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भारत के ज़्यादातर घरों में बनने वाले व्यंजनों में हींग अहम स्थान रखता है। तेज गंध और गोंद की तरह दिखने वाला हींग की बहुत थोड़ी सी मात्रा भी खाने के स्वाद को बढ़ा देती है। आज भारत के व्यंजनों में हींग एक जरूरी मसाले की लिस्ट में शामिल हो गया है, इसीलिए देश में हींग की खेती को संभव बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तरह-तरह के परीक्षण किए जा रहे हैं।
हिमालय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर के वैज्ञानिकों ने किया शोध
भारत में हींग का आयात अफगानिस्तान और ईरान से किया जाता है। ऐसे में पिछले कुछ सालों से कृषि वैज्ञानिक इस पर शोध कर रहे थे, जिसमें हिमालय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर के वैज्ञानिकों ने अफगानिस्तान और ईरान के हींग के बीजों पर शोध किया, और तीन सालों की मेहनत के बाद हींग के पौधे तैयार हुए। इसके बाद देश में सबसे पहले हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहौल स्पीति में कुछ किसानों को ट्रायल के तौर पर हींग की खेती का प्रशिक्षण दिया गया।
लाहौल के सात गांवों के सात किसानों को हींग के कुछ पौधे दिए गए और 2020 में लगभग 11 हज़ार फीट की ऊंचाई पर भारत में सबसे पहले हींग की खेती की शुरू हुई। रोपाई के तीन सालों में हींग के पौधों का काफी विकास हुआ है, और अगले दो सालों में इन पौधों से हींग मिलने लगेगी।
भारत है हींग की सबसे ज़्यादा खपत वाला देश
दुनिया भर में हींग की सबसे ज़्यादा खपत भारत में होती है। देश में हर साल लगभग 1500 टन हींग का प्रयोग होता है। इसके मूल्य की बात करें, तो ये 940 करोड़ रुपये से अधिक है। भारत हर साल अफगानिस्तान से 90 प्रतिशत उज्बेकिस्तान से 8 प्रतिशत और ईरान से 2 प्रतिशत हींग का आयात करता है। वहीं दो सालों की रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों ने लाहौल घाटी को हींग की खेती के लिए उपयुक्त माना है।
देश के इन क्षेत्रों में हो सकती है हींग की खेती
हिमाचल के लाहौल स्पीति में हींग की खेती करने पर प्रमुखता से जोर दिया जा रहा है। इसके अलावा उत्तराखंड के पहाड़ी इलाका लद्दाख, हिमाचल का किन्नौर, मंडी जिला में जनझेली का पहाड़ी क्षेत्र भी हींग के उत्पादन के लिए अच्छा माना गया है। इसलिए लाहौल स्पीति के बाद अब हींग की खेती के लिए उपयुक्त इन इलाकों में भी पौधे लगाए गए हैं।
आपको बता दें कि हींग की खेती के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त माना जाता है। गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में हींग का मूल्य 35 से 40 हजार रुपये प्रति किलो है। वहीं उपज की बात करें तो एक पौधे से लगभग आधा किलो हींग प्राप्त होता है। इन पौधों को उपज देने के लिए तैयार होने में 4 से 5 साल का समय लगता है। माना जा रहा है कि हिमालयी क्षेत्रों में हींग उत्पादन होने के बाद किसानों को इस खेती से अच्छा मुनाफा होगा।
हींग की खेती को लेकर किसानों का अनुभव
लाहौल के एक किसान ने लगभग तीन सालों के हींग की खेती के अनुभव के आधार पर बताया कि हींग की खेती में सफलता मिलने का अनुपात लगभग 30 से 40 प्रतिशत है। आपको बता दें कि एक समय में लाहौल आलू के प्रमुख उत्पादक के रूप में जाना जाता था। वहीं अब किसानों को आशा है कि लाहौल अब हींग की उन्नत खेती के लिए जाना जाएगा।
FAQ
हिमालया जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर के वैज्ञानिकों की एक रिसर्च के मुताबिक भारत हर साल 1500 टन हींग आयात करता है।
वैज्ञानिकों ने हिमाचल के लाहौल घाटी को हींग की खेती के लिए उपयुक्त माना है। इसके अलावा उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके लद्दाख, हिमाचल का किन्नौर, मंडी जिला में जनझेली का पहाड़ी क्षेत्र भी हींग के उत्पादन के लिए अच्छा माना गया है।
प्रमुख रूप से हींग दो तरह की पाई जाती है। ईरानी और अफगानी। लाहौल के क्वारिंग गांव में सबसे पहले हींग की खेती करने वाले किसान रिन्हागजिंग हांयरप्पा ने इन दोनों प्रजातियों के पौधे लगाएं हैं।
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