प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है।
दुनिया भर में हर क्षेत्र में कई क्रांतिकारी बदलाव हो रहे हैं, और हमारा कृषि क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। अब देश-दुनिया के किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ इनोवेशन, यानि आधुनिक तरीकों (AgriTech) पर भी ध्यान दे रहे हैं। कृषि-बागवानी के लिये कई ऐसे मॉडल तैयार किये जा रहे हैं, जिनसे कम संसाधनों के प्रयोग से भी अच्छी उपज मिल सके।
इस कड़ी में भारत ने आर्गेनिक खेती (organic natural farming) और इजराइल ने वर्टिकल फार्मिंग के माध्यम से पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया है। और अब केन्या ने भी एग्रीवोल्टिक्स तकनीक (agrivoltaics farming) अपनाकर कुछ ऐसा ही कर दिखाया है।
एग्रीवोल्टिक्स तकनीक (agrivoltaics farming) क्या है?
केन्या के किसान खेतों में सोलर पैनल लगवाकर उनके नीचे बागवानी कर रहे हैं। साथ ही सिंचाई के लिये बरसात के पानी का प्रयोग किया जा रहा है। विशेषज्ञों ने इस बेहतरीन मॉडल को ‘एग्रीवोल्टिक्स’ नाम दिया है।
एग्रीवोल्टिक्स’ (agrivoltaics farming) का इस्तेमाल कैसे क्या जाता है?
‘एग्रीवोल्टिक्स’ सुनने में तो काफ़ी तकनीकी नाम लगता है, किंतु ये एक आसान और टिकाऊ कृषि पद्धति के तौर पर उभरकर सामने आ रही है। वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम ने भी इस मॉडल की बहुत सराहना की है। बता दें कि एग्रीवोल्टिक्स तकनीक के ज़मीन पर सोलर पैनल लगाये जाते हैं, और उसी के नीचे बागवानी वाली फसलें उगाई जाती है।
इस तरह बिजली और सब्जियों की खेती दोनों एक साथ एक ही ज़मीन पर हो रही है। एक रिसर्च में कहा गया है कि खेती के इस मॉडल से फसलों का उत्पादन काफ़ी बेहतर हुआ है। जहां एक तरफ सोलर पैनल के नीचे छाया में फसलों की उपज और गुणवत्ता अच्छी हुई तो वहीं सोलर पैनल से बिजली लेकर खेती की लागत को भी कम करने में बहुत सहायता मिली है।
एग्रीवोल्टिक्स (agrivoltaics farming) का कब और कहां हुआ आविष्कार?
बता दें कि एग्रीवोल्टिक्स कोई नया मॉडल नहीं है, बल्कि साल 1981 में एडॉल्फ गोएट्ज़बर्गर और आर्मिन ज़ास्ट्रो ने ही दुनिया के सामने पेश किया. इसके बाद साल 2004 में एग्रीवोल्टिक्स का मॉडल जापान में भी ख़ूब चलन में आया।
इसकी सफलता के बाद धीरे-धीरे पूर्वी अफ्रीका पहुंचा और वहीं इसे आधिकारिक तौर पर मान्यता मिली।आज ये मॉडल लगभग पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवा चुका है।
इस मॉडल को लेकर जानकारों का कहना है कि सौर पैनल की छाया में पौधों और मिट्टी की नमी रहती है, साथ ही गर्मी के मौसम में तापमान ज़्यादा होने के कारण पौधों के झुलसने का भी ख़तरा नहीं रहता है। आज बागवानी के लिये सबसे ज़्यादा मुश्किलों का सामना करने वाला केन्या भी एग्रीवोल्टिक्स की सहायता से काफ़ी तरक्की कर रहा है।
भारत में कहां- कहां अपनाया जा रहा एग्रीवोल्टिक्स (agrivoltaics farming)?
आज अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी जैसे विकसित देशों ने एग्रीवोल्टिक्स की मदद से कृषि और बागवानी के क्षेत्र में खूब तरक्की हासिल की है, और अब भारत भी इससे पीछे नहीं है। यहां भी उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में एग्रीवोल्टिक फार्म बनाए जा रहे हैं।
हालांकि भारत में अभी इसकी शुरूआत ही है, लेकिन कुछ समय में यह तरीक़ा किसानों को कई प्रकार के लाभ दिला सकता है।एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कुछ भारतीय अनुसंधान संस्थानों की सहायता से राजस्थान के जोधपुर व सीतापुर जैसे गर्म क्षेत्रों के किसानों ने एग्रीवोल्टिक्स का मॉडल लगाया है।
इस मॉडल से राजस्थान के किसानों को विशेष रूप से सफलता मिली है। यहां सोलर पैनल की सहायता से भीषण धूप के बावजूद भी किसान अब आराम से खेती कर पा रहे हैं।
तो किसान भाइयों, क्या आप भी एग्रीवोल्टिक्स (agrivoltaics farming) का ये मॉडल अपनाना चाहेंगे? हमें कमेंट सेक्शन में लिखकर बताइए।
खेती किसनी से जुड़े अन्य blog –
High Density Planting
पॉलीहाउस तकनीक से करें बेमौसमी फसलों की खेती
Drones Optimizing Agricultural Productivity
Post Views: 3