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भारत के कई क्षेत्रों में आजकल तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। ऐसे में हमारे पशु पालक साथियों को अपने पशुओं की खास देख रेख की जरूरत होती है, क्योंकि गर्मी के मौसम में पशु को कई तरह की बीमारियों का शिकार होना पड़ सकता है। ऐसे में दुग्ध उत्पादन मे भी काफी कमी देखी जाती है।
चलिए ग्रामिक के इस ब्लॉग में जानते हैं कि बढ़ती गर्मी में पशुओ को होने वाली बीमारियाँ कौन सी हैं, और किन बातों को ध्यान में रखकर आप उन्हें बीमार होने से बचा सकते हैं। लेकिन यदि देखरेख व खान-पान संबंधी कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखा जाए, तो गर्मी में पशु को बीमार होने से बचाया जा सकता है।
बढ़ती गर्मी का पशु पर प्रभाव
आपको बता दें कि पशुओं में बाहरी गर्मी के अलावा आंतरिक गर्मी यानी मेटाबोलिक हीट का भी असर होता है। बाहरी गर्मी की वजह से पशुओं की आंतरिक क्रिया भी प्रभावित होती है। इससे उनके भोजन पाचन आदि से मेटाबोलिक हीट होने लगती है। इस तरह दुग्ध उत्पादन और पशु की खुराक में वृद्धि होने के साथ ही मेटावालिज्म से होने वाली हीट में बढ़ोत्तरी होती है।
भैंसों व गायों के लिए थर्मोन्यूट्रल जोन 5 डिग्री सेंटीग्रेड से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होता है। आपको बता दें कि थर्मोन्यूट्रल जोन में सामान्य मेटाबोलिक क्रियाओं से जितनी गर्मी होती है, उतना ही पशु पसीने के रूप में गर्मी को बाहर निकालकर अपने शरीर का तापमान सामान्य बनाते हैं।
बढ़ते तापमान के दौरान पशु के खान पान में कमी, खानपान में कमी, दुग्ध उत्पादन में 10 से 25 प्रतिशत तक की गिरावट, दूध में वसा के प्रतिशत में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी, कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी जैसी समस्याएँ देखी जा सकती हैं। आसान भाषा में समझें तो पशुओं की शारीरिक क्रियाओं में कुछ बदलाव होने लगते हैं।
गर्मी के मौसम में पशुओं के सांस लेने की गति बढ़ जाती है। अक्सर आपने देखा होगा कि इस मौसम में पशु हांपने लगते हैं, और उनके मुंह से लार गिरती रहती है। इस दौरान त्वचा की ऊपरी सतह का रक्त प्रभाव बढ़ जाता है, और आंत्रिक ऊतकों के रक्त प्रभाव में कमी आ जाती है।
पशुओं में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने, रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार करने व कैल्शियम की कमी को पूरा करने के ग्रामिक पर दूध सागर, कॅल्शियम व शक्तिसागर जैसे उपयोगी पोषक आहार उपलब्ध हैं। अपने पशु के लिए ज़रूरी पोषक आहार अभी ऑर्डर करने के लिए कॉल करें 7388821222 पर।
गर्मी के कारण पशुओं में होने वाली बीमारियाँ व रोकथाम
पशुओं को लू लगना
वातावरण में नमी और बढ़ता तापमान, पशुशाला में हवा की निकासी का सही इंतेजाम न होना, कम जगह पर ज्यादा पशुओं को रखना और पशु को पर्याप्त मात्रा में पानी न पिलाना लू लगने के प्रमुख कारण हो सकते हैं। ध्यान रहे कि विदेशी या संकर नस्ल के पशुओं में लू लगने की संभावना ज्यादा होती है।
लू लगने के लक्षण
पशुओं में लू लगने के लक्षण की बात करें तो शरीर का तापमान बढ़ना, पशु का बेचैन होना, पसीने व लार का अधिक होना, मुंह के आसपास झाग आना, आंख व नाक लाल होना, नाक से खून बहना, दस्त होना, धड़कन तेज होना, आहार में कमी आना, पशु का ज्यादा मात्रा में पानी पीना आदि लू-लगने के प्रमुख लक्षण माने जाते हैं।
पशुओं को लू से बचाने के उपाय
पशुशाला को इस तरह बनाएँ कि सभी पशुओं के लिए पर्याप्त जगह हो, और उन्हें ताजी हवा मिलती रहे। वहीं जिस पशु को लू लगी हो उसे ठंडी जगह पर बांधे और माथे पर ठण्डे पानी की पट्टियां बाँधें। लू की समस्या होने पर पशु को दाना कम और हरा चारा ज्यादा दें।
पशु को हवा के सीधे संर्पक बचाना चाहिए। पशु को हर दिन 1-2 बार ठंडे पानी से नहलाएँ। इसके अलावा मवेशियों को गर्मी से बचाने के लिए आप उनके रहने वाली जगह पर पंखे, कूलर और फव्वारा सिस्टम लगा सकते हैं, इससे पशुशाला का तापमान सामान्य बना रहेगा। दिन में पशुओं को अन्दर बांध कर रखें, ताकि ऊनें गर्म हवा व धूप न लगे। वहीं लू की चपेट में आने और ठीक नहीं होने पर पशु को तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
अपच होना
गर्मी बढ़ने पर ज्यादातर पशु चारा खाना कम कर देते हैं। इस समय पशु को पर्याप्त मात्रा में पानी व पौष्टिक आहार न मिलने पर अपच व कब्ज होने लगती है।
पशुओं में अपच होने के कारण
तापमान बढ़ने पर कई बार पशु मुंह खोलकर सांस लेते हैं, और वे अपने शरीर को ठंडा रखने के लिए शरीर को चाटते रहते हैं, जिससे उसकी जीभ बाहर निकलती है. साथ ही पशु शरीर को ठंडा रखrने हेतु शरीर को चाटता है, जिसके कारण शरीर में लार की कमी हो जाती है।
आपको बता दें कि एक स्वस्थ पशु में हर दिन 100-150 लीटर लार बनती है, जो चारे को पचाने में सहायता करती है। लेकिन अधिक गर्मी होने के कारण लार बाहर निकल जाती है, जिससे चारे का पाचन प्रभावित होता है, और पाचन की गति कम हो जाती है। यही कारण है कि तापमान बढ़ने पर पशुओं में अपच की समस्या काफी देखी जाती है।
अपच के लक्षण
पशुओं में अपच होने के कुछ प्रमुख लक्षणों की बात करें तो पशु की खाने में रुचि न होना, पशु का सुस्त रहना और गोबर में दाने आना आदि लक्षण देखे जाते हैं।
पशुओं में अपच का उपचार
जिन पशुओं में अपच की समस्या हो उन्हें 3-4 दिन तक 100 ग्राम प्याज, 10 लहसुन की कली, 10 ग्राम जीरा, 10 ग्राम हल्दी, 100 ग्राम गुड़ व 100 ग्राम अदरक का पेस्ट बना कर दिन भर में 3-4 बार थोड़ा-थोड़ा खिलाएँ। इसके अलावा एक बाल्टी पानी में 50 ग्राम मीठा सोडा घोल कर पशु को दिन में 2 बार दे। यदि 1-2 दिन बाद भी पशु अच्छे से चारा न खाए तो करे तो डॉक्टर को दिखाकर उसका इलाज कराएँ।
संक्रामक रोगों से बचाव
बारिश के मौसम में पशुओं में संक्रामक रोग फैलने की संभावना ज्यादा होती हैं। लेकिन गर्मी बढ़ने की वजह से पशुओं की बीमारियों से लड़नें की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है और आगे बारिश का मौसम आते ही उन्हें संक्रमण होने के संभावना बढ़ जाती है। इसलिए इस मौसम में पशुओं में गला-घोंटू, खुर-पका मुंह-पका, लंगड़ी बुखार आदि रोग होने लगते हैं। आपके पशु इन सभी बीमारियों से सुरक्षित रहें, इसके लिए उनका टीकाकरण जरूर कराएँ।
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FAQ
‘दूध सागर’ के उपयोगिता की बात करें तो ये दुधारू पशुओं में दुग्ध उत्पादन क्षमता को बढ़ाने को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसमें आवश्यक विटामिन, एंजाइम, प्रोबायोटिक्स, कैल्शियम, फास्फोरस, और अन्य ज़रूरी पोषक तत्वों की सही मात्रा होती है, जो दुधारू गाय भैंस के विशेष लाभदायक होता है।
ग्रामिक कैल्शियम पशुओं की हड्डियां मजबूत करता है और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसके अलावा जिन पशुओं में बांझपन की समस्या होती है, उनके लिए भी ये उत्पाद बहुत लाभदायक होता है। ग्रामिक कैल्शियम हानिकारक बैक्टीरिया के संक्रमण से भी पशुओं की सुरक्षा करता है।
ग्रामिक शक्ति सागर पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, साथ ही उनमें सभी ज़रूरी पोषक तत्वों की आपूर्ति भी करता है। इसके सेवन से पशु तनावमुक्त रहेंगे, गर्भधारण की संभावना बढ़ेगी, साथ ही उनका प्रजनन स्वास्थ्य भी बेहतर होगा।
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