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दलहनी फसलों में उड़द की खेती भारत में प्रमुख रूप से की जाती है। इसका सेवन दाल के रूप में किया जाता है। इसकी खेती खरीफ, रबी और ग्रीष्म ऋतु में की जा सकती है। उड़द की खासियत ये है कि कि ये बहुत कम समय में तैयार हो जाती है।
इसे पकने में 65-70 दिन का समय लगता है। इसकी फसल खरीफ, रबी एवं ग्रीष्म मौसमो के लिये उपयुक्त फसल है। आपको बता दें कि उड़द की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और हरियाणा के सिंचित क्षेत्रों में प्रमुख रूप से की जाती है। उड़द की फसल मृदा संरक्षण व उर्वरता को बढ़ाने का भी काम करता है।
उड़द की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
उड़द की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्र सबसे उपयुक्त माना जाता है। गर्म और आर्द्र जलवायु में इसका विकास अच्छा होता है। देश के उत्तरी भागों में जहां सर्दियों के दौरान तापमान में गिरावट होती है, वहाँ इसकी खेती बरसात व गर्मी के मौसम में की जाती है। जहाँ की जलवायु सामान्य होती है, वहाँ इसकी खेती सर्दी और बरसात के मौसम में भी की जा सकती है।
उड़द की खेती के लिए भूमि की तैयारी
उड़द रेतीली मिट्टी से लेकर भारी जैसी कई प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती हैं। उड़द की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी की बात करें तो अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी, जिसका पीएच मान 6.5 से 7.8 होता है, वो अच्छी मानी जाती है। क्षारीय और लवणीय मिट्टी में उड़द की खेती से लाभ की संभावना कम होती है।
उड़द की बुवाई का समय व विधि
खरीफ: खरीफ सीजन उड़द की खेती के लिए जून के अंत व जुलाई की शुरुआत का समय सबसे अच्छा माना जाता है। दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े से नवंबर के दूसरे पखवाड़े तक का समय भी उपयुक्त होता है। ग्रीष्म ऋतु में उड़द की बुवाई फरवरी के तीसरे सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है।
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किसान साथी बुवाई से पहले बीज उपचार ज़रूर कर लें, इससे फसल का विकास अच्छा होगा और उपज भी अच्छी होगी। बुवाई के समय बीजों की दूरी 20-25 सें.मी. रखें। सामान दूरी पर बुवाई के लिए आप सीड ड्रिल मशीन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
उड़द की फसल के लिए आवश्यक उर्वरक
उड़द की खेती में आप अपनी भूमि के अनुसार उचित मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर आदि का इस्तेमाल करें। हालांकि फॉस्फेटिक और पोटाश मिट्टी की जांच के अनुसार ही प्रयोग करना उचित रहेगा। उर्वरक का छिड़काव आप बुवाई के समय या बुवाई से ठीक पहले कर सकते हैं खेत में उर्वरक का छिड़काव इस तरह से करें कि ये बीज के 5- 7 सेंटीमीटर नीचे रहे।
उड़द की खेती में जल प्रबंधन
खरीफ सीजन में उड़द की फसल सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती है, लेकिन अगर आपके क्षेत्र में बारिश कम हो रही है, और खेत में नमी की कमी है तो फली में दाने आते समय एक सिंचाई करें। वहीं जो किसान गर्मी के मौसम में उड़द की खेती कर रहे हैं, उन्हें फसल में 3-4 सिंचाई करनी चाहिए। फसल में सिंचाई 10-15 दिन के अन्तराल पर करें। फूल आने से लेकर फली बनने तक खेत में नमी बनी रहनी चाहिए।
उड़द की खेती में खरपतवार नियंत्रण
उड़द की बुवाई के बाद कम से कम 40 दिनों तक खेत में खर पतवार नियंत्रण का विशेष ध्यान रखें। इस दौरान ज़रूरत के हिसाब से फसल में निराई-गुड़ाई करते रहें। आप कृषि विशेषज्ञ द्वारा सुझाए गए रसायनों का इस्तेमाल कर सकते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए ग्रामिक पर उच्च गुणवत्ता वाले हर्बिसाइड उपलब्ध हैं। आप अभी ऑर्डर करके इन्हें घर बैठे प्राप्त कर सकते हैं।
उड़द की फसल में कीट व रोग नियंत्रण
पीला मोज़ेक वायरस
यह रोग जेमिनी वायरस के समूह से संबंधित है, जो सफेद मक्खी से फैलता है। इस वायरस के कारण पत्तियों पर पीले मोज़ेक धब्बे दिखने लगते हैं, और समय के साथ पूरे पौधे पर पीलापन आ जाता है। ऐसा होने पर फसल में फूल व फली का विकास प्रभावित हो सकता है।
नियंत्रण के उपाय
इस वायरस के नियंत्रण के लिए रोगग्रस्त पौधों को खेत से हटा दें। फसल में सफेद मक्खी के प्रकोप को रोकने के लिए ट्राईजोफॉस 40 ईसी, मैलाथियान 50 ईसी या ऑक्सीडेमेटन मिथाइल 25 ईसी की निर्धारित मात्रा को पानी में मिलकर इसका छिड़काव करें। जरूरत पड़ने पर 15 दिनों के अंतराल पर आप इस छड़काव को दोहरा सकते हैं।
झुलसा
झुलसा रोग अंकुरण से पहले की अवस्था में बीज सड़न का कारण बनता है और अंकुरण होने के बाद अंकुर मर जाते हैं। अंकुरण के बाद की अवस्था में इसका अधिक प्रकोप होता है। आपको बता दें कि झुलसा रोग मिट्टी या बीज जनित संक्रमण के कारण होता है।
नियंत्रण के उपाय
उड़द में झुलसा रोग के नियंत्रण के लिए किसान साथी फसल की बुवाई के समय जिंक सल्फेट @25 कि.ग्रा./हेक्टेयर या नीम केक @150 कि.ग्रा./हेक्टेयर या सड़ी हुई गोबर की खाद का इस्तेमाल करें। इसके साथ ही रोग के प्रसार को रोकने के लिए आप रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट दे।
फसल में कीट प्रबंधन
चेपा
चेपा कीट उड़द के छोटे पौधों, पत्तियों, तने और फलियों पर लगते हैं। इनके प्रकोप के कारण छोटे पौधों की पत्तियाँ मुड़ जाती हैं।
रोक थाम
अगर फसल में चेपा कीट का हमला दिखे तो Imidacloprid 17.8 SL 100ml/acre का स्प्रे करें।
फली छेदक कीट
फली छेदक कीट उड़द के साथ-साथ चना, अरहर, टमाटर आदि फसलों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। छोटी इल्लियाँ पीली भूरे रंग की होती हैं, जो पत्तियों को नुकसान पहुंचाती हैं व बड़ी इल्ली फूलों व फली में छेदकर खाती है। फसल के दौरान 12-15 दिन या ज़्यादा समय तक बादल रहने पर इस कीट के लगने की संभावना काफ़ी अधिक होती है। ये कीट फसल की फलियों को 60-70% तक नुकसान पहुंचा सकता है।
रोक थाम
फली छेदक कीट की रोकथाम के लिए प्रति एकड़ 4-6 फीरोमोन ट्रैप लगाएं। इन कीटों का प्रकोप ज़्यादा हो तो स्पेनोसेड 1.0 ml /4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
कटाई, मड़ाई और भंडारण
किसान साथी उड़द की तुड़ाई तब करें, जब 70-80% फलियाँ पक जाएँ और अधिकांश फलियाँ काली हो जाएँ। ज़्यादा पकने पर फलियां फूट कर बिखर सकती हैं। कटी हुई फसल को खलिहान में सूखने के बाद आप इसकी मड़ाई कर सकते हैं। मड़ाई के बाद आप बीजों को 3-4 दिन तक धूप में सुखा लें, फिर भंडारण करें।
FAQ
उड़द की फसल को पककर तैयार होने में 65 से 70 दिन का समय लग सकता है।
क्षेत्र की जलवायु के अनुसार उड़द की खेती खरीफ, रबी और ग्रीष्म ऋतु में की जा सकती है।
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