प्रिय पाठकों, ग्रामिक के इस ब्लॉग सेक्शन में आपका स्वागत है!
भारत सहित दुनिया भर में नींबू का इस्तेमाल खूब किया जाता है। नींबू सलाद, अचार या शर्बत के रूप में तो इस्तेमाल होता ही है, साथ ही इसमें कई तरह के औषधीय गुण भी होते हैं, इसलिए नींबू की बागवानी (Lemon Farming) किसानों के लिए बहुत लाभकारी साबित हो सकती है।
चलिए इस ब्लॉग में विस्तार से जानते हैं नींबू की बागवानी के बारे में-
नींबू की बागवानी के लिए उपयुक्त मिट्टी
नींबू को लगभग सभी तरह की मिट्टियों में आसानी से उगाया जा सकता है। वहीं नींबू की खेती के लिए हल्की मिट्टी जो अच्छी जल निकास वाली हो, अनुकूल होती है। नींबू की खेती के लिए मिट्टी का पीएच 5.5-7.5 होना चाहिए।
नींबू की प्रमुख प्रजातियाँ
कागजी नींबू
कागजी नींबू भारत की सबसे प्रमुख नींबू की प्रजाति है। यह प्रजाति अपनी चमकदार पीली त्वचा और रसदार गूदे के लिए जानी जाती है। कागजी नींबू का उपयोग रस, सब्ज़ियों, मिठाइयों और अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाता है।
पाती नींबू
पाती नींबू भी भारत में एक लोकप्रिय नींबू की प्रजाति है। यह प्रजाति अपनी पतली त्वचा और खट्टे रस के लिए जानी जाती है। पाती नींबू का उपयोग रस, सब्ज़ियों, मिठाइयों और अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाता है।
कागजी कलाँ
कागजी कलाँ एक मध्यम आकार की नींबू की प्रजाति है। यह प्रजाति अपनी चमकदार पीली त्वचा और रसदार गूदे के लिए जानी जाती है। कागजी कलाँ का उपयोग रस, सब्ज़ियों, मिठाइयों और अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाता है।
बारहमासी नींबू
बारहमासी नींबू एक ऐसी नींबू की प्रजाति है जो साल भर फल देती है। यह प्रजाति अपनी चमकदार पीली त्वचा और रसदार गूदे के लिए जानी जाती है। बारहमासी नींबू का उपयोग रस, सब्ज़ियों, मिठाइयों और अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाता है।
इन्दौर सीडलैस
इन्दौर सीडलैस एक बीज रहित नींबू की प्रजाति है। यह प्रजाति अपनी चमकदार पीली त्वचा और रसदार गूदे के लिए जानी जाती है। इन्दौर सीडलैस का उपयोग रस, सब्ज़ियों, मिठाइयों और अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाता है।
पन्त लेमन-1
पन्त लेमन-1 एक उच्च उपज देने वाली नींबू की प्रजाति है। यह प्रजाति अपनी चमकदार पीली त्वचा और रसदार गूदे के लिए जानी जाती है। पन्त लेमन-1 का उपयोग रस, सब्ज़ियों, मिठाइयों और अन्य खाद्य पदार्थों में किया जाता है।
इनके अलावा, भारत में अन्य कई नींबू की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख प्रजातियाँ हैं:
- चक्रधर नींबू
- सफ़ेद नींबू
- गलगल नींबू
- खट्टा नींबू
- कर्नाटक नींबू
- हिमालय नींबू
नींबू की प्रजातियों का चयन करते समय जलवायु, मिट्टी और अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखना चाहिए।
नींबू की बागवानी का सही समय व तरीका
जुलाई व अगस्त का महीना नींबू के पौधे लगाने के लिए सबसे सही समय माना जाता है। इसको लगाने के लिए गड्ढे बनाएं। इन गड्ढों में 10-15 दिनों तक धूप लगने के बाद अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर इन्हें भर दें। रोपाई के समय पौधों के बीच की दूरी लगभग 4 से 4.5 मीटर तक होनी चाहिए।
नींबू के पौधों को आमतौर पर बीज या कलम से लगाया जाता है। बीज से लगाए गए पौधे अधिक समय लेते हैं और उनमें फल आने में देर होती है। कलम से लगाए गए पौधे जल्दी फल देने लगते हैं।
कब करें नींबू के पौधे की सिंचाई
नींबू के पौधों की रोपाई करने के तुरंत बाद इसकी पहली सिंचाई करें। इसके बाद मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाये रखें, खास तौर पर रोपाई के शुरुआती 3-4 हफ्ते तक। नींबू के पौधों की सिंचाई थाला बनाकर या टपक सिंचाई विधि से कर सकते हैं। सिंचाई करते समय यह ध्यान रखें कि पानी, पौधे के मुख्य तने के संपर्क में न आए, इसके लिए तने के आसपास हल्की ऊंची मिट्टी चढा दें।
नींबू की बागवानी के लिए आवश्यक उर्वरक
नींबू के पौधों में निकलने वाले फूलो का रंग सफ़ेद होता है, लेकिन पूरी तरह विकसित हो जाने पर इसके फूल पीले रंग के हो जाते हैं। नींबू के पौधे में खाद एवं उर्वरक की मात्रा मिट्टी की उर्वरक क्षमता एवं पौधे की आयु पर निर्भर करती है।
सही मात्रा का निर्धारण करने के लिए मिट्टी की जांच जरूरी है। यदि संतुलित मात्रा में खाद एवं उर्वरक डाली जाए तो नींबू की अच्छी उपज के साथ-साथ खेत की मिट्टी के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जा सकता है।
नींबू में लगने वाले रोग व कीट
नींबू का कैंकर रोग
यह एक जीवाणु रोग है जो नींबू के पौधों की पत्तियों, शाखाओं और फलों को प्रभावित करता है। इस रोग के कारण पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में बड़े हो जाते हैं। इस रोग से प्रभावित पत्तियां व शाखाएं गिरने लगती हैं।
नींबू की लीफ माइनर
यह एक ऐसा कीट है जो नींबू की पत्तियों को नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की सूंडी वाली अवस्था ही हानिकारक होती है। यह कीट पत्तियों के अंदर सुरंग बनाकर उनका रस चूसती है। इससे पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं और पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है।
नींबू की तितली
यह कीट भी नींबू की पत्तियों को नुकसान पहुंचाता है। यह कीट पत्तियों को खाते हैं। इससे पत्तियों पर छोटे-छोटे छेद दिखाई देते हैं।
नींबू का गोंद रोग
यह रोग नींबू के पौधों की शाखाओं और फलों को प्रभावित करता है। इस रोग के कारण शाखाओं और फलों पर गोंद निकलने लगता है। इससे शाखाओं और फलों का विकास रुक जाता है और वे सूख जाते हैं।
नींबू का फफूंद रोग
यह एक फफूंद रोग है जो नींबू के पौधों की पत्तियों, शाखाओं और फलों को प्रभावित करता है। इस रोग के कारण पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में बड़े हो जाते हैं। इस रोग से प्रभावित पत्तियां और शाखाएं सूख जाती हैं।
FAQs
नींबू के पौधों को खरीदते समय रोग प्रतिरोधी किस्म का चुनाव करें। पौधों को नियमित रूप से पानी और खाद दें। इसके अलावा पौधों को कीटों व रोगों से बचाने के लिए समय-समय पर कीटनाशक और रोगनाशक दवाओं का छिड़काव करें। यदि किसी पौधे में रोग लग जाए तो उस पौधे के रोगग्रस्त भागों को तुरंत काटकर हटा दें। इसके साथ ही पौधों के आसपास के खरपतवारों को समय-समय पर निकालते रहें।
भारत में प्रमुख रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पंजाब-हरियाणा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के आसपास के इलाके में नींबू की बागवानी की जाती है।
नींबू की एक एकड़ बागवानी में करीब 300 पौधे लगाए जाते हैं।
नींबू के पौधे लगाने के तीन या साढ़े तीन साल बाद से फल आने लगते हैं।
बागवानी और खेती से संबंधित और भी ब्लॉग पढ़ने के लिए किसान साथी ग्रामिक के website लिंक पर क्लिक करें –
आंवले की बागवानी
केले की खेती
पपीता की खेती
Post Views: 11