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मटर की फसल कम समय में अधिक पैदावार देने वाली फसल है, जिससे किसान भाइयों को इसकी खेती से अच्छा मुनाफा मिलता है। ये प्रमुख दलहनी फसलों में से एक है। मटर में प्रोटीन, फॉस्फोरस, विटामिन और आयरन की पर्याप्त मात्रा के साथ साथ कई अन्य पोषक तत्व भी पाए जाते हैं। अधिक समय तक रखने के लिए ताज़ा हरे मटर के दानो को सुखाकर भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में मटर की फसल को कच्ची फलियों के रूप में बेचने के साथ-साथ इसके दानो को पकाकर दाल के रूप में बेचा जाता है। चलिए आपको आज के इस लेख के माध्यम से मटर की खेती (Peas Farming ) से जुड़ी पूरी जानकारी देते हैं।
मटर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Peas Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)
मटर की खेती रबी के मौसम में की जाती है। यह शीत ऋतु की फसल है। ठंडी जलवायु में इसके पौधे अच्छे से वृद्धि करते हैं, तथा सर्दियों में गिरने वाले पाले को भी इसका पौधा आसानी से सहन कर लेता है।
मटर का पौधा 5 डिग्री न्यूनतम तथा अधिकतम 25 डिग्री तापमान को सहन कर सकता है। मटर के पौधों को अधिक वर्षा की आवश्यकता नहीं होती है, तथा अधिक गर्म जलवायु भी पौधों के लिए उपयुक्त नहीं होती है। भुरभुरी दोमट मिट्टी मटर की खेती के लिए उत्तम मानी जाती है।
इस तरह करें मटर की बुआई (Pea Farming Method)
बीज बोने की दूरी
मटर की जल्दी तैयार होने वाली किस्मों की बुआई (मटर के बीज ) के समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी एवं पौधे से पौधे की दूरी 5-6 सेमी रखें। मध्यम और देर से पकने वाली किस्मों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 8-10 सेमी रखें।
बीज उपचार
थायरम 3 ग्राम प्रति किलो या बाविस्टीन 2 ग्राम प्रति किलो की दर से बीज को उपचारित कर लें, इसके बाद 3 ग्राम प्रति किलोग्राम राइजोबियम से भी उपचारित करें।
खाद एवं उर्वरक
मटर की फसल में पर्याप्त पानी व खाद का उपयोग करें। साथ ही अधिक उपज लेने के लिए नाइट्रोजन फासफोरस का भी उपयोग करें। साथ ही अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 20 टन प्रति हे. की दर से खेत की तैयारी के समय में अच्छी तरह से मिला दें।
मटर की फसल के लिए सिंचाई प्रबंधन(Irrigation management for pea crop)
मटर की बुवाई खेत को पलेवा करके बोना चाहिए. इसके बाद 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई कर सकते हैं जो कि भूमि और बारिश पर निर्भर करती है. मटर की फसल के लिए 2 से 3 सिंचाई की जरूरत पड़ती है. अच्छी पैदावार के लिए पहली सिंचाई बुवाई से पहले ही कर देना चाहिए.
वही दूसरी सिंचाई फूल आने के बाद और तीसरी सिंचाई फलियां आने के बाद करना चाहिए. बता दें कि मटर की फसल में अधिक सिंचाई नुकसानदायक होती है. इससे पौधे की जड़े सड़ने और पीले पड़ने की संभावना रहती है।
मटर की उन्नत किस्में (Peas Improved Varieties)
मटर की उन्नत किस्मों की बात करें तो शालीमार (Gold), युवराज, एडवांटा और रेमिक हराभरा रिसर्च मटर बीज आदि अच्छी उपज देने वाले माने जाते हैं।
मटर की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed Management in Pea Crop)
मटर की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक विधि का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा यदि आप प्राकृतिक विधि का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको बीज रोपाई के तक़रीबन 25 दिन बाद पौधों की गुड़ाई कर खरपतवार का निस्तारण करना होता है।
इसके पौधों को केवल दो से तीन गुड़ाई की ही जरूरत होती है, और प्रत्येक गुड़ाई 15 दिन के अंतराल में करनी होती है। खेतों में पलेवा (मिट्ठी के ढेलों को चूर करना) करके से भी काफ़ी हद तक खरपतवार खत्म हो जाते हैं। रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए ग्रामिक के कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेकर खेतो मे उचित खरपतवार नाशी का छिड़काव कर सकते हैं।
मटर के फसल की कटाई, पैदावार और लाभ (Pea Harvesting, Yield and Benefits)
मटर की फसल बीज रोपाई के 130 से 140 दिन में पकाकर के लिए तैयार हो जाती है, जिसके बाद सूखे दानों को उनकी फलियों से अलग कर लिया जाता है। अगर आपका खेत एक हेक्टेयर तक है तो आपको तक़रीबन 20 से 25 क्विंटल का उत्पादन मिल जायेगा।
मटर का बाज़ारी भाव दो से तीन हजार रूपए प्रति क्विंटल होता है, जिससे किसान भाई एक बार की फसल से 50 से 70 हज़ार रूपए की कमाई कर अच्छा फ़ायदा कमा सकते हैं।
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