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किसान साथियों, ये तो आपको पता ही होगा कि किसी खेत में एक ही फसल न उगा कर फसलें बदल-बदल कर उगाने की परम्परा काफ़ी समय से चली आ रही है।
ऐसा इसलिए क्योंकि लगातार एक ही फसल उगाने से उत्पादन में कमी आ जाती है। खेत की उत्पादन क्षमता को बनाये रखने के लिए फसल चक्र (crop rotation) सिद्धान्त बनाया गया है।
फसल चक्र क्या है?
किसी निश्चित क्षेत्रफल पर निश्चित अवधि के लिए भूमि की उर्वरता को बनाये रखने के उद्देश्य से फसलों का अदल-बदल कर उगाने की प्रक्रिया को फसल चक्र कहा जाता है।
फसल चक्र के सिद्धान्त
फसल चक्र अपनाने के लिए किसान साथी कुछ सिद्धान्तों का ज़रूर ध्यान रखें, जैसे:-
- अधिक खाद वाली फसलों के बाद कम खाद की मांग वाली फसलें उगाएं।
- अधिक पानी चाहने वाली फसल के बाद कम पानी वाली फसल का चयन करें।
- अधिक निराई गुड़ाई की मांग वाली फसल के बाद कम निराई गुड़ाई वाली फसल उगाएं।
- गेंहू धान जैसी फसलों के बाद दलहनी फसलें उगाएं।
- अधिक मात्रा में पोषक तत्व का शोषण करने वाली फसल के बाद खेत को कुछ समय के लिए परती रखें।
- ऊपरी जड़ वाली फसल के बाद गहरी जड़ वाली फसल को उगाना चाहिए।
दलहनी फसलें ज़रूर उगाएं
आजकल फसल से अधिक उपज लेने के लिए पहले की अपेक्षा अधिक मात्रा में उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है, क्योंकि भूमि में उर्वरक क्षमता का हृास बढ़ गया है । इन सब अनुभवों से बचने के लिए हमें फसल चक्र सिद्धान्तों को ध्यान में रखते हुए धान गेंहू के साथ-साथ दलहनी फसलों को भी ज़रूर उगाना चाहिए, क्योंकि दलहनी फसलों से एक टिकाऊ फसल उत्पादन प्रक्रिया विकसित होती है।
उत्तर प्रदेश में अपनाए जाने वाले फसल चक्र
परती पर आधारित फसल चक्र:
परती-गेहूँ, परती-आलू, परती-सरसों, धान-परती आदि।
हरी खाद पर आधारित फसल चक्र:
इसमें फसल उगाने के लिए हरी खाद का प्रयोग किया जाता है। जैसे हरी खाद-गेहूँ, हरी खाद- धान, हरी खाद- केला, हरी खाद- आलू, हरी खाद- गन्ना आदि।
दलहनी फसलों पर आधारित फसल चक्र:
मूंग- गेहूँ, धान-चना, कपास-मटर-गेहूँ, ज्वार-चना, बाजरा-चना, मूंगफली-अरहर, मूंग-गेहूँ, धान-चना, कपास-मटर- गेहूँ, ज्वार-चना, बाजरा-चना, धान-मटर, धान-मटर-गन्ना, मूंगफली-अरहर-गन्ना, मसूर-मेंथा, मटर-मेंथा।
अन्न की फसलों पर आधारित फसल चक्र:
मक्का- गेहूँ, धान– गेहूँ, ज्वार- गेहूँ, बाजरा- गेहूँ, गन्ना- गेहूँ, धान-गन्ना-पेड़ी, मक्का-जौ, धान-बरसीम, चना- गेहूँ, मक्का-उड़द– गेहूँ, आदि।
सब्जी आधारित फसल चक्र:
भिण्डी–मटर, पालक–टमाटर, फूलगोभी, मूली-बन्दगोभी, मूली, बैंगऩ लौकी, टिण्डा-आलू-मूली, करेला, भिण्डी-मूली-गोभी-तुरई, घुईयां-शलजम-भिण्डी-गाजर, धान-आलू-टमाटर, धान-लहसुन-मिर्च, धान-आलू़ लौकी आदि।
फसल चक्र के लाभ
- फसल चक्र से मृदा उर्वरता बढ़ती है।
- भूमि में कार्बन-नाइट्रोजन के अनुपात में वृद्धि होती है।
- भूमि के पी.एच. व क्षारीयता में सुधार होता है।
- भूमि की संरचना में सुधार होता है।
- मृदा क्षरण की रोकथाम होती है।
- फसलों का बीमारियों से बचाव होता है।
- कीटों का नियन्त्रण होता है।
- खरपतवारों की रोकथाम होती है।
- वर्ष भर आय प्राप्त होती रहती है।
- भूमि में विषाक्त पदार्थ इकठ्ठे नहीं होेने पाते है।
- उर्वरक व अन्य अवशेषों का पूरी तरह उपयोग हो जाता है।
फसल चक्र न अपनाने के नुकसान
फसल चक्र सिद्धान्त न अपनाने से उपजाऊ भूमि का क्षरण, जीवांश की मात्रा में कमी, भूमि से लाभदायक सूक्ष्म जीवों की कमी, मित्र जीवों की संख्या में कमी, हानिकारक कीट पतंगों का बढ़ाव, खरपतवार की समस्या में बढ़ोत्तरी, जलधारण क्षमता में कमी, भूमि के भौतिक, रासायनिक गुणों में परिवर्तन, क्षारीयता में बढ़ोत्तरी, भूमिगत जल का प्रदूषण आदि नुकसान होते हैं।
FAQs
किसी खेत में फसलों को अदल- बदल कर बोना फसल चक्र (crop rotation) कहलाता है।
फसल चक्र अपनाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है, और अच्छी उपज मिलती है।
जॉर्ज वॉशिंगटन कार्वर ने मिट्टी में पोषक तत्वों के संरक्षण के लिए फसल-चक्र के तरीके विकसित किए, इसलिए उन्हें फसल चक्र का आविष्कारक माना जाता है।
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