भारत की आधी आबादी कृषि पर ही निर्भर है। देश में अलग अलग तरह की मिट्टी और जलवायु पाई जाती है, जिसमें कई फसलें उगाई जाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आज के आधुनिक समय में अगर खेती-किसानी से अच्छी आमदनी उठानी है, तो किसानों को उन फसलों पर ध्यान देना होगा, जिसमें लागत कम लगे, और मुनाफा ज्यादा हो। लेकिन जागरूकता की कमी के कारण किसान इस प्रकार की खेती नहीं करते हैं।
चंदन की खेती (sandalwood cultivation in india)
चंदन की लकड़ी की देश-विदेश में काफ़ी मांग है। ये लकड़ी परफ्यूम, तेल, हवन सामग्री, दवाएं, धार्मिक कार्य, खिलौने आदि में इस्तेमाल की जाती है। आज महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश से लेकर दक्षिण भारत के किसान चंदन की खेती करके अच्छी आमदनी उठा रहे हैं।
चंदन चार तरह के होते हैं- लाल चंदन, सफेद चंदन, मयूर आयर और नाग चंदन। सफ़ेद चंदन की तुलना में लाल चंदन की मांग और दाम ज़्यादा रहती है। लाल चंदन की खेती के लिए शुष्क गर्म जलवायु. और दोमट मिट्टी अच्छी होती है, मिट्टी का पीएच मान 4.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए।
ध्यान रहे कि रेतीले और बर्फीले क्षेत्रों में इसकी खेती ना करें। चंदन के पौधे लगाने के लिए मई से जून के बीच का समय सबसे उचित होता है। एक बात और, कि चंदन की खेती के लिए इनकी खेती से पहले आपको सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता है। लाल चंदन के पौधे तैयार होने में लगभग 10 से 15 साल का समय लग सकता है।
मशरूम की खेती (mushroom cultivation in india)
इन दिनों मशरूम के रूप में बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। ऐसे में मशरूम की खेती से आपको अच्छा मुनाफा मिल सकता है। मशरूम 25 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर सितंबर, अक्टूबर से लेकर मार्च तक उगाया जाता है।
बाजार में जितनी इसकी मांग है, उतनी आपूर्ति नहीं हो पा रही है, इसलिए मशरूम की खेती करके आप कुछ ही सालों में बहुत तरक्की कर सकते हैं। इस खेती से साल में पांच लाख से ज़्यादा की कमाई की जा सकती है। और लागत की बात की जाए, तो मशरूम की खेती में 60 हज़ार से एक लाख रुपए तक का खर्च आता है।
यूं तो मशरूम की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन भारत में ज्यादातर सफेद बटन मशरुम की एस-11, टीएम-79 और होर्स्ट यू-3 किस्मों की खेती होती है। इसको हवादार कमरे या झोपड़ी में आसानी से उगा सकते हैं।
बांस की खेती (bamboo farming in india)
बांस की खेती करके भी किसान कुछ ही समय में अपनी आर्थिक स्थिति अच्छी कर सकते हैं। बांस की खेती का एक फायदा ये भी है कि इसे किसी भी तरह की मिट्टी में उगा सकते हैं। बांस की खेती आप बारिश के समय करें, क्योंकि शुरू में इसे पानी की बहुत जरूरत होती है।
बांस के एक पौधे की कीमत लगभग 250 रुपए तक होती है। हालांकि इस खेती के लिए किसानों को राष्ट्रीय बांस मिशन के अंतर्गत सरकार की तरफ से 50 हजार तक की सब्सिडी भी मिलती है। यदि छोटे किसान कम क्षेत्र में बांस की खेती करते हैं, तो उन्हें प्रति पौधा 120 रूपये तक का अनुदान दिया जाता है। वहीं अगर किसान नेशनल बंबू मिशन के 1000 पौधे की रोपाई करते हैं, तो उन्हें 1,20,000 रुपये तक का अनुदान मिल सकता है।
बांस की खेती के फायदों की बात करें, तो इस खेती को बार बार करने की ज़रूरत नहीं होती है। एक बार बांस के पौधों की रोपाई के बाद 30-40 साल तक कमाई हो सकती है। इस खेती में एक फायदा ये भी रहता है कि इसमें रोग, कीट, मौसम की मार, आंधी-तूफान आदि का ख़तरा नहीं रहता है। वहीं यदि आप खेत के चारों ओर बांस के पेड़ लगाते हैं, तो खेत से मिट्टी का कटाव भी रुकता है।
एलोवेरा की खेती (aloe vera cultivation in india)
कोरोना महामारी के बाद से ही बाजार में एलोवेरा की डिमांड काफी बढ़ गई है. एलोवेरा के सौंदर्य प्रसाधनों से लेकर दवाओं तक में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन मांग की तुलना में इसके उत्पादन में बहुत कमी है।
अच्छी बात ये है कि एलोवेरा की खेती में खाद, उर्वरक, कीटनाशक आदि की ज़रूरत नहीं होती है, इसलिए इसमें लागत कम आती है। एलोवेरा की एक विशेषता ये भी है कि ये बंजर जमीन पर भी उगाई जा सकती है, इसलिए ये खेती बेकार ज़मीन के लिए भी वरदान बन सकती है। हालांकि इसके लिए रेतीली मिट्टी सबसे अच्छी रहती है।
एलोवेरा की खेती में प्रति एकड़ 10-11 हज़ार पौधे लगाने का खर्च लगभग 18 से 20 हज़ार रुपये तक आता है। इससे एक साल में 20-25 टन एलोवेरा पमिलता है, जो बाजार में 25-20 हज़ार रुपये प्रति टन के भाव से बिकता है। यानि देखा जाए तो एलोवेरा की खेती से बंपर कमाई की जा सकती है। आप चाहें तो हिमालय हर्बल, पतंजलि या अन्य आयुर्वेदिक कंपनियों के साथ मिलकर एलोवेरा की कॉन्ट्रैक्ट या कमर्शियल फार्मिंग कर सकते हैं।
केसर की खेती (saffron cultivation in india)
पूरी दुनिया में केसर को लाल सोना कहा जाता है. यह सबसे महंगा मसाला है, जिसकी दुनिया भर में काफी डिमांड है. भारत में कश्मीर को केसर का सबसे बड़ा उत्पादक कहा जाता है. लेकिन अब आधुनिक तकनीकों के आ जाने से आप अपने घर के अंदर भी केसर का उत्पादन ले सकते हैं।
एरोपॉनिक तकनीक से इसकी खेती करके अच्छा पैसा कमा सकते हैं। बाजार में केसर की कीमत (kesar price) प्रतिकिलो 2 लाख रुपए से 4 लाख रुपए तक होती है।
इसके लिए एक खाली कमरे में एरोपॉनिक तकनीक का ढांचा तैयार करें। इस कमरे में AC चलाकर दिन का तापमान 17 डिग्री और रात का तापमान 10 डिग्री सेल्सियस रखें, और ह्यूमिडिटी 80 से 90 डिग्री तक रखें। अब एरोपॉनिक ढांचे में मिट्टी को भुरभुरा करके डालें और इस तरह बराबर करें कि इसमें पानी ना जमा होने पाये।
इस मिट्टी में गोबर की खाद, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश डालें, जिससे केसर की उपज अच्छी हो। इस बात का भी ध्यान रहे कि कमरे में सूर्य की सीधी रोशनी ना पड़े। अब मिट्टी में लाल केसर के बीजों की बुवाई करें, और समय-समय पर इसकी देखभाल करते रहें।
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