्बेनडाज़ाइम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
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जड़ सड़न
फसल में ये रोग लगने के बाद प्रभावित जड़ें गहरे भूरे रंग की हो जाती हैं, और संक्रमण बढ़ने पर पौधे मर जाते हैं। इस रोग से अपनी फसल को बचाने के लिए किसान मोनोक्रॉपिंग से बचें और फसल चक्र अपनाएँ। वहीं बीज की बुवाई से पहले प्रति किलो बीज को 2.5 ग्राम कार्बेनडाज़िम से उपचारित जरूर करें।
पौधे मुरझाना
कई बार सब्ज़ियों के कुछ पौधे शुरुआती अवस्था में ही मुरझाने लगते हैं और इनकी पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। ऐसे में पौधों का उचित विकास नहीं हो पाता, जिसका सीधा असर उपज पर पड़ता है। यदि आपके भी खेत में पौधे शुरुवाती अवस्था में मुरझा रहे हैं, तो जड़ क्षेत्र के आसपास 10 लीटर पानी में 10 ग्राम कार्बेनडाज़िम मिलाकर फसल पर उसका छिड़काव करें।
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FAQ
भिंडी की खेती मुख्यतः दो बार की जाती है। गर्मियों में इसकी खेती मार्च-अप्रैल और बरसात में जून-जुलाई में होती है।
हरी मिर्च की अधिकतर किस्में 55 से 60 दिन में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं।
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